तात्कालिक लेख
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Saturday, April 6, 2013
Wednesday, February 27, 2013
ताज महल या तेजो महालय|
भारत में 12 ज्योतिर्लिंग थे 11 का सब को पता हें 12 व कहा गया ? आपको पता हें? चलो में बताता हूँ 12 वे ज्योतिर्लिंग का नाम हे अग्रेश्वर महादेव जो की आगरा में स्थित था| अब आप कहेंगे की आगरा में आज की तारीख में तो कोई शिव जी का ज्योतिर्लिंग नही हें ? किसी जमाने में, जिसे आज सब ताज महल कहते हें, वो शिवालय हुआ करता था |जिसे शाहजहाँ ने अपनी पत्नी या कहे की बच्चे पैदा करने की मशीन मुमताज की लाश को दफ़नकरने के लिए जबरदस्ती छीन लिया था | पूरी तथ्यात्मक रिपोर्ट पढ़े और अगर आप की रगों में हिन्दू का खून हें, तो ज्यादा से ज्यादा शेयर जरुर करे......
>प्रो. ओक कि खोज ताजमहल के नाम से प्रारम्भ होती है———
=”महल” शब्द, अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में भवनों के लिए प्रयोग नही किया जाता…
यहाँ यह व्याख्या करना कि, महल शब्द मुमताज महल से लिया गया है……वह कम से कम दो प्रकार से तर्कहीन है-
पहला - शाहजहाँ कि पत्नी का नाम मुमताज महल कभी नही था, बल्कि उसका नाम मुमताज-उल-ज़मान ी था ।
और दूसरा - किसी भवन का नामकरण किसी महिला के नाम के आधार पर रखने के लिए केवल अन्तिम आधे भाग (ताज)का ही प्रयोग किया जाए और प्रथम अर्ध भाग (मुम) को छोड़ दिया जाए, यह समझ से परे है ।
प्रो.ओक दावा करते हैं कि,ताजमहल नाम तेजो महालय (भगवान शिव का महल) का बिगड़ा हुआ संस्करण है, साथ ही साथ ओक कहते हैं कि -
मुमताज और शाहजहाँ कि प्रेम कहानी, चापलूस इतिहासकारों की भयंकर भूल और लापरवाह पुरातत्वविदों की सफ़ाई से, स्वयं गढ़ी गई कोरी अफवाह मात्र है, क्योंकि अगर इसमे थोड़ी भी सच्चाई होती तो शाहजहाँ के समय का कम से कम एक शासकीय अभिलेख इस प्रेम कहानी की पुष्टि कही ना कही जरुर करता है…..
इसके अतिरिक्त बहुत से प्रमाण ओक के कथन का प्रत्यक्षतः समर्थन कर रहे हैं……
तेजो महालय (ताजमहल) मुग़ल बादशाह के युग से पहले बना था, और यह भगवान् शिव कोसमर्पित था तथा आगरा के राजपूतों द्वारा पूजा जाता था ।
==>न्यूयार्क के पुरातत्वविद प्रो. मर्विन मिलर ने ताज के यमुना की तरफ़ केदरवाजे की लकड़ी की कार्बन डेटिंग के आधार पर 1985 में यह सिद्ध किया कि, यह दरवाजा सन् 1359 के आसपास अर्थात् शाहजहाँ के काल से लगभग 300 वर्ष पुराना है ।
==>मुमताज कि मृत्यु जिस वर्ष (1631) में हुई थी, उसी वर्ष के अंग्रेज भ्रमण कर्ता पीटर मुंडी का लेख भी इसका समर्थन करता है कि, ताजमहल मुग़ल बादशाह के पहले का एक अति महत्वपूर्ण भवन था ।
==>यूरोपियन यात्री जॉन अल्बर्ट मैनडेल्स्लो ने सन् 1638 (मुमताज कि मृत्यु के 07 साल बाद) में आगरा भ्रमण किया, और इस शहर के सम्पूर्ण जीवन वृत्तांत का वर्णन किया, परन्तु उसने ताज के बनने का कोई भी सन्दर्भ नही प्रस्तुत किया, जबकि भ्रांतियों मे यह कहा जाता है कि ताज का निर्माण कार्य 1631 से 1651 तक जोर शोर से चल रहा था ।
==>फ्रांसीसी यात्री फविक्स बर्निअर एम.डी. जो औरंगजेब द्वारा गद्दीनशीन होने के समय भारत आया था, और लगभग दस सालयहाँ रहा, के लिखित विवरण से पता चलता है कि, औरंगजेब के शासन के समय यह झूठ फैलाया जाना शुरू किया गया कि, ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था…….
प्रो. ओक. बहुत सी आकृतियों और शिल्प सम्बन्धी असंगताओं को इंगित करते हैं जो इस विश्वास का समर्थन करते हैं कि, ताजमहल विशाल मकबरा न होकर विशेषतः हिंदू शिव मन्दिर है…….
आज भी ताजमहल के बहुत से कमरे शाहजहाँ के काल से बंद पड़े हैं, जो आम जनता की पहुँच से परे हैं। प्रो. ओक जोर देकर कहते हैं कि, हिंदू मंदिरों में ही पूजाएवं धार्मिक संस्कारों के लिए भगवान् शिव की मूर्ति, त्रिशूल,कलश और ॐ आदि वस्तुएं प्रयोग की जाती हैं।
==>ताज महल के सम्बन्ध में यह आम किवदंत्ती प्रचलित है कि ताजमहल के अन्दर मुमताज की कब्र पर सदैव बूँद बूँद कर पानी टपकता रहता है, यदि यह सत्य है तो पूरे विश्व मे किसी कि भी कब्र पर बूँद बूँद कर पानी नही टपकाया जाता, जबकि प्रत्येक हिंदू शिव मन्दिर में ही शिवलिंग पर बूँद बूँद कर पानी टपकाने की व्यवस्था की जाती है, फ़िर ताजमहल (मकबरे) में बूँद बूँद कर पानी टपकाने का क्या मतलब….????
राजनीतिक भर्त्सना के डर से इंदिरा गाँधी सरकार ने ओक की सभी पुस्तकें स्टोर्स से वापस ले लीं थीं, और इन पुस्तकों के प्रथम संस्करण को छापने वाले संपादकों को भयंकर परिणाम भुगत लेने की धमकियां भी दी गईं थी ।
प्रो. पी. एन. ओक के अनुसंधान को ग़लत या सिद्ध करने का केवल एक ही रास्ता है, कि वर्तमान केन्द्र सरकार बंद कमरों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में खुलवाए, और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दे ।
ज़रा सोचिये….!!!!!!
कि यदि ओक का अनुसंधान पूर्णतयः सत्य है तो किसी देशी राजा के बनवाए गए संगमरमरी आकर्षण वाले खूबसूरत, शानदारएवं विश्व के महान आश्चर्यों में से एक भवन, “तेजो महालय” को बनवाने का श्रेय बाहर से आए मुग़ल बादशाह शाहजहाँ को क्यों……?????
तथा -
इससे जुड़ी तमाम यादों का सम्बन्ध मुमताज-उल-ज़मान ी से क्यों……..?????? ? ताजमहल के बारे में ये लाइने बिलकुल सटीक बैठती हें--
आंसू टपक रहे हैं, हवेली के बाम से,
रूहें लिपट के रोती हैं, हर खासों आम से|
अपनों ने बुना था हमें, कुदरत के काम से,
फ़िर भी यहाँ जिंदा हैं, हम गैरों के नाम से|
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अंग्रेजों कि काली करतूत
१७६० – राबर्ट क्लाइव ने कोलकाता में पहला कसाईखाना खोला ।
१८६१ – रानी विक्टोरिया ने भारत के वाइसराय को लिख कर
गायों के प्रति भारतीयों की भावनाओं को आहत करने
को उकसाया ।
१९४७ – स्वतंत्रता के समय भारत में ३०० से कुछ अधिक कल्लगाह थे
। आज ३५,००० अधिकृत और लाखों अनधिकृत वधशालाएँ हैं ।
गाय की प्रजातियाँ ७० से घटकर ३३ रह गई हैं । इनमें भी कुछ
तो लुप्त होने के कगार पर हैं ।
स्वतंत्रता के बाद गायों की संख्या में ८० प्रतिशत की गिरावट आई
है ।
१९९३-९४ भारत ने १,०१,६६८ टन गोमांस निर्यात किया । १९९४-९५
का लक्ष्य दो लाख टन था ।
हम वैनिटी बैग और बेल्ट के लिये गाय का चमड़ा, मन्जन के लिये
हड्डियों का चूर्ण, विटामिन की गोलियों के लिये रक्त और
सोने-चांदी के वर्कों हेतु बछड़े की आंतें पाने के लिये गो हत्या करते
हैं ।
ऐसा समझा जाता है कि १९९३ में लातूर और १९९४ में बिहार जैसे
भूकंपों के पीछे गो हत्या का कारण है ।
१८६१ – रानी विक्टोरिया ने भारत के वाइसराय को लिख कर
गायों के प्रति भारतीयों की भावनाओं को आहत करने
को उकसाया ।
१९४७ – स्वतंत्रता के समय भारत में ३०० से कुछ अधिक कल्लगाह थे
। आज ३५,००० अधिकृत और लाखों अनधिकृत वधशालाएँ हैं ।
गाय की प्रजातियाँ ७० से घटकर ३३ रह गई हैं । इनमें भी कुछ
तो लुप्त होने के कगार पर हैं ।
स्वतंत्रता के बाद गायों की संख्या में ८० प्रतिशत की गिरावट आई
है ।
१९९३-९४ भारत ने १,०१,६६८ टन गोमांस निर्यात किया । १९९४-९५
का लक्ष्य दो लाख टन था ।
हम वैनिटी बैग और बेल्ट के लिये गाय का चमड़ा, मन्जन के लिये
हड्डियों का चूर्ण, विटामिन की गोलियों के लिये रक्त और
सोने-चांदी के वर्कों हेतु बछड़े की आंतें पाने के लिये गो हत्या करते
हैं ।
ऐसा समझा जाता है कि १९९३ में लातूर और १९९४ में बिहार जैसे
भूकंपों के पीछे गो हत्या का कारण है ।
Saturday, February 23, 2013
नालंदा विश्वविद्यालय को क्यों जलाया गया था..? जानिए सच्चाई ...??
एक
सनकी और चिड़चिड़े स्वभाव वाला तुर्क मियां लूटेरा था ....बख्तियार खिलजी.
इसने 1199 में इसे जला कर पूर्णतः नष्ट कर दिया। उसने उत्तर भारत में
बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था. एक बार वह बहुत
बीमार पड़ा उसके हकीमों ने उसको बचाने की पूरी कोशिश कर ली ...मगर वह ठीक
नहीं हो सका. किसी ने उसको सलाह
दी...नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल
श्रीभद्र जी को बुलाया जाय और उनसे भारतीय विधियों से इलाज कराया जाय उसे
यह सलाह पसंद नहीं थी कि कोई भारतीय वैद्य ...उसके हकीमों से उत्तम ज्ञान
रखते हो और वह किसी काफ़िर से .उसका इलाज करवाए फिर भी उसे अपनी जान बचाने
के लिए उनको बुलाना पड़ा उसने वैद्यराज के सामने शर्त रखी... मैं तुम्हारी
दी हुई कोई दवा नहीं खाऊंगा... किसी भी तरह मुझे ठीक करों ... वर्ना
...मरने के लिए तैयार रहो. बेचारे वैद्यराज को नींद नहीं आई... बहुत उपाय
सोचा...अगले दिन उस सनकी के पास कुरान लेकर चले गए.. कहा...इस कुरान की
पृष्ठ संख्या ... इतने से इतने तक पढ़ लीजिये... ठीक हो जायेंगे...! उसने
पढ़ा और ठीक हो गया ..जी गया... उसको बड़ी झुंझलाहट हुई...उसको ख़ुशी नहीं
हुई उसको बहुत गुस्सा आया कि ... उसके मुसलमानी हकीमों से इन भारतीय
वैद्यों का ज्ञान श्रेष्ठ क्यों है...! बौद्ध धर्म और आयुर्वेद का एहसान
मानने के बदले ...उनको पुरस्कार देना तो दूर ... उसने नालंदा विश्वविद्यालय
में ही आग लगवा दिया ...पुस्तकालयों को ही जला के राख कर दिया...! वहां
इतनी पुस्तकें थीं कि ...आग लगी भी तो तीन माह तक पुस्तकें धू धू करके जलती
रहीं उसने अनेक धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षु मार डाले.
आज भी बेशरम सरकारें...उस नालायक बख्तियार खिलजी के नाम पर रेलवे स्टेशन बनाये पड़ी हैं... ! उखाड़ फेंको इन अपमानजनक नामों को... मैंने यह तो बताया ही नहीं... कुरान पढ़ के वह कैसे ठीक हुआ था. हम हिन्दू किसी भी धर्म ग्रन्थ को जमीन पर रख के नहीं पढ़ते...थूक लगा के उसके पृष्ठ नहीं पलटते मिएँ ठीक उलटा करते हैं..... कुरान के हर पेज को थूक लगा लगा के पलटते हैं...! बस... वैद्यराज राहुल श्रीभद्र जी ने कुरान के कुछ पृष्ठों के कोने पर एक दवा का अदृश्य लेप लगा दिया था... वह थूक के साथ मात्र दस बीस पेज चाट गया...ठीक हो गया और उसने इस एहसान का बदला नालंदा को नेस्तनाबूत करके दिया……..
आईये अब थोड़ा नालंदा के बारे में भी जान लेते है यह प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विख्यात केन्द्र था। महायान बौद्ध धर्म के इस शिक्षा-केन्द्र में हीनयान बौद्ध-धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के तथा अनेक देशों के छात्र पढ़ते थे। वर्तमान बिहार राज्य में पटना से 88.5 किलोमीटर दक्षिण--पूर्व और राजगीर से 11.5 किलोमीटर उत्तर में एक गाँव के पास अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा खोजे गए इस महान बौद्ध विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज़ करा देते हैं। अनेक पुराभिलेखों और सातवीं शती में भारत भ्रमण के लिए आये चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा इत्सिंग के यात्रा विवरणों से इस विश्वविद्यालय के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में यहाँ जीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था। प्रसिद्ध 'बौद्ध सारिपुत्र' का जन्म यहीं पर हुआ था। स्थापना व संरक्षण इस विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ४५०-४७० को प्राप्त है। इस विश्वविद्यालय को कुमारगुप्त के उत्तराधिकारियों का पूरा सहयोग मिला। गुप्तवंश के पतन के बाद भी आने वाले सभी शासक वंशों ने इसकी समृद्धि में अपना योगदान जारी रखा। इसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला। स्थानिए शासकों तथा भारत के विभिन्न क्षेत्रों के साथ ही इसे अनेक विदेशी शासकों से भी अनुदान मिला। स्वरूप यह विश्व का प्रथम पूर्णतः आवासीय विश्वविद्यालय था। विकसित स्थिति में इसमें विद्यार्थियों की संख्या करीब १०,००० एवं अध्यापकों की संख्या 2000 थी। इस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। नालंदा के विशिष्ट शिक्षाप्राप्त स्नातक बाहर जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे। इस विश्वविद्यालय की नौवीं शती से बारहवीं शती तक अंतरर्राष्ट्रीय ख्याति रही थी। परिसर अत्यंत सुनियोजित ढंग से और विस्तृत क्षेत्र में बना हुआ यह विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना था। इसका पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था। उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार थी और उनके सामने अनेक भव्य स्तूप और मंदिर थे। मंदिरों में बुद्ध भगवान की सुन्दर मूर्तियाँ स्थापित थीं। केन्द्रीय विद्यालय में सात बड़े कक्ष थे और इसके अलावा तीन सौ अन्य कमरे थे। इनमें व्याख्यान हुआ करते थे। अभी तक खुदाई में तेरह मठ मिले हैं। वैसे इससे भी अधिक मठों के होने ही संभावना है। मठ एक से अधिक मंजिल के होते थे। कमरे में सोने के लिए पत्थर की चौकी होती थी। दीपक, पुस्तक इत्यादि रखने के लिए आले बने हुए थे। प्रत्येक मठ के आँगन में एक कुआँ बना था। आठ विशाल भवन, दस मंदिर, अनेक प्रार्थना कक्ष तथा अध्ययन कक्ष के अलावा इस परिसर में सुंदर बगीचे तथा झीलें भी थी।
प्रबंधन------
समस्त विश्वविद्यालय का प्रबंध कुलपति या प्रमुख आचार्य करते थे जो भिक्षुओं द्वारा निर्वाचित होते थे। कुलपति दो परामर्शदात्री समितियों के परामर्श से सारा प्रबंध करते थे। प्रथमसमिति शिक्षा तथा पाठ्यक्रम संबंधी कार्यदेखती थी और द्वितीय समिति सारे विश्वविद्यालय की आर्थिक व्यवस्था तथा प्रशासन की देख--भाल करती थी। विश्वविद्यालय को दान में मिलेदो सौ गाँवों से प्राप्त उपज और आय की देख--रेख यही समिति करती थी। इसी से सहस्त्रों विद्यार्थियों के भोजन, कपड़े तथा आवास का प्रबंध होता था। आचार्य इस विश्वविद्यालय में तीन श्रेणियों के आचार्य थे जो अपनी योग्यतानुसार प्रथम, द्वितीय और तृतीय श्रेणी में आते थे। नालंदा के प्रसिद्ध आचार्यों में शीलभद्र,धर्मपाल, चंद्रपाल, गुणमति और स्थिरमति प्रमुख थे। 7वीं सदी में ह्वेनसांग के समय इस विश्व विद्यालय के प्रमुख शीलभद्र थे जो एक महान आचार्य, शिक्षक और विद्वान थे। एक प्राचीन श्लोक से ज्ञात होता है, प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ आर्यभट भी इस विश्वविद्यालय के प्रमुख रहे थे। उनके लिखे जिन तीन ग्रंथों की जानकारी भी उपलब्ध है वे हैं: दशगीतिका, आर्यभट्टीय और तंत्र। ज्ञाता बताते हैं, कि उनका एक अन्य ग्रन्थ आर्यभट्ट सिद्धांत भी था, जिसके आज मात्र ३४ श्लोक ही उपलब्ध हैं। इस ग्रंथ का ७वीं शताब्दी में बहुत उपयोग होता था।
प्रवेश के नियम------
प्रवेश परीक्षा अत्यंत कठिन होती थी और उसके कारण प्रतिभाशाली विद्यार्थी ही प्रवेश पा सकते थे। उन्हें तीन कठिन परीक्षा स्तरों को उत्तीर्ण करना होता था। यह विश्व का प्रथम ऐसा दृष्टांत है। शुद्ध आचरण और संघ के नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक था।
अध्ययन-अध्यापन पद्धति-----
इस विश्वविद्यालय में आचार्य छात्रों को मौखिक व्याख्यान द्वारा शिक्षा देते थे। इसके अतिरिक्त पुस्तकों की व्याख्या भी होती थी। शास्त्रार्थ होता रहता था। दिन के हर पहर में अध्ययन तथा शंका समाधान चलता रहता था।
अध्ययन क्षेत्र------
यहाँ महायान के प्रवर्तक नागार्जुन, वसुबन्धु, असंग तथा धर्मकीर्ति की रचनाओंका सविस्तार अध्ययन होता था। वेद, वेदांत और सांख्य भी पढ़ाये जाते थे। व्याकरण, दर्शन, शल्यविद्या, ज्योतिष, योगशास्त्र तथा चिकित्साशास्त्र भी पाठ्यक्रम के अन्तर्गत थे। नालंदा कि खुदाई में मिलि अनेक काँसे की मूर्तियोँ के आधार पर कुछ विद्वानों का मत है कि कदाचित् धातु की मूर्तियाँ बनाने के विज्ञान का भी अध्ययन होता था। यहाँ खगोलशास्त्र अध्ययन के लिए एक विशेष विभाग था।
पुस्तकालय------
नालंदा में सहस्रों विद्यार्थियों और आचार्यों के अध्ययन के लिए, नौ तल का एक विराट पुस्तकालय था जिसमें ३ लाख सेअधिक पुस्तकों का अनुपम संग्रह था। इस पुस्तकालय में सभी विषयों से संबंधित पुस्तकें थी। यह 'रत्नरंजक' 'रत्नोदधि' 'रत्नसागर' नामक तीन विशाल भवनों में स्थित था। 'रत्नोदधि' पुस्तकालय में अनेक अप्राप्य हस्तलिखित पुस्तकें संग्रहीत थी। इनमें से अनेक पुस्तकों की प्रतिलिपियाँ चीनी यात्री अपने साथ ले गये थे।
आज भी बेशरम सरकारें...उस नालायक बख्तियार खिलजी के नाम पर रेलवे स्टेशन बनाये पड़ी हैं... ! उखाड़ फेंको इन अपमानजनक नामों को... मैंने यह तो बताया ही नहीं... कुरान पढ़ के वह कैसे ठीक हुआ था. हम हिन्दू किसी भी धर्म ग्रन्थ को जमीन पर रख के नहीं पढ़ते...थूक लगा के उसके पृष्ठ नहीं पलटते मिएँ ठीक उलटा करते हैं..... कुरान के हर पेज को थूक लगा लगा के पलटते हैं...! बस... वैद्यराज राहुल श्रीभद्र जी ने कुरान के कुछ पृष्ठों के कोने पर एक दवा का अदृश्य लेप लगा दिया था... वह थूक के साथ मात्र दस बीस पेज चाट गया...ठीक हो गया और उसने इस एहसान का बदला नालंदा को नेस्तनाबूत करके दिया……..
आईये अब थोड़ा नालंदा के बारे में भी जान लेते है यह प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विख्यात केन्द्र था। महायान बौद्ध धर्म के इस शिक्षा-केन्द्र में हीनयान बौद्ध-धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के तथा अनेक देशों के छात्र पढ़ते थे। वर्तमान बिहार राज्य में पटना से 88.5 किलोमीटर दक्षिण--पूर्व और राजगीर से 11.5 किलोमीटर उत्तर में एक गाँव के पास अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा खोजे गए इस महान बौद्ध विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज़ करा देते हैं। अनेक पुराभिलेखों और सातवीं शती में भारत भ्रमण के लिए आये चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा इत्सिंग के यात्रा विवरणों से इस विश्वविद्यालय के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में यहाँ जीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था। प्रसिद्ध 'बौद्ध सारिपुत्र' का जन्म यहीं पर हुआ था। स्थापना व संरक्षण इस विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ४५०-४७० को प्राप्त है। इस विश्वविद्यालय को कुमारगुप्त के उत्तराधिकारियों का पूरा सहयोग मिला। गुप्तवंश के पतन के बाद भी आने वाले सभी शासक वंशों ने इसकी समृद्धि में अपना योगदान जारी रखा। इसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला। स्थानिए शासकों तथा भारत के विभिन्न क्षेत्रों के साथ ही इसे अनेक विदेशी शासकों से भी अनुदान मिला। स्वरूप यह विश्व का प्रथम पूर्णतः आवासीय विश्वविद्यालय था। विकसित स्थिति में इसमें विद्यार्थियों की संख्या करीब १०,००० एवं अध्यापकों की संख्या 2000 थी। इस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। नालंदा के विशिष्ट शिक्षाप्राप्त स्नातक बाहर जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे। इस विश्वविद्यालय की नौवीं शती से बारहवीं शती तक अंतरर्राष्ट्रीय ख्याति रही थी। परिसर अत्यंत सुनियोजित ढंग से और विस्तृत क्षेत्र में बना हुआ यह विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना था। इसका पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था। उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार थी और उनके सामने अनेक भव्य स्तूप और मंदिर थे। मंदिरों में बुद्ध भगवान की सुन्दर मूर्तियाँ स्थापित थीं। केन्द्रीय विद्यालय में सात बड़े कक्ष थे और इसके अलावा तीन सौ अन्य कमरे थे। इनमें व्याख्यान हुआ करते थे। अभी तक खुदाई में तेरह मठ मिले हैं। वैसे इससे भी अधिक मठों के होने ही संभावना है। मठ एक से अधिक मंजिल के होते थे। कमरे में सोने के लिए पत्थर की चौकी होती थी। दीपक, पुस्तक इत्यादि रखने के लिए आले बने हुए थे। प्रत्येक मठ के आँगन में एक कुआँ बना था। आठ विशाल भवन, दस मंदिर, अनेक प्रार्थना कक्ष तथा अध्ययन कक्ष के अलावा इस परिसर में सुंदर बगीचे तथा झीलें भी थी।
प्रबंधन------
समस्त विश्वविद्यालय का प्रबंध कुलपति या प्रमुख आचार्य करते थे जो भिक्षुओं द्वारा निर्वाचित होते थे। कुलपति दो परामर्शदात्री समितियों के परामर्श से सारा प्रबंध करते थे। प्रथमसमिति शिक्षा तथा पाठ्यक्रम संबंधी कार्यदेखती थी और द्वितीय समिति सारे विश्वविद्यालय की आर्थिक व्यवस्था तथा प्रशासन की देख--भाल करती थी। विश्वविद्यालय को दान में मिलेदो सौ गाँवों से प्राप्त उपज और आय की देख--रेख यही समिति करती थी। इसी से सहस्त्रों विद्यार्थियों के भोजन, कपड़े तथा आवास का प्रबंध होता था। आचार्य इस विश्वविद्यालय में तीन श्रेणियों के आचार्य थे जो अपनी योग्यतानुसार प्रथम, द्वितीय और तृतीय श्रेणी में आते थे। नालंदा के प्रसिद्ध आचार्यों में शीलभद्र,धर्मपाल, चंद्रपाल, गुणमति और स्थिरमति प्रमुख थे। 7वीं सदी में ह्वेनसांग के समय इस विश्व विद्यालय के प्रमुख शीलभद्र थे जो एक महान आचार्य, शिक्षक और विद्वान थे। एक प्राचीन श्लोक से ज्ञात होता है, प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ आर्यभट भी इस विश्वविद्यालय के प्रमुख रहे थे। उनके लिखे जिन तीन ग्रंथों की जानकारी भी उपलब्ध है वे हैं: दशगीतिका, आर्यभट्टीय और तंत्र। ज्ञाता बताते हैं, कि उनका एक अन्य ग्रन्थ आर्यभट्ट सिद्धांत भी था, जिसके आज मात्र ३४ श्लोक ही उपलब्ध हैं। इस ग्रंथ का ७वीं शताब्दी में बहुत उपयोग होता था।
प्रवेश के नियम------
प्रवेश परीक्षा अत्यंत कठिन होती थी और उसके कारण प्रतिभाशाली विद्यार्थी ही प्रवेश पा सकते थे। उन्हें तीन कठिन परीक्षा स्तरों को उत्तीर्ण करना होता था। यह विश्व का प्रथम ऐसा दृष्टांत है। शुद्ध आचरण और संघ के नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक था।
अध्ययन-अध्यापन पद्धति-----
इस विश्वविद्यालय में आचार्य छात्रों को मौखिक व्याख्यान द्वारा शिक्षा देते थे। इसके अतिरिक्त पुस्तकों की व्याख्या भी होती थी। शास्त्रार्थ होता रहता था। दिन के हर पहर में अध्ययन तथा शंका समाधान चलता रहता था।
अध्ययन क्षेत्र------
यहाँ महायान के प्रवर्तक नागार्जुन, वसुबन्धु, असंग तथा धर्मकीर्ति की रचनाओंका सविस्तार अध्ययन होता था। वेद, वेदांत और सांख्य भी पढ़ाये जाते थे। व्याकरण, दर्शन, शल्यविद्या, ज्योतिष, योगशास्त्र तथा चिकित्साशास्त्र भी पाठ्यक्रम के अन्तर्गत थे। नालंदा कि खुदाई में मिलि अनेक काँसे की मूर्तियोँ के आधार पर कुछ विद्वानों का मत है कि कदाचित् धातु की मूर्तियाँ बनाने के विज्ञान का भी अध्ययन होता था। यहाँ खगोलशास्त्र अध्ययन के लिए एक विशेष विभाग था।
पुस्तकालय------
नालंदा में सहस्रों विद्यार्थियों और आचार्यों के अध्ययन के लिए, नौ तल का एक विराट पुस्तकालय था जिसमें ३ लाख सेअधिक पुस्तकों का अनुपम संग्रह था। इस पुस्तकालय में सभी विषयों से संबंधित पुस्तकें थी। यह 'रत्नरंजक' 'रत्नोदधि' 'रत्नसागर' नामक तीन विशाल भवनों में स्थित था। 'रत्नोदधि' पुस्तकालय में अनेक अप्राप्य हस्तलिखित पुस्तकें संग्रहीत थी। इनमें से अनेक पुस्तकों की प्रतिलिपियाँ चीनी यात्री अपने साथ ले गये थे।
Monday, February 18, 2013
रुख रुख ..क .क.क.क.क. खान की असलियत
एक विदेशी मैग्जीन को दिये साझात्कार में शाहरुख ने कहा कि भारत में उनको मुसलमान होने के नाते शक की नजर से देखा जाता है..
मैं पूछता हूँ इसे भारत से आखिर क्या चाहिये...
नाम, शौहरत, दौलत, सब कुछ भारत से मिला.. लेकिन ये उसी भारत को गाली दे
रहा है.. जिस भारत ने इसे फर्श से अर्श तक पहुंचाया... कुछ बाते इसकी बता
रहा हूँ जिनसे आप अनजान हैं...
१. पाकिस्तानी खिलाड़ियों को आईपीएल में जगह नहीं मिलने पर शाहरुख खान को निराशा हुई. बाद में शाहरुख ने कहा कि वह IPL में पाक खिलाड़ियों को शामिल करना पसंद करते है. पाकिस्तान के प्रति इतनी हमदर्दी का क्या कारण हो सकता है??
शाहरुख की इस निराशा पर सोनिया/मनमोहन सरकार कैसे चुप बैठती? पाकिस्तानी
खिलाड़ियों के सम्बंध में शाहरुख के वक्तव्य के अगले ही दिन भारत सरकार के
गृहमंत्री पी चिदंबरम ने तो स्पष्ट शब्दों में यह कहा कि भारत में
पाकिस्तान अथवा किसी भी अन्य देश का खिलाड़ी यदि खेलने आता है तो उसकी पूरी
सुरक्षा की जिम्मेदारी भारत सरकार की है
--------------------------------
२. शाहरुख खान ने बाबा रामदेव द्वारा काले धन और भ्रष्टाचार पर किये गए
आन्दोलन पर कहा था की रामदेव का अभियान राजनीति से प्रेरित है. "कोई
सप्पोर्ट नहीं करूँगा...उनका अजेंडा है...जैसे ही कोई नेता हो जाता है, वो
यह सब करने लगता है." "और जो जिसका काम है, उसको वही करना चाहिए. आज सभी को
पता है की शाहरुख खान क्रिकेट में अधिक रूचि रखने लगा है. उससे कोई पूछे
की क्या क्रिकेट उसका काम है??
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३. शाहरुख खान एफ.बी.आई की संदिग्ध लिस्ट मे है............
अल कायदा के आतंकवादीयों को फण्ड देने के लिए शाहरुख खान एफ.बी.आई की
संदिग्ध लिस्ट मे है. जब पाकिस्तान मे कुछ साल पहले बाढ़ आयी थी तब शाहरुख
खान ने ईरान , दुबई ,तुर्की लन्दन आदि कई जगहों पर जा कर स्टेज शो किया था.
मकसद था पाकिस्तान के बाढ़ पीडितो के किये पैसा जुटाना. लेकिन ये सब पैसा
अल कायदा के पास चला गया क्योकि कुल पाँच जगहों पर जो स्टेज शो हुआ था उनका
आयोजन लेबनान (बेरुत) निवासी एक हमस के नेता ने किया था.
सोचने और समझने की बात ये है की आखिर भारत से सौकडो मुसलमान हर रोज
अमेरिका जाते है लेकिन किसी को इस तरह क्यों नही पूछ-ताछ और जाँच पड़ताल की
जाती? सिर्फ शाहरुख खान को ही एफ.बी.आई क्यों रोकती है? उल्लेखनीय है की
शाहरुख खान को पहले भी तीन, चार बार एअरपोर्ट पर रोका जा चूका है. शाहरुख
खान को ऐसे रोका जाना इस बात का प्रमाण है की दाल में कुछ काला नहीं पूरी
दाल ही काली है.
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४. शाहरुख खान ने एम.एफ. हुसैन के निधन पर दुख व्यक्त करते हुए कहा था की
वो एक अमर व्यक्तित्व थे. शाहरुख को अंतिम समय में हुसैन से न मिल पाने का
बहूत अफसोस हुआ था. शाहरुख़ का कहना है कि वह हुसैन को हमेशा उन्हें याद
करेगा. शाहरुख ने एनडीटीवी से कहा, “मैं उनके बहुत करीब था और मैं यह यकीन
नहीं कर पा रहा हूं कि अब वह नहीं हैं. मैं उनके काम का बहुत बड़ा प्रशंसक
था. मेरे घर की दीवारें उनकी पेंटिंग्स से भरी हुई हैं.
(जैसा की आप जानते है की एम् एफ हुसैन ने हिन्दू देवी देवताओ का नग्न
चित्र बनाये थे और हिन्दुओं की भावनाओं को आहत किया था. उल्लेखनीय होगा की
एम् एफ हुसैन ने खुद कहा था की वो किसी का नग्न चित्र इसलिए बनाता है
क्यूंकि वो उस व्यक्ति को अपमानित करना चाहता है.)
--------------------------------
५. शाहरुख खान ने अमेरिका द्वाराना ओसामा बिन लादेन को मारे जाने पर दुःख
व्यक्त करते हुए कहा था की ये अमेरिका द्वारा किया गया जघन्य अपराध है.
ओसामा बिन लादेन को समुन्द्र में दफ़नाने की कड़ी निंदा की थी.------------------------------
६. शाहरुख खान आतंकवादियों का गुणगान करने वाले डॉ. जाकिर नायक (जो ओसामा
बिन लादेन को भी आतंकवादी नहीं मानता और उसके जघन्य अपराधो की प्रशंसा करता
है) का प्रबल समर्थक और प्रशंसक है. शाहरुख खान डॉ. जाकिर नायक के विडियो
बड़े उत्साह और निष्ठा के साथ देखता है.
--------------------------------
७. शाहरुख खान का पाकिस्तान के पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के
वरिष्ठ अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल जहीरुल इस्लाम से सम्बन्ध जग जाहिर है.
--------------------------------
८. शाहरुख खान बालीवुड फिल्म निर्माता करीम मोरानी के अच्छे मित्र है. ये
वही करीम मोरानी है जिनके खिलाफ सीबीआई ने टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला
मामले में चार्जसिट दायर किया और बाद में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गए.
--------------------------------
९. शाहरुख खान ने राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया जैसा की आप चित्र में देख सकते है.
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क्या आप अब भी सोचते है की शाहरुख की निष्ठां भारत के साथ है, और वो एक
सच्चा देशप्रेमी और देशभक्त है?? आखिर कब तक छुटेगा शाहरुख के प्रति मोह ??
धोखे में ना रहे, फिल्मो में देशभक्ति गीत गा लेने से, तिरंगे का अभिवादन
और तिरंगे को फहरा लेने से कोई देश भक्त नहीं हो जाता. जैसा की आपको पता है
की फिल्मो में चरित्र काल्पनिक होते है और उनका सच्चाई से कोई सम्बन्ध
नहीं होता.
सच्चे देशभक्त की पहचान उसकी देश के प्रति समर्पण, भावना, सच्ची निष्ठा,
लगन, देश निर्माण कार्यों में अपना सहयोग, देश भक्तो का समर्थन, ईमानदारी
और त्याग है.
आप मुझसे पूछेंगे की शाहरुख खान की दिली चाहत क्या है? तो मेरा जवाब होगा
की चित्र को देख लीजिए !! कहते है ना की समझदार के लिए इशारा काफी होता है
!!
|| अपशब्द और कुतर्क वर्जित है - तथाकथित बुद्धिजीवी और सिकुलर के लिए ||
|| जय भारत || ||जय माँ भारती ||
Sunday, February 10, 2013
कान्वेंट स्कूल का सच::
क्या आप भी अपने बच्चो को गटर (CONVENT ) में भेजते है ? ? ?
करीब २५०० सालो से यूरोप में बच्चे पालने की परंपरा नही थी बचा पैदा होते
ही उसे टोकरी में रख कर लावारिस छोड़ दिया जाता था अगर किसी चर्च की
ब्यक्ति की नजर पड़े तोह वो बच जाता था नही तोह उसे जानवर खा जाते थे |
कोन्वेंट का सच :
जिस यूरोप को हम आधुनिक व खुले विचारो वाला मानते हैं, आज से ५०० वर्ष
पहले वहाँ सामान्य व्यक्ति 'मैरेज' भी नहीं कर सकता था क्योंकि उनके बहुत
बड़े 'दार्शनिक' अरस्तू का मानना था की आम जनता मैरेज करेगी तो उनका परिवार
होगा, परिवार होगा तो उनका समाज होगा, समाज होगा तो समाज शक्तिशाली बनेगा,
शक्ति शाली हो गया तो राजपरिवार के
लिए खतरा बन जाएगा । इसलिए आम जनता को मैरेज न करने दिया जाय । बिना मैरेज
के जो बच्चे पैदा खोते थे, उन्हें पता न चले की कौन उनके माँ-बाप हैं,
इसलिए उन्हें एक सांप्रदायिक संस्था में रखा जाता था, जिसे वे कोन्वेंट
कहते थे उस संस्था के प्रमुख को ही माँ बाप समझे इसलिए उन्हें फादर, मदर,
सिस्टर कहा जाने लगा ।
यूरोप के दार्शनिक रूसो के अनुसार बच्चे पति
पत्नी के शारीरिक आनंद में बाधक है इसलिए इनको रखना अच्छा नही है किउंकि
शारीरिक आनंद ही सबकुछ होता है | और एक दशानिक प्लेटो के अनु सर हर मनुष्य
के जीबन का आखरी उद्येश्य है शारीरिक आनंद की प्राप्ति और बच्चे अगर उसमे
रुकावट है तोह उसको रखना नही छोड़ देना है |
ऐसे ही दूसरे दार्शनिक जैसे दिकारते , लेबेनित्ज़ , अरस्तु सबने अपनी बच्चो को लावारिस छोड़ा था |
ऐसे छोड़े हुए बच्चो को रखने के लिए यूरोप के राजाओ ने या सरकारों ने कुछ
संस्थाए खड़ी किया जिनको CONVENT कहा जाता है | CONVENT का माने लावारिस
बच्चो का स्कूल | CONVENT में पड़ने वाले बच्चो को माँ बाप का अहसास कराने
के लिए उहाँ पर पड़ने वाले जो अध्याप्पक होते है उनको मादर फादर, ब्रादर और
सिस्टर कहते है |
http://www.youtube.com/ watch?v=AAlwAf-frhg
Sunday, February 3, 2013
कत्लखानों का सच ....
पूरी post नहीं पढ़ सकते तो यहाँ click करे !
http://www.youtube.com/ watch?v=tgQuXz5kVHc&feature =plcp
__________________________ ________
भारत मे कुल 3600 बड़े कत्लखाने है जिनके पास पशुओ को काटने का लाईसेंस है !!
जो सरकार ने दे रखा है ! इसके इलावा 35000 से अधिक छोटे मोटे कत्लखाने है जो
गैर कानूनी ढंग से चल रहे है ! कोई कुछ पूछने वाला नहीं ! हर साल 4 करोड़ पशुओ
का कत्ल किया जाता है ! जिसने गाय ,भैंस ,सूअर,बकरा ,बकरी ,ऊंट,आदि शामिल है !
मुर्गीया कितनी काटी जाती है इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है !
गाय का कतल होने के बाद मांस उत्पन्न होता है और मांसाहारी लोग उसे भरपूर खाते
है | भारत के 20% लोग मांसाहारी है जो रोज मांस खाते है और सब तरह का मांस
खाते है | मांस के इलावा दूसरी जो चीज प्राप्त की जाती है वो है तेल ! उसे
tellow कहते है जैसे गाय के मांस से जो तेल निकलता है उसे beef tellow और सूअर
की मांस से जो तेल निकलता है उसे pork tellow कहते है |
इस तेल का सबसे ज़्यादातर उपयोग चेहरे में लगाने वाली क्रीम बनाने में होता है
जैसे Fair & Lovely , Ponds , Emami इत्यादि | ये तेल क्रीम बनाने वाली
कंपनियो द्वारा खरीदा जाता है ! और जैसा कि आप जानते है मद्रास high court मे
श्री राजीव दीक्षित जी ने विदेशी कंपनी fair and lovely के खिलाफ case जीता था
जिसमे कंपनी ने खुद माना था कि हम इस fair and lovely मे सूअर की चर्बी का तेल
मिलाते हैं !
आप यहाँ click कर देख सकते है !
http://www.youtube.com/ watch?v=tzdbFhKkxoI&feature =plcp
तो क्त्ल्खानों मे मांस और तेल के बाद जानवरो का खून निकाला जाता है ! कसाई
गाय और दूसरे पशुओ को पहले उल्टा रस्सी से टांग देते हैं फिर तेज धार वाले
चाकू से उनकी गर्दन पर वार किया जाता है और एक दम से खून बहने लगता है नीचे
उन्होने एक ड्रम रखा होता है जिसने खून इकठा
किया जाता है यहाँ click कर देख सकते हैं !
http://www.youtube.com/ watch?v=tgQuXz5kVHc&feature =plcp
तो खून का सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाता है अँग्रेजी दवा (एलोपेथि दवा) बनाने
मे ! गाय के शरीर से निकला हुआ खून ,मछ्ली के शरीर से निकला हुआ खून बैल ,बछड़ा
बछड़ी के शरीर से निकला हुआ खून से जो एक दवा बनाई जाती है उसका नाम है
dexorange ! बहुत ही popular दवा है और डाक्टर इसको खून की कमी के लिए महिलाओ
को लिखते है खासकर जब वो गर्भावस्था मे होती है क्यूंकि तब महिलाओ मे खून की
कमी आ जाती है और डाक्टर उनको जानवरो के खून से बनी दवा लिखते है क्यूंकि उनको
दवा कंपनियो से बहुत भारी कमीशन मिलता है !
इसके इलावा रक्त का प्रयोग बहुत बड़े पैमाने पर lipstick बनाने मे होता है !
इसके बाद रक्त एक और प्रयोग चाय बनाने मे बहुत सी कंपनिया करती है ! अब चाय तो
पोधे से प्राप्त होती है ! और चाय के पोधे का size उतना ही होता है जितना
गेहूं के पोधे का होता है ! उसमे पत्तिया होती है उनको तोड़ा जाता है और फिर
उसे सुखाते हैं ! तो पत्तियों को सूखाकर पैकेट मे बंद कर बेचा जाता हैं !
और पतितयो को नीचे का जो टूट कर गिरता है जिसे डेंटरल कहते हैं आखिरी हिस्सा
!लेकिन ये चाय नहीं है ! चाय तो वो ऊपर की पत्ती है ! तो फिर क्या करते है
इसको चाय जैसा बनाया जाता है ! अगर हम उस नीचले हिस्से को सूखा कर पानी मे
डाले तो चाय जैसा रंग नहीं आता ! तो ये विदेशी कपनिया brookbond,ipton,आदि
क्या करती है जानवरो के शरीर से निकला हुआ खून को इसमे मिलकर सूखा कर डिब्बे
मे बंद कर बेचती है ! तकनीकी भाषा मे इसे tea dust कहते है !इसके इलवा कुछ
कंपनिया nail polish बनाने ने प्रयोग करती है !!
मांस,तेल ,खून ,के बाद क्त्ल्खानों मे पशुओ कि हड्डीया निकलती है ! और इसका
प्रयोग toothpaste बनाने वाली कंपनिया करती है colgate,close up,pepsodent
cibaca,आदि आदि ! सबसे पहले जानवरो कि हड्डियों को इकठा किया जाता है ! उसे
सुखाया जाता है फिर एक मशीन आती है bone crasher ! इसमे इसको डालकर इसका पाउडर
बनाया जाता है और कंपनियो को बेचा जाता है !shiving cream बनाने वाली काफी
कंपनिया भी इसका प्रयोग करती हैं !
और आजकल इन हड्डियों का प्रयोग जो होने लगा है टेल्कम powder बनाने मे ! नहाने
के बाद लोग लागाते हैं उसमे इसका प्रयोग होता है ! क्यूंकि ये थोड़ा सस्ता पड़ता
है ! वैसे टेल्कम powder पथर से बनता है! और 60 से 70 रुपए किलो मिलता है और
गाय की हड्डियों का powder 25 से 30 रुपए मिल जाता है !! इस लिए कंपनिया
हड्डियों का प्रयोग करती हैं !
इसके बाद गाय ऊपर की जो चमड़ी है उसका सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाता है cricket
के ball बनाने मे ! लाल रंग की ball होती है आज कल सफ़ेद रंग मे भी आती है ! जो
गाय की चमड़ी से बनाई जाती है !गाय के बछड़े की चमड़ी का प्रयोग ज्यादा होता है
ball बनाने मे ! दूसरी एक ball होती है foot ball ! cricket ball तो छोटी होती
है ! पर foot ball बड़ी होती है इसमे और ज्यादा प्रयोग होता है गाय के चमड़े का
!!
आजकल और एक उद्योग मे इस चमड़े का बहुत प्रयोग हो रहा है !जूते चप्पल बनाने मे
! अगर आप बाजार से कोई ऐसा जूता चप्पल खरीदते है ! जो चमड़े का है और बहुत ही
soft है तो वो 100 % गाय के बछड़े के चमड़े का बना है ! और अगर hard है तो ऊंट
और घोड़े के चमड़े का ! इसके इलवा चमड़े के प्रयोग पर्स ,बेल्ट जो बांधते है !
इसके इलवा आजकल सजावट के समान ने इन का प्रयोग किया जाता है !!
___________________
तो गाय और गाय जैसे जानवरो आदि का कत्ल होता है ! तो 5 वस्तुए निकलती है !!
1) मांस निकला ------जो मांसाहारी लोग खाते है !
2)चर्बी का तेल ----जो cosmatic बनाने मे प्रयोग हुआ !
3) खून निकाला ------ जो अँग्रेजी एलोपेथी दवाइया ,चाय बनाने मे ! nailpolish
lipstick मे !
4)हडडिया निकली ------ इसका प्रयोग toothpaste, tooth powder,shiving cream मे
!aur टेलकम powder
5) चमड़ा निकला !------ इसका प्रयोग cricket ball,foot ball जूते, चप्पल, बैग
,belt आदि !
जैसा ऊपर बताया 35000 क्तलखाने है और 4 करोड़ गाय ,भैंस ,बछड़ा ,बकरी ,ऊंट आदि
काटे जाते है !
तो इनसे जितना मांस उतपन होता है वो बिकता है ! चर्बी का तेल बिकता है !खून
बिकता है हडडिया और चमड़ा बिकता है !!
तो निकलने वाली इन पाँच वस्तुओ का भरपूर प्रयोग है और एक बहुत बड़ा बाजार है इस
देश मे!!
__________________________ __________
इसके इलवा गाय के शरीर के अंदर के कुछ भाग है ! उनका भी बहुत प्रयोग होता है
!जैसे गाय मे बड़ी आंत होती है !! जैसे हमारे शरीर मे होती है ! ऐसे गाय के
शरीर मे होती है ! तो जब गाय के काटा जाता है ! तो बड़ी आंत अलग से निकली जाती
है ! और इसको पीस कर gelatin बनाई जाती है !जिसका बहुत जादा प्रयोग आइसक्रीम,
चोकोलेट,आदि
इसके इलवा Maggi . Pizza , Burger , Hotdog , Chawmin के base matirial बनाने
मे भरपूर होता है | और एक jelly आती red orange color की उसमे gelatin का बहुत
प्रयोग होता है !!आजकल जिलेटिन का उपियोग साबूदाना में होने लगा है | जो हम
उपवास मे खाते है !
__________________________ ___
तो ये सब वस्तुओ जो जानवरो के कत्ल के बाद बनाई जाती है ! और हम जाने अनजाने
मे इन का प्रयोग अपने जीवन मे कर रहे है ! और कुछ लोग अपने आप को 100 टका
हिन्दू कहते है ! शाकाहारी कहते है !और कहीं न कहीं इस मांस का प्रयोग कर रहे
है ! और अपना धर्म भ्रष्ट कर रहे है !
तो आप इन सबसे बचे ! और अपना धर्म भ्रष्ट होने से बचाये !एक बात हमेशा yaad
रखे टीवी पर देखाये जाने वाले विज्ञापन (ads) को देख अपने घर मे कोई वस्तु न
लाये ! इनमे ही सबसे बड़ा धोखा है !
जैसे चाकलेट का विगयापन आता है केडबरी nestle आदि !! coke pepsi का आता है !
fair and lovely आदि क्रीमे ! colgate closeup pepsodent आदि आदि toothpaste !!
तो आप अपने दिमाग से काम ले इन सब चीजों से बचे !! क्यूंकि विज्ञापन उनी
वस्तुओ का दिखाया जाता है जिनमे कोई क्वाल्टी नहीं होती !! देशी गाय का घी
बिना विज्ञापन के बिकता है नीम का दातुन बिना विज्ञापन के बिकता है गन्ने का
रस बिना विज्ञापन के बिकता है !!
विज्ञापन का सिद्धांत है गंजे आदमी को भी कघा बेच दो !! एक ही बात को
बार-बार,बार-बार दिखाकर आपका brain wash करना !! ताकि आप सुन सुन कर एक दिन
उसे अपने घर मे उठा लाये !!
आपने पूरी post पढ़ी आपका बहुत बहुत धन्यवाद !!
_______
और हमे अब इस देश मे ऐसी सरकार लानी है जो पहला काम यही करे कि अंग्रेज़ो के
समय से चल रहे ये सारे क्त्लखानों को बंद करने का बिल संसद मे लाये और इसे पास
करे !!
आपके मन मे जानवरो के प्रति थोड़ा भी दया का भाव तो इस link पर click कर देखे !!
http://www.youtube.com/ watch?v=tgQuXz5kVHc&feature =plcp
वन्देमातरम
जय गौ माता !
http://www.youtube.com/
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भारत मे कुल 3600 बड़े कत्लखाने है जिनके पास पशुओ को काटने का लाईसेंस है !!
जो सरकार ने दे रखा है ! इसके इलावा 35000 से अधिक छोटे मोटे कत्लखाने है जो
गैर कानूनी ढंग से चल रहे है ! कोई कुछ पूछने वाला नहीं ! हर साल 4 करोड़ पशुओ
का कत्ल किया जाता है ! जिसने गाय ,भैंस ,सूअर,बकरा ,बकरी ,ऊंट,आदि शामिल है !
मुर्गीया कितनी काटी जाती है इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है !
गाय का कतल होने के बाद मांस उत्पन्न होता है और मांसाहारी लोग उसे भरपूर खाते
है | भारत के 20% लोग मांसाहारी है जो रोज मांस खाते है और सब तरह का मांस
खाते है | मांस के इलावा दूसरी जो चीज प्राप्त की जाती है वो है तेल ! उसे
tellow कहते है जैसे गाय के मांस से जो तेल निकलता है उसे beef tellow और सूअर
की मांस से जो तेल निकलता है उसे pork tellow कहते है |
इस तेल का सबसे ज़्यादातर उपयोग चेहरे में लगाने वाली क्रीम बनाने में होता है
जैसे Fair & Lovely , Ponds , Emami इत्यादि | ये तेल क्रीम बनाने वाली
कंपनियो द्वारा खरीदा जाता है ! और जैसा कि आप जानते है मद्रास high court मे
श्री राजीव दीक्षित जी ने विदेशी कंपनी fair and lovely के खिलाफ case जीता था
जिसमे कंपनी ने खुद माना था कि हम इस fair and lovely मे सूअर की चर्बी का तेल
मिलाते हैं !
आप यहाँ click कर देख सकते है !
http://www.youtube.com/
तो क्त्ल्खानों मे मांस और तेल के बाद जानवरो का खून निकाला जाता है ! कसाई
गाय और दूसरे पशुओ को पहले उल्टा रस्सी से टांग देते हैं फिर तेज धार वाले
चाकू से उनकी गर्दन पर वार किया जाता है और एक दम से खून बहने लगता है नीचे
उन्होने एक ड्रम रखा होता है जिसने खून इकठा
किया जाता है यहाँ click कर देख सकते हैं !
http://www.youtube.com/
तो खून का सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाता है अँग्रेजी दवा (एलोपेथि दवा) बनाने
मे ! गाय के शरीर से निकला हुआ खून ,मछ्ली के शरीर से निकला हुआ खून बैल ,बछड़ा
बछड़ी के शरीर से निकला हुआ खून से जो एक दवा बनाई जाती है उसका नाम है
dexorange ! बहुत ही popular दवा है और डाक्टर इसको खून की कमी के लिए महिलाओ
को लिखते है खासकर जब वो गर्भावस्था मे होती है क्यूंकि तब महिलाओ मे खून की
कमी आ जाती है और डाक्टर उनको जानवरो के खून से बनी दवा लिखते है क्यूंकि उनको
दवा कंपनियो से बहुत भारी कमीशन मिलता है !
इसके इलावा रक्त का प्रयोग बहुत बड़े पैमाने पर lipstick बनाने मे होता है !
इसके बाद रक्त एक और प्रयोग चाय बनाने मे बहुत सी कंपनिया करती है ! अब चाय तो
पोधे से प्राप्त होती है ! और चाय के पोधे का size उतना ही होता है जितना
गेहूं के पोधे का होता है ! उसमे पत्तिया होती है उनको तोड़ा जाता है और फिर
उसे सुखाते हैं ! तो पत्तियों को सूखाकर पैकेट मे बंद कर बेचा जाता हैं !
और पतितयो को नीचे का जो टूट कर गिरता है जिसे डेंटरल कहते हैं आखिरी हिस्सा
!लेकिन ये चाय नहीं है ! चाय तो वो ऊपर की पत्ती है ! तो फिर क्या करते है
इसको चाय जैसा बनाया जाता है ! अगर हम उस नीचले हिस्से को सूखा कर पानी मे
डाले तो चाय जैसा रंग नहीं आता ! तो ये विदेशी कपनिया brookbond,ipton,आदि
क्या करती है जानवरो के शरीर से निकला हुआ खून को इसमे मिलकर सूखा कर डिब्बे
मे बंद कर बेचती है ! तकनीकी भाषा मे इसे tea dust कहते है !इसके इलवा कुछ
कंपनिया nail polish बनाने ने प्रयोग करती है !!
मांस,तेल ,खून ,के बाद क्त्ल्खानों मे पशुओ कि हड्डीया निकलती है ! और इसका
प्रयोग toothpaste बनाने वाली कंपनिया करती है colgate,close up,pepsodent
cibaca,आदि आदि ! सबसे पहले जानवरो कि हड्डियों को इकठा किया जाता है ! उसे
सुखाया जाता है फिर एक मशीन आती है bone crasher ! इसमे इसको डालकर इसका पाउडर
बनाया जाता है और कंपनियो को बेचा जाता है !shiving cream बनाने वाली काफी
कंपनिया भी इसका प्रयोग करती हैं !
और आजकल इन हड्डियों का प्रयोग जो होने लगा है टेल्कम powder बनाने मे ! नहाने
के बाद लोग लागाते हैं उसमे इसका प्रयोग होता है ! क्यूंकि ये थोड़ा सस्ता पड़ता
है ! वैसे टेल्कम powder पथर से बनता है! और 60 से 70 रुपए किलो मिलता है और
गाय की हड्डियों का powder 25 से 30 रुपए मिल जाता है !! इस लिए कंपनिया
हड्डियों का प्रयोग करती हैं !
इसके बाद गाय ऊपर की जो चमड़ी है उसका सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाता है cricket
के ball बनाने मे ! लाल रंग की ball होती है आज कल सफ़ेद रंग मे भी आती है ! जो
गाय की चमड़ी से बनाई जाती है !गाय के बछड़े की चमड़ी का प्रयोग ज्यादा होता है
ball बनाने मे ! दूसरी एक ball होती है foot ball ! cricket ball तो छोटी होती
है ! पर foot ball बड़ी होती है इसमे और ज्यादा प्रयोग होता है गाय के चमड़े का
!!
आजकल और एक उद्योग मे इस चमड़े का बहुत प्रयोग हो रहा है !जूते चप्पल बनाने मे
! अगर आप बाजार से कोई ऐसा जूता चप्पल खरीदते है ! जो चमड़े का है और बहुत ही
soft है तो वो 100 % गाय के बछड़े के चमड़े का बना है ! और अगर hard है तो ऊंट
और घोड़े के चमड़े का ! इसके इलवा चमड़े के प्रयोग पर्स ,बेल्ट जो बांधते है !
इसके इलवा आजकल सजावट के समान ने इन का प्रयोग किया जाता है !!
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तो गाय और गाय जैसे जानवरो आदि का कत्ल होता है ! तो 5 वस्तुए निकलती है !!
1) मांस निकला ------जो मांसाहारी लोग खाते है !
2)चर्बी का तेल ----जो cosmatic बनाने मे प्रयोग हुआ !
3) खून निकाला ------ जो अँग्रेजी एलोपेथी दवाइया ,चाय बनाने मे ! nailpolish
lipstick मे !
4)हडडिया निकली ------ इसका प्रयोग toothpaste, tooth powder,shiving cream मे
!aur टेलकम powder
5) चमड़ा निकला !------ इसका प्रयोग cricket ball,foot ball जूते, चप्पल, बैग
,belt आदि !
जैसा ऊपर बताया 35000 क्तलखाने है और 4 करोड़ गाय ,भैंस ,बछड़ा ,बकरी ,ऊंट आदि
काटे जाते है !
तो इनसे जितना मांस उतपन होता है वो बिकता है ! चर्बी का तेल बिकता है !खून
बिकता है हडडिया और चमड़ा बिकता है !!
तो निकलने वाली इन पाँच वस्तुओ का भरपूर प्रयोग है और एक बहुत बड़ा बाजार है इस
देश मे!!
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इसके इलवा गाय के शरीर के अंदर के कुछ भाग है ! उनका भी बहुत प्रयोग होता है
!जैसे गाय मे बड़ी आंत होती है !! जैसे हमारे शरीर मे होती है ! ऐसे गाय के
शरीर मे होती है ! तो जब गाय के काटा जाता है ! तो बड़ी आंत अलग से निकली जाती
है ! और इसको पीस कर gelatin बनाई जाती है !जिसका बहुत जादा प्रयोग आइसक्रीम,
चोकोलेट,आदि
इसके इलवा Maggi . Pizza , Burger , Hotdog , Chawmin के base matirial बनाने
मे भरपूर होता है | और एक jelly आती red orange color की उसमे gelatin का बहुत
प्रयोग होता है !!आजकल जिलेटिन का उपियोग साबूदाना में होने लगा है | जो हम
उपवास मे खाते है !
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तो ये सब वस्तुओ जो जानवरो के कत्ल के बाद बनाई जाती है ! और हम जाने अनजाने
मे इन का प्रयोग अपने जीवन मे कर रहे है ! और कुछ लोग अपने आप को 100 टका
हिन्दू कहते है ! शाकाहारी कहते है !और कहीं न कहीं इस मांस का प्रयोग कर रहे
है ! और अपना धर्म भ्रष्ट कर रहे है !
तो आप इन सबसे बचे ! और अपना धर्म भ्रष्ट होने से बचाये !एक बात हमेशा yaad
रखे टीवी पर देखाये जाने वाले विज्ञापन (ads) को देख अपने घर मे कोई वस्तु न
लाये ! इनमे ही सबसे बड़ा धोखा है !
जैसे चाकलेट का विगयापन आता है केडबरी nestle आदि !! coke pepsi का आता है !
fair and lovely आदि क्रीमे ! colgate closeup pepsodent आदि आदि toothpaste !!
तो आप अपने दिमाग से काम ले इन सब चीजों से बचे !! क्यूंकि विज्ञापन उनी
वस्तुओ का दिखाया जाता है जिनमे कोई क्वाल्टी नहीं होती !! देशी गाय का घी
बिना विज्ञापन के बिकता है नीम का दातुन बिना विज्ञापन के बिकता है गन्ने का
रस बिना विज्ञापन के बिकता है !!
विज्ञापन का सिद्धांत है गंजे आदमी को भी कघा बेच दो !! एक ही बात को
बार-बार,बार-बार दिखाकर आपका brain wash करना !! ताकि आप सुन सुन कर एक दिन
उसे अपने घर मे उठा लाये !!
आपने पूरी post पढ़ी आपका बहुत बहुत धन्यवाद !!
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और हमे अब इस देश मे ऐसी सरकार लानी है जो पहला काम यही करे कि अंग्रेज़ो के
समय से चल रहे ये सारे क्त्लखानों को बंद करने का बिल संसद मे लाये और इसे पास
करे !!
आपके मन मे जानवरो के प्रति थोड़ा भी दया का भाव तो इस link पर click कर देखे !!
http://www.youtube.com/
वन्देमातरम
जय गौ माता !
काले धन की काली दुनिया का सच.........
काले धन की काली दुनिया का सच.........
इसे इंटरनेट की दुनिया में फैला दे शायद सोयी हुई जनता जाग जाये ?
1.4 खरब अमेरिकी डॉलर यानि करीब 73 लाख करोड़ रुपये। ये पैसा उन भारतीयों का है जो सिर्फ स्विट्जरलैंड के बैंकों में पड़ा है। और इसका बड़ा हिस्सा ऐसा पैसा है जिसके बारे में ना तो सरकार को पता है और ना ही उसे कभी उसपर टैक्स मिला है यानि काला धन - ब्लैक मनी।
जिस आंकड़े की हम बात कर रहे हैं उसका मतलब ये है कि सिर्फ स्विस बैंकों में जितनी रकम जमा है वो उतनी ही बड़ी है जितनी बड़ी देश की इकोनॉमी। लेकिन ये पैसा, ब्लैक मनी इकोनॉमी का सिर्फ एक हिस्सा है। आजकल फैशन बन गया है कि हम विदेश से काले धन को वापस लाने की बात ज्यादा, देश में पैदा हो रहे काले धन की बात कम करते हैं। अंदाजा ये है कि आजादी के बाद से अपने देश में करीब 330 लाख करोड़ रुपये ब्लैक मनी के तौर पर जेनरेट हुई है।
कुछ आंदोलन का असर कहिए, कुछ राजनीतिक पार्टियों का दबाव सरकार काले धन को लेकर कुछ एक्शन में आई है। बजट में जिस जनरल एंटी एव्वॉयडेंस रुल्स (जीएएआर) के कायदे कानून से एफआईआई के होश उड़ गए थे - उसका मकसद भी काले धन पर रोक लगाना भी बताया जा रहा था। वैसे तो दबाव में वित्त मंत्री ने इसे वापस ले लिया। लेकिन जानकार मानते हैं कि इससे ब्लैक मनी को कंट्रोल करने में मदद नहीं मिलेगी।
सरकार को ब्लैक मनी जनेरेट होने से रोकने के लिए कोई और तरीका अपनाना होगा। एक चौंकाने वाले आंकड़े पर नजर डालिए। हमारे देश में 1.20 अरब लोग रहते हैं लेकिन इसमें से सिर्फ 3 करोड़ वो लोग हैं, जो टैक्स देते हैं। यानी 3 फीसदी से भी कम!! करीब 70 फीसदी किसान टैक्स के दायरे से बाहर हैं, 2 फीसदी वो लोग हैं जिनकी आमदनी टैक्स के दायरे में नहीं आती और 15 फीसदी वो लोग हैं जो टैक्स देना नहीं चाहते। यानी प्रणव मुखर्जी के पास यही 3 फीसदी लोग बचते हैं जिनके टैक्स में बदलाव कर के वो बाकि 97 फीसदी लोगों की भी जरूरतों को पूरा करते हैं। यानी जरूरत है सरकार को अपने टैक्स के दायरे को बढ़ाने की।
लेकिन सिर्फ सरकार के किए ही सब कुछ नहीं होगा। हमें और आपको भी ब्लैक मनी को रोकने में अपना योगदान देना होगा। सरकारी दफ्तर में फाइल आगे बढ़ानी हो, अपनी पसंद का घर खरीदना हो, सिग्नल पर पकड़े जाने पर ट्रैफिक हवलदार से पीछा छुड़ाना हो या फिर रेलवे में वेटिंग टिकट को कंन्फर्म करवाना हो - इन सब परेशानियों से बचने के लिए हम लोग घूस का सहारा लेते हैं। और ये घूस भी काला धन ही है।
क्या हो अगर सारा काला धन सफेद हो जाए, सिस्टम में आ जाए। इसको समझते हैं - सिर्फ स्विस बैंकों में जमा भारतीयों के पैसे से। ये रकम 1,400 अरब डॉलर के आसपास है। सरकार चाहे तो इससे भारत को एक कर्ज मुक्त देश बना सकती है। दिसंबर 2011 तक भारत पर करीब 326 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज था जिसे वो सीधे उतार सकती है। रोड, बिजली, हवाई अड्डे जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए अगले 5 साल में सरकार को 1 खरब डॉलर खर्च करना पड़ेगा।
अगर पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप में सरकार इस खर्च का 70 फीसदी भार भी उठाती है तो वो स्विस बैंक से आए करीब 700 अरब डॉलर की रकम इसपर लगा सकती है। सरकार अगर इसमें से 300 अरब डॉलर खर्च करे तो अगले 10 साल तक देश में कोई भूखा नहीं रहेगा। और इतना खर्च करने के बाद भी सरकार के पास करीब 7,400 करोड़ डॉलर बचेंगे, जिसका इस्तेमाल बेहतर शिक्षा, डिफेंस और साइंटिफिक रिसर्च में किया जा सकता है।
इसे इंटरनेट की दुनिया में फैला दे शायद सोयी हुई जनता जाग जाये ?
1.4 खरब अमेरिकी डॉलर यानि करीब 73 लाख करोड़ रुपये। ये पैसा उन भारतीयों का है जो सिर्फ स्विट्जरलैंड के बैंकों में पड़ा है। और इसका बड़ा हिस्सा ऐसा पैसा है जिसके बारे में ना तो सरकार को पता है और ना ही उसे कभी उसपर टैक्स मिला है यानि काला धन - ब्लैक मनी।
जिस आंकड़े की हम बात कर रहे हैं उसका मतलब ये है कि सिर्फ स्विस बैंकों में जितनी रकम जमा है वो उतनी ही बड़ी है जितनी बड़ी देश की इकोनॉमी। लेकिन ये पैसा, ब्लैक मनी इकोनॉमी का सिर्फ एक हिस्सा है। आजकल फैशन बन गया है कि हम विदेश से काले धन को वापस लाने की बात ज्यादा, देश में पैदा हो रहे काले धन की बात कम करते हैं। अंदाजा ये है कि आजादी के बाद से अपने देश में करीब 330 लाख करोड़ रुपये ब्लैक मनी के तौर पर जेनरेट हुई है।
कुछ आंदोलन का असर कहिए, कुछ राजनीतिक पार्टियों का दबाव सरकार काले धन को लेकर कुछ एक्शन में आई है। बजट में जिस जनरल एंटी एव्वॉयडेंस रुल्स (जीएएआर) के कायदे कानून से एफआईआई के होश उड़ गए थे - उसका मकसद भी काले धन पर रोक लगाना भी बताया जा रहा था। वैसे तो दबाव में वित्त मंत्री ने इसे वापस ले लिया। लेकिन जानकार मानते हैं कि इससे ब्लैक मनी को कंट्रोल करने में मदद नहीं मिलेगी।
सरकार को ब्लैक मनी जनेरेट होने से रोकने के लिए कोई और तरीका अपनाना होगा। एक चौंकाने वाले आंकड़े पर नजर डालिए। हमारे देश में 1.20 अरब लोग रहते हैं लेकिन इसमें से सिर्फ 3 करोड़ वो लोग हैं, जो टैक्स देते हैं। यानी 3 फीसदी से भी कम!! करीब 70 फीसदी किसान टैक्स के दायरे से बाहर हैं, 2 फीसदी वो लोग हैं जिनकी आमदनी टैक्स के दायरे में नहीं आती और 15 फीसदी वो लोग हैं जो टैक्स देना नहीं चाहते। यानी प्रणव मुखर्जी के पास यही 3 फीसदी लोग बचते हैं जिनके टैक्स में बदलाव कर के वो बाकि 97 फीसदी लोगों की भी जरूरतों को पूरा करते हैं। यानी जरूरत है सरकार को अपने टैक्स के दायरे को बढ़ाने की।
लेकिन सिर्फ सरकार के किए ही सब कुछ नहीं होगा। हमें और आपको भी ब्लैक मनी को रोकने में अपना योगदान देना होगा। सरकारी दफ्तर में फाइल आगे बढ़ानी हो, अपनी पसंद का घर खरीदना हो, सिग्नल पर पकड़े जाने पर ट्रैफिक हवलदार से पीछा छुड़ाना हो या फिर रेलवे में वेटिंग टिकट को कंन्फर्म करवाना हो - इन सब परेशानियों से बचने के लिए हम लोग घूस का सहारा लेते हैं। और ये घूस भी काला धन ही है।
क्या हो अगर सारा काला धन सफेद हो जाए, सिस्टम में आ जाए। इसको समझते हैं - सिर्फ स्विस बैंकों में जमा भारतीयों के पैसे से। ये रकम 1,400 अरब डॉलर के आसपास है। सरकार चाहे तो इससे भारत को एक कर्ज मुक्त देश बना सकती है। दिसंबर 2011 तक भारत पर करीब 326 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज था जिसे वो सीधे उतार सकती है। रोड, बिजली, हवाई अड्डे जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए अगले 5 साल में सरकार को 1 खरब डॉलर खर्च करना पड़ेगा।
अगर पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप में सरकार इस खर्च का 70 फीसदी भार भी उठाती है तो वो स्विस बैंक से आए करीब 700 अरब डॉलर की रकम इसपर लगा सकती है। सरकार अगर इसमें से 300 अरब डॉलर खर्च करे तो अगले 10 साल तक देश में कोई भूखा नहीं रहेगा। और इतना खर्च करने के बाद भी सरकार के पास करीब 7,400 करोड़ डॉलर बचेंगे, जिसका इस्तेमाल बेहतर शिक्षा, डिफेंस और साइंटिफिक रिसर्च में किया जा सकता है।
Thursday, January 31, 2013
ताजमहल........... एक छुपा हुआ सत्य........... या मकबरा है..........
बी.बी.सी. कहता है...........
ताजमहल...........
एक छुपा हुआ सत्य..........
कभी मत कहो कि.........
यह एक मकबरा है..........
नीचे जो बताया जा रहा है इनको गौर से देखने पर सच्चाई मालुम पड़ेगी
http://www.fropper.com/post/ 59990
ताजमहल का आकाशीय दृश्य......
आतंरिक पानी का कुंवा............
ताजमहल और गुम्बद के सामने का दृश्य
गुम्बद और शिखर के पास का दृश्य.....
शिखर के ठीक पास का दृश्य....
आँगन में शिखर के छायाचित्र कि बनावट.....
प्रवेश द्वार पर बने लाल कमल........
ताज के पिछले हिस्से का दृश्य और बाइस कमरों का समूह........
पीछे की खिड़कियाँ और बंद दरवाजों का दृश्य........
विशेषतः वैदिक शैली मे निर्मित गलियारा.....
मकबरे के पास संगीतालय........एक विरोधाभास.........
ऊपरी तल पर स्थित एक बंद कमरा.........
निचले तल पर स्थित संगमरमरी कमरों का समूह.........
दीवारों पर बने हुए फूल......जिनमे छुपा हुआ है ओम् ( ॐ ) ....
निचले तल पर जाने के लिए सीढियां.....
कमरों के मध्य 300फीट लंबा गलियारा..
निचले तल के२२गुप्त कमरों मे सेएककमरा...
२२ गुप्त कमरों में से एक कमरे का आतंरिक दृश्य.......
अन्य बंद कमरों में से एक आतंरिक दृश्य..
एक बंद कमरे की वैदिक शैली में निर्मित छत......
ईंटों से बंद किया गया विशाल रोशनदान .....
दरवाजों में लगी गुप्त दीवार,जिससे अन्य कमरों का सम्पर्क था.....
बहुत से साक्ष्यों को छुपाने के लिए,गुप्त ईंटों से बंद किया गया दरवाजा......
बुरहानपुर मध्य प्रदेश मे स्थित महल जहाँ मुमताज-उल-ज़मानी कि मृत्यु हुई थी.......
बादशाह नामा के अनुसार,, इस स्थान पर दफनाया गया
अब कृपया इसे पढ़ें .........
प्रो.पी. एन. ओक. को छोड़ कर किसी ने कभी भी इस कथन को चुनौती नही दी कि........
"ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था"
प्रो.ओक. अपनी पुस्तक "TAJ MAHAL - THE TRUE STORY" द्वारा इस
बात में विश्वास रखते हैं कि,--
सारा विश्व इस धोखे में है कि खूबसूरत इमारत ताजमहल को मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने बनवाया था.....
ओक कहते हैं कि......
ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर,एक हिंदू प्राचीन शिव मन्दिर है जिसे तब तेजो महालय कहा जाता था.
अपने अनुसंधान के दौरान ओक ने खोजा कि इस शिव मन्दिर को शाहजहाँ ने जयपुर के महाराज जयसिंह से अवैध तरीके से छीन लिया था और इस पर अपना कब्ज़ा कर लिया था,,
=>शाहजहाँ के दरबारी लेखक "मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी "ने अपने "बादशाहनामा" में मुग़ल शासक बादशाह का सम्पूर्ण वृतांत 1000 से ज़्यादा पृष्ठों मे लिखा है,,जिसके खंड एक के पृष्ठ 402 और 403 पर इस बात का उल्लेख है कि, शाहजहाँ की बेगम मुमताज-उल-ज़मानी जिसे मृत्यु के बाद, बुरहानपुर मध्य प्रदेश में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था और इसके ०६ माह बाद,तारीख़ 15 ज़मदी-उल- अउवल दिन शुक्रवार,को अकबराबाद आगरा लाया गया फ़िर उसे महाराजा जयसिंह से लिए गए,आगरा में स्थित एक असाधारण रूप से सुंदर और शानदार भवन (इमारते आलीशान) मे पुनः दफनाया गया,लाहौरी के अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों कि इस आली मंजिल से बेहद प्यार करते थे ,पर बादशाह के दबाव मे वह इसे देने के लिए तैयार हो गए थे.
इस बात कि पुष्टि के लिए यहाँ ये बताना अत्यन्त आवश्यक है कि जयपुर के पूर्व महाराज के गुप्त संग्रह में वे दोनो आदेश अभी तक रक्खे हुए हैं जो शाहजहाँ द्वारा ताज भवन समर्पित करने के लिए राजा
जयसिंह को दिए गए थे.......
=>यह सभी जानते हैं कि मुस्लिम शासकों के समय प्रायः मृत दरबारियों और राजघरानों के लोगों को दफनाने के लिए, छीनकर कब्जे में लिए गए मंदिरों और भवनों का प्रयोग किया जाता था ,
उदाहरनार्थ हुमायूँ, अकबर, एतमाउददौला और सफदर जंग ऐसे ही भवनों मे दफनाये गए हैं ....
=>प्रो. ओक कि खोज ताजमहल के नाम से प्रारम्भ होती है---------
="महल" शब्द, अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में
भवनों के लिए प्रयोग नही किया जाता...
यहाँ यह व्याख्या करना कि महल शब्द मुमताज महल से लिया गया है......वह कम से कम दो प्रकार से तर्कहीन है---------
पहला -----शाहजहाँ कि पत्नी का नाम मुमताज महल कभी नही था,,,बल्कि उसका नाम मुमताज-उल-ज़मानी था ...
और दूसरा-----किसी भवन का नामकरण किसी महिला के नाम के आधार पर रखने के लिए केवल अन्तिम आधे भाग (ताज)का ही प्रयोग किया जाए और प्रथम अर्ध भाग (मुम) को छोड़ दिया जाए,,,यह समझ से परे है...
प्रो.ओक दावा करते हैं कि,ताजमहल नाम तेजो महालय (भगवान शिव का महल) का बिगड़ा हुआ संस्करण है, साथ ही साथ ओक कहते हैं कि----
मुमताज और शाहजहाँ कि प्रेम कहानी,चापलूस इतिहासकारों की भयंकर भूल और लापरवाह पुरातत्वविदों की सफ़ाई से स्वयं गढ़ी गई कोरी अफवाह मात्र है क्योंकि शाहजहाँ के समय का कम से कम एक शासकीय अभिलेख इस प्रेम कहानी की पुष्टि नही करता है.....
इसके अतिरिक्त बहुत से प्रमाण ओक के कथन का प्रत्यक्षतः समर्थन कर रहे हैं......
तेजो महालय (ताजमहल) मुग़ल बादशाह के युग से पहले बना था और यह भगवान् शिव को समर्पित था तथा आगरा के राजपूतों द्वारा पूजा जाता था-----
==>न्यूयार्क के पुरातत्वविद प्रो. मर्विन मिलर ने ताज के यमुना की तरफ़ के दरवाजे की लकड़ी की कार्बन डेटिंग के आधार पर 1985 में यह सिद्ध किया कि यह दरवाजा सन् 1359 के आसपास अर्थात् शाहजहाँ के काल से लगभग 300 वर्ष पुराना है...
==>मुमताज कि मृत्यु जिस वर्ष (1631) में हुई थी उसी वर्ष के अंग्रेज भ्रमण कर्ता पीटर मुंडी का लेख भी इसका समर्थन करता है कि ताजमहल मुग़ल बादशाह के पहले का एक अति महत्वपूर्ण भवन था......
==>यूरोपियन यात्री जॉन अल्बर्ट मैनडेल्स्लो ने सन् 1638 (मुमताज कि मृत्यु के 07 साल बाद) में आगरा भ्रमण किया और इस शहर के सम्पूर्ण जीवन वृत्तांत का वर्णन किया,,परन्तु उसने ताज के बनने का कोई भी सन्दर्भ नही प्रस्तुत किया,जबकि भ्रांतियों मे यह कहा जाता है कि ताज का निर्माण कार्य 1631 से 1651 तक जोर शोर से चल रहा था......
==>फ्रांसीसी यात्री फविक्स बर्निअर एम.डी. जो औरंगजेब द्वारा गद्दीनशीन होने के समय भारत आया था और लगभग दस साल यहाँ रहा,के लिखित विवरण से पता चलता है कि,औरंगजेब के शासन के समय यह झूठ फैलाया जाना शुरू किया गया कि ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था.......
प्रो. ओक. बहुत सी आकृतियों और शिल्प सम्बन्धी असंगताओं को इंगित करते हैं जो इस विश्वास का समर्थन करते हैं कि,ताजमहल विशाल मकबरा न होकर विशेषतः हिंदू शिव मन्दिर है.......
आज भी ताजमहल के बहुत से कमरे शाहजहाँ के काल से बंद पड़े हैं,जो आम जनता की पहुँच से परे हैं
प्रो. ओक., जोर देकर कहते हैं कि हिंदू मंदिरों में ही पूजा एवं धार्मिक संस्कारों के लिए भगवान् शिव की मूर्ति,त्रिशूल,कलश और ॐ आदि वस्तुएं प्रयोग की जाती हैं.......
==>ताज महल के सम्बन्ध में यह आम किवदंत्ती प्रचलित है कि ताजमहल के अन्दर मुमताज की कब्र पर सदैव बूँद बूँद कर पानी टपकता रहता है,, यदि यह सत्य है तो पूरे विश्व मे किसी किभी कब्र पर बूँद बूँद कर पानी नही टपकाया जाता,जबकि प्रत्येक हिंदू शिव मन्दिर में ही शिवलिंग पर बूँद बूँद कर पानी टपकाने की व्यवस्था की जाती है,फ़िर ताजमहल (मकबरे) में बूँद बूँद कर पानी टपकाने का क्या मतलब....????
राजनीतिक भर्त्सना के डर से इंदिरा सरकार ने ओक की सभी पुस्तकें स्टोर्स से वापस ले लीं थीं और इन पुस्तकों के प्रथम संस्करण को छापने वाले संपादकों को भयंकर परिणाम भुगत लेने की धमकियां भी दी गईं थीं....
प्रो. पी. एन. ओक के अनुसंधान को ग़लत या सिद्ध करने का केवल एक ही रास्ता है कि वर्तमान केन्द्र सरकार बंद कमरों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में खुलवाए, और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दे ....
ज़रा सोचिये....!!!!!!
कि यदि ओक का अनुसंधान पूर्णतयः सत्य है तो किसी देशी राजा के बनवाए गए संगमरमरी आकर्षण वाले खूबसूरत,शानदार एवं विश्व के महान आश्चर्यों में से एक भवन, "तेजो महालय" को बनवाने का श्रेय बाहर से आए मुग़ल बादशाह शाहजहाँ को क्यों......?????
तथा......
इससे जुड़ी तमाम यादों का सम्बन्ध मुमताज-उल-ज़मानी से क्यों........???? ???
आंसू टपक रहे हैं, हवेली के बाम से,,,,,,,,
रूहें लिपट के रोटी हैं हर खासों आम से.....
अपनों ने बुना था हमें,कुदरत के काम से,,,,
फ़िर भी यहाँ जिंदा हैं हम गैरों के नाम से......
जय महाकाल
ज्यादा से ज्यादा शेयर करें..
ताजमहल...........
एक छुपा हुआ सत्य..........
कभी मत कहो कि.........
यह एक मकबरा है..........
नीचे जो बताया जा रहा है इनको गौर से देखने पर सच्चाई मालुम पड़ेगी
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ताजमहल का आकाशीय दृश्य......
आतंरिक पानी का कुंवा............
ताजमहल और गुम्बद के सामने का दृश्य
गुम्बद और शिखर के पास का दृश्य.....
शिखर के ठीक पास का दृश्य....
आँगन में शिखर के छायाचित्र कि बनावट.....
प्रवेश द्वार पर बने लाल कमल........
ताज के पिछले हिस्से का दृश्य और बाइस कमरों का समूह........
पीछे की खिड़कियाँ और बंद दरवाजों का दृश्य........
विशेषतः वैदिक शैली मे निर्मित गलियारा.....
मकबरे के पास संगीतालय........एक विरोधाभास.........
ऊपरी तल पर स्थित एक बंद कमरा.........
निचले तल पर स्थित संगमरमरी कमरों का समूह.........
दीवारों पर बने हुए फूल......जिनमे छुपा हुआ है ओम् ( ॐ ) ....
निचले तल पर जाने के लिए सीढियां.....
कमरों के मध्य 300फीट लंबा गलियारा..
निचले तल के२२गुप्त कमरों मे सेएककमरा...
२२ गुप्त कमरों में से एक कमरे का आतंरिक दृश्य.......
अन्य बंद कमरों में से एक आतंरिक दृश्य..
एक बंद कमरे की वैदिक शैली में निर्मित छत......
ईंटों से बंद किया गया विशाल रोशनदान .....
दरवाजों में लगी गुप्त दीवार,जिससे अन्य कमरों का सम्पर्क था.....
बहुत से साक्ष्यों को छुपाने के लिए,गुप्त ईंटों से बंद किया गया दरवाजा......
बुरहानपुर मध्य प्रदेश मे स्थित महल जहाँ मुमताज-उल-ज़मानी कि मृत्यु हुई थी.......
बादशाह नामा के अनुसार,, इस स्थान पर दफनाया गया
अब कृपया इसे पढ़ें .........
प्रो.पी. एन. ओक. को छोड़ कर किसी ने कभी भी इस कथन को चुनौती नही दी कि........
"ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था"
प्रो.ओक. अपनी पुस्तक "TAJ MAHAL - THE TRUE STORY" द्वारा इस
बात में विश्वास रखते हैं कि,--
सारा विश्व इस धोखे में है कि खूबसूरत इमारत ताजमहल को मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने बनवाया था.....
ओक कहते हैं कि......
ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर,एक हिंदू प्राचीन शिव मन्दिर है जिसे तब तेजो महालय कहा जाता था.
अपने अनुसंधान के दौरान ओक ने खोजा कि इस शिव मन्दिर को शाहजहाँ ने जयपुर के महाराज जयसिंह से अवैध तरीके से छीन लिया था और इस पर अपना कब्ज़ा कर लिया था,,
=>शाहजहाँ के दरबारी लेखक "मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी "ने अपने "बादशाहनामा" में मुग़ल शासक बादशाह का सम्पूर्ण वृतांत 1000 से ज़्यादा पृष्ठों मे लिखा है,,जिसके खंड एक के पृष्ठ 402 और 403 पर इस बात का उल्लेख है कि, शाहजहाँ की बेगम मुमताज-उल-ज़मानी जिसे मृत्यु के बाद, बुरहानपुर मध्य प्रदेश में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था और इसके ०६ माह बाद,तारीख़ 15 ज़मदी-उल- अउवल दिन शुक्रवार,को अकबराबाद आगरा लाया गया फ़िर उसे महाराजा जयसिंह से लिए गए,आगरा में स्थित एक असाधारण रूप से सुंदर और शानदार भवन (इमारते आलीशान) मे पुनः दफनाया गया,लाहौरी के अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों कि इस आली मंजिल से बेहद प्यार करते थे ,पर बादशाह के दबाव मे वह इसे देने के लिए तैयार हो गए थे.
इस बात कि पुष्टि के लिए यहाँ ये बताना अत्यन्त आवश्यक है कि जयपुर के पूर्व महाराज के गुप्त संग्रह में वे दोनो आदेश अभी तक रक्खे हुए हैं जो शाहजहाँ द्वारा ताज भवन समर्पित करने के लिए राजा
जयसिंह को दिए गए थे.......
=>यह सभी जानते हैं कि मुस्लिम शासकों के समय प्रायः मृत दरबारियों और राजघरानों के लोगों को दफनाने के लिए, छीनकर कब्जे में लिए गए मंदिरों और भवनों का प्रयोग किया जाता था ,
उदाहरनार्थ हुमायूँ, अकबर, एतमाउददौला और सफदर जंग ऐसे ही भवनों मे दफनाये गए हैं ....
=>प्रो. ओक कि खोज ताजमहल के नाम से प्रारम्भ होती है---------
="महल" शब्द, अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में
भवनों के लिए प्रयोग नही किया जाता...
यहाँ यह व्याख्या करना कि महल शब्द मुमताज महल से लिया गया है......वह कम से कम दो प्रकार से तर्कहीन है---------
पहला -----शाहजहाँ कि पत्नी का नाम मुमताज महल कभी नही था,,,बल्कि उसका नाम मुमताज-उल-ज़मानी था ...
और दूसरा-----किसी भवन का नामकरण किसी महिला के नाम के आधार पर रखने के लिए केवल अन्तिम आधे भाग (ताज)का ही प्रयोग किया जाए और प्रथम अर्ध भाग (मुम) को छोड़ दिया जाए,,,यह समझ से परे है...
प्रो.ओक दावा करते हैं कि,ताजमहल नाम तेजो महालय (भगवान शिव का महल) का बिगड़ा हुआ संस्करण है, साथ ही साथ ओक कहते हैं कि----
मुमताज और शाहजहाँ कि प्रेम कहानी,चापलूस इतिहासकारों की भयंकर भूल और लापरवाह पुरातत्वविदों की सफ़ाई से स्वयं गढ़ी गई कोरी अफवाह मात्र है क्योंकि शाहजहाँ के समय का कम से कम एक शासकीय अभिलेख इस प्रेम कहानी की पुष्टि नही करता है.....
इसके अतिरिक्त बहुत से प्रमाण ओक के कथन का प्रत्यक्षतः समर्थन कर रहे हैं......
तेजो महालय (ताजमहल) मुग़ल बादशाह के युग से पहले बना था और यह भगवान् शिव को समर्पित था तथा आगरा के राजपूतों द्वारा पूजा जाता था-----
==>न्यूयार्क के पुरातत्वविद प्रो. मर्विन मिलर ने ताज के यमुना की तरफ़ के दरवाजे की लकड़ी की कार्बन डेटिंग के आधार पर 1985 में यह सिद्ध किया कि यह दरवाजा सन् 1359 के आसपास अर्थात् शाहजहाँ के काल से लगभग 300 वर्ष पुराना है...
==>मुमताज कि मृत्यु जिस वर्ष (1631) में हुई थी उसी वर्ष के अंग्रेज भ्रमण कर्ता पीटर मुंडी का लेख भी इसका समर्थन करता है कि ताजमहल मुग़ल बादशाह के पहले का एक अति महत्वपूर्ण भवन था......
==>यूरोपियन यात्री जॉन अल्बर्ट मैनडेल्स्लो ने सन् 1638 (मुमताज कि मृत्यु के 07 साल बाद) में आगरा भ्रमण किया और इस शहर के सम्पूर्ण जीवन वृत्तांत का वर्णन किया,,परन्तु उसने ताज के बनने का कोई भी सन्दर्भ नही प्रस्तुत किया,जबकि भ्रांतियों मे यह कहा जाता है कि ताज का निर्माण कार्य 1631 से 1651 तक जोर शोर से चल रहा था......
==>फ्रांसीसी यात्री फविक्स बर्निअर एम.डी. जो औरंगजेब द्वारा गद्दीनशीन होने के समय भारत आया था और लगभग दस साल यहाँ रहा,के लिखित विवरण से पता चलता है कि,औरंगजेब के शासन के समय यह झूठ फैलाया जाना शुरू किया गया कि ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था.......
प्रो. ओक. बहुत सी आकृतियों और शिल्प सम्बन्धी असंगताओं को इंगित करते हैं जो इस विश्वास का समर्थन करते हैं कि,ताजमहल विशाल मकबरा न होकर विशेषतः हिंदू शिव मन्दिर है.......
आज भी ताजमहल के बहुत से कमरे शाहजहाँ के काल से बंद पड़े हैं,जो आम जनता की पहुँच से परे हैं
प्रो. ओक., जोर देकर कहते हैं कि हिंदू मंदिरों में ही पूजा एवं धार्मिक संस्कारों के लिए भगवान् शिव की मूर्ति,त्रिशूल,कलश और ॐ आदि वस्तुएं प्रयोग की जाती हैं.......
==>ताज महल के सम्बन्ध में यह आम किवदंत्ती प्रचलित है कि ताजमहल के अन्दर मुमताज की कब्र पर सदैव बूँद बूँद कर पानी टपकता रहता है,, यदि यह सत्य है तो पूरे विश्व मे किसी किभी कब्र पर बूँद बूँद कर पानी नही टपकाया जाता,जबकि प्रत्येक हिंदू शिव मन्दिर में ही शिवलिंग पर बूँद बूँद कर पानी टपकाने की व्यवस्था की जाती है,फ़िर ताजमहल (मकबरे) में बूँद बूँद कर पानी टपकाने का क्या मतलब....????
राजनीतिक भर्त्सना के डर से इंदिरा सरकार ने ओक की सभी पुस्तकें स्टोर्स से वापस ले लीं थीं और इन पुस्तकों के प्रथम संस्करण को छापने वाले संपादकों को भयंकर परिणाम भुगत लेने की धमकियां भी दी गईं थीं....
प्रो. पी. एन. ओक के अनुसंधान को ग़लत या सिद्ध करने का केवल एक ही रास्ता है कि वर्तमान केन्द्र सरकार बंद कमरों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में खुलवाए, और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दे ....
ज़रा सोचिये....!!!!!!
कि यदि ओक का अनुसंधान पूर्णतयः सत्य है तो किसी देशी राजा के बनवाए गए संगमरमरी आकर्षण वाले खूबसूरत,शानदार एवं विश्व के महान आश्चर्यों में से एक भवन, "तेजो महालय" को बनवाने का श्रेय बाहर से आए मुग़ल बादशाह शाहजहाँ को क्यों......?????
तथा......
इससे जुड़ी तमाम यादों का सम्बन्ध मुमताज-उल-ज़मानी से क्यों........???? ???
आंसू टपक रहे हैं, हवेली के बाम से,,,,,,,,
रूहें लिपट के रोटी हैं हर खासों आम से.....
अपनों ने बुना था हमें,कुदरत के काम से,,,,
फ़िर भी यहाँ जिंदा हैं हम गैरों के नाम से......
जय महाकाल
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ताज महल एक शिव मंदिर है तेजो महालय !
12 ज्योतिर्लिग में से एक नाग नागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग
जिसे जयपुर के राजा जय सिंह से शाहजहाँ ने हड़प लिया था !
सच इस लिंक में है"-
Taj Mahal a Shiv Temple !
http://pdfcast.org/pdf/ taj-mahal-tejo-mahalaya-shiva-m andir-hai
http://www.stephen-knapp.com/ was_the_taj_mahal_a_vedic_templ e.htm
http://www.stephen-knapp.com/
http://www.youtube.com/ watch?v=CECCkLOsFWA&feature=rel ated
परम आदर्श चंद्रशेखर आज़ाद की मौत से जुडी फ़ाइल ....
चंद्रशेखर आज़ाद की मौत से जुडी फ़ाइल आज भी लखनऊ के सीआइडी ऑफिस १- गोखले मार्ग मे रखी है .. उस फ़ाइल को नेहरु ने सार्वजनिक करने से मना कर दिया ..
इतना ही नही नेहरु ने यूपी के प्रथम मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पन्त को उस
फ़ाइल को नष्ट करने का आदेश दिया था .. लेकिन चूँकि पन्त जी खुद एक महान क्रांतिकारी रहे थे इसलिए उन्होंने नेहरु को झूठी सुचना दी की उस फ़ाइल को नष्ट कर दिया गया है ..
उस फ़ाइल मे इलाहब...ाद के तत्कालीन पुलिस सुपरिटेंडेंट मिस्टर नॉट वावर के बयान दर्ज है जिसने अगुवाई मे ही पुलिस ने अल्फ्रेड पार्क मे बैठे आजाद को घेर लिया था और एक भीषण गोलीबारी के बाद आज़ाद शहीद हुए |
नॉट वावर ने अपने बयान मे कहा है कि " मै खाना खा रहा था तभी नेहरु का एक संदेशवाहक आया उसने कहा कि नेहरु जी ने एक संदेश दिया है कि आपका शिकार अल्फ्रेड पार्क मे है और तीन बजे तक रहेगा .. मै कुछ समझा नही फिर मैं तुरंत आनंद भवन भागा और नेहरु ने बताया कि अभी आज़ाद अपने साथियो के साथ आया था वो रूस भागने के लिए बारह सौ रूपये मांग रहा था मैंने उसे अल्फ्रेड पार्क मे बैठने को कहा है "
फिर मै बिना देरी किये पुलिस बल लेकर अल्फ्रेड पार्क को चारो ओर घेर लिया और आजाद को आत्मसमर्पण करने को कहा लेकिन उसने अपना माउजर निकालकर हमारे एक इंस्पेक्टर को मार दिया फिर मैंने भी गोली चलाने का हुकम दिया .. पांच गोली से आजाद ने हमारे पांच लोगो को मारा फिर छठी गोली अपने कनपटी पर मार दी |"
27 फरवरी 1931, सुबह आजाद नेहरु से आनंद भवन में उनसे भगत सिंह की फांसी की सजा को उम्र केद में बदलवाने के लिए मिलने गये, क्यों की वायसराय लार्ड इरविन से नेहरु के अच्छे ''सम्बन्ध'' थे, पर नेहरु ने आजाद की बात नही मानी, दोनों में आपस में तीखी बहस हुयी, और नेहरु ने तुरंत आजाद को आनंद भवन से निकल जाने को कहा । आनंद भवन से निकल कर आजाद सीधे अपनी साइकिल से अल्फ्रेड पार्क गये ।
इसी पार्क में नाट बाबर के साथ मुठभेड़ में वो शहीद हुए थे ।अब आप अंदाजा लगा लीजिये की उनकी मुखबरी किसने की ? आजाद के लाहोर में होने की जानकारी सिर्फ नेहरु को थी । अंग्रेजो को उनके बारे में जानकारी किसने दी ? जिसे अंग्रेज शासन इतने सालो तक पकड़ नही सका,तलाश नही सका था, उसे अंग्रेजो ने 40 मिनट में तलाश कर, अल्फ्रेड पार्क में घेर लिया । वो भी पूरी पुलिस फ़ोर्स और तेयारी के साथ ?
आज़ाद पहले कानपूर गणेश शंकर विद्यार्थी जी के पास गए फिर वहाँ तय हुआ की स्टालिन की मदद ली जाये क्योकि स्टालिन ने खुद ही आजाद को रूस बुलाया था . सभी साथियो को रूस जाने के लिए बारह सौ रूपये की जरूरत थी .जो उनके पास नही था इसलिए आजाद ने प्रस्ताव रखा कि क्यों न नेहरु से पैसे माँगा जाये .लेकिन इस प्रस्ताव का सभी ने विरोध किया और कहा कि नेहरु तो अंग्रेजो का दलाल है लेकिन आजाद ने कहा कुछ भी हो आखिर उसके सीने मे भी तो एक भारतीय दिल है वो मना नही करेगा |
फिर आज़ाद अकेले ही कानपूर से इलाहबाद रवाना हो गए और आनंद भवन गए उनको सामने देखकर नेहरु चौक उठा | आजाद ने उसे बताया कि हम सब स्टालिन के पास रूस जाना चाहते है क्योकि उन्होंने हमे बुलाया है और मदद करने का प्रस्ताव भेजा है .पहले तो नेहरु काफी गुस्सा हुआ फिर तुरंत ही मान गया और कहा कि तुम अल्फ्रेड पार्क बैठो मेरा आदमी तीन बजे तुम्हे वहाँ ही पैसे दे देगा.......
इसके बाद क्या हुआ शायद दोहराने की जरुरत नहीं ............
वन्दे मातरम् जय आजाद
इतना ही नही नेहरु ने यूपी के प्रथम मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पन्त को उस
फ़ाइल को नष्ट करने का आदेश दिया था .. लेकिन चूँकि पन्त जी खुद एक महान क्रांतिकारी रहे थे इसलिए उन्होंने नेहरु को झूठी सुचना दी की उस फ़ाइल को नष्ट कर दिया गया है ..
उस फ़ाइल मे इलाहब...ाद के तत्कालीन पुलिस सुपरिटेंडेंट मिस्टर नॉट वावर के बयान दर्ज है जिसने अगुवाई मे ही पुलिस ने अल्फ्रेड पार्क मे बैठे आजाद को घेर लिया था और एक भीषण गोलीबारी के बाद आज़ाद शहीद हुए |
नॉट वावर ने अपने बयान मे कहा है कि " मै खाना खा रहा था तभी नेहरु का एक संदेशवाहक आया उसने कहा कि नेहरु जी ने एक संदेश दिया है कि आपका शिकार अल्फ्रेड पार्क मे है और तीन बजे तक रहेगा .. मै कुछ समझा नही फिर मैं तुरंत आनंद भवन भागा और नेहरु ने बताया कि अभी आज़ाद अपने साथियो के साथ आया था वो रूस भागने के लिए बारह सौ रूपये मांग रहा था मैंने उसे अल्फ्रेड पार्क मे बैठने को कहा है "
फिर मै बिना देरी किये पुलिस बल लेकर अल्फ्रेड पार्क को चारो ओर घेर लिया और आजाद को आत्मसमर्पण करने को कहा लेकिन उसने अपना माउजर निकालकर हमारे एक इंस्पेक्टर को मार दिया फिर मैंने भी गोली चलाने का हुकम दिया .. पांच गोली से आजाद ने हमारे पांच लोगो को मारा फिर छठी गोली अपने कनपटी पर मार दी |"
27 फरवरी 1931, सुबह आजाद नेहरु से आनंद भवन में उनसे भगत सिंह की फांसी की सजा को उम्र केद में बदलवाने के लिए मिलने गये, क्यों की वायसराय लार्ड इरविन से नेहरु के अच्छे ''सम्बन्ध'' थे, पर नेहरु ने आजाद की बात नही मानी, दोनों में आपस में तीखी बहस हुयी, और नेहरु ने तुरंत आजाद को आनंद भवन से निकल जाने को कहा । आनंद भवन से निकल कर आजाद सीधे अपनी साइकिल से अल्फ्रेड पार्क गये ।
इसी पार्क में नाट बाबर के साथ मुठभेड़ में वो शहीद हुए थे ।अब आप अंदाजा लगा लीजिये की उनकी मुखबरी किसने की ? आजाद के लाहोर में होने की जानकारी सिर्फ नेहरु को थी । अंग्रेजो को उनके बारे में जानकारी किसने दी ? जिसे अंग्रेज शासन इतने सालो तक पकड़ नही सका,तलाश नही सका था, उसे अंग्रेजो ने 40 मिनट में तलाश कर, अल्फ्रेड पार्क में घेर लिया । वो भी पूरी पुलिस फ़ोर्स और तेयारी के साथ ?
आज़ाद पहले कानपूर गणेश शंकर विद्यार्थी जी के पास गए फिर वहाँ तय हुआ की स्टालिन की मदद ली जाये क्योकि स्टालिन ने खुद ही आजाद को रूस बुलाया था . सभी साथियो को रूस जाने के लिए बारह सौ रूपये की जरूरत थी .जो उनके पास नही था इसलिए आजाद ने प्रस्ताव रखा कि क्यों न नेहरु से पैसे माँगा जाये .लेकिन इस प्रस्ताव का सभी ने विरोध किया और कहा कि नेहरु तो अंग्रेजो का दलाल है लेकिन आजाद ने कहा कुछ भी हो आखिर उसके सीने मे भी तो एक भारतीय दिल है वो मना नही करेगा |
फिर आज़ाद अकेले ही कानपूर से इलाहबाद रवाना हो गए और आनंद भवन गए उनको सामने देखकर नेहरु चौक उठा | आजाद ने उसे बताया कि हम सब स्टालिन के पास रूस जाना चाहते है क्योकि उन्होंने हमे बुलाया है और मदद करने का प्रस्ताव भेजा है .पहले तो नेहरु काफी गुस्सा हुआ फिर तुरंत ही मान गया और कहा कि तुम अल्फ्रेड पार्क बैठो मेरा आदमी तीन बजे तुम्हे वहाँ ही पैसे दे देगा.......
इसके बाद क्या हुआ शायद दोहराने की जरुरत नहीं ............
वन्दे मातरम् जय आजाद
एक फैसला हुआ हिन्दुस्तान के इतिहास में जो कभी नहीं हुआ वो हो गया .....
जय
श्री राम ! जो हज़ारों साल से नहीं हुआ वो हुआ और भरपूर हुआ वो तारिख
हिंदुस्तान के लिए एक ऐतिहासिक दिन है, आज भारत भाग्य विधाता आपके लिए
इतिहास के कुछ पन्ने पलट रहा है..
वो स्वर्णिम दिन था ३० अगस्त २००७, माननिय एस.एन.श्रीवास्तव की अदालत,
इलाहाबाद उच्च न्याय्यालय- एक फैसला हुआ और हिन्दुस्तान के इतिहास में जो
कभी नहीं हुआ वो हो गया ... न्यायमूर्ति श्रीवास्तव जी ने एक केस का फैसला
सुनाते समय अपने आदेश में लिखा .-
--
" जब भारत में राष्ट्रिय
झंडा, राष्ट्रिय गान, राष्ट्रिय पक्षी, राष्ट्रिय पशु, राष्ट्रिय फूल हो
सकतें हैं तो राष्ट्रिय धर्म शास्त्र क्यूँ नहीं हो सकता ? आदि काल से
हमारे देश में "गीता" हर एक भारतीय को सम्पूर्ण शिक्षा देती आई है,
अस्तु अत: श्रीमद भागवत गीता हिन्दुस्तान का "राष्ट्रिय धर्म शास्त्र " होना चाहिए "
लेकिन जैसा कि हमेशा होता आया है इस देश में वो तथाकथित सेकुलर लोग जिनकी
वजह से हमारा देश वर्षों तक गुलामी में रहा, वही लोग माननिय जज महोदय जी ने
जो आदेश दिया उसकी लीपापोती में लग गए --बानगी देखिये --
सुप्रीम
कोर्ट के मुख्यनयाधीश -माननिये वी.एन.खरे --"जो उन्होंने (जज एस.एन )कहा वो
क़ानून सम्मत नहीं है और इस सेकुलर देश में कोई धर्म राष्ट्रिय नहीं हो
सकता ."
पूर्व क़ानून मंत्री - शांति भूषन --"एक पोलिसी बनानी
चाहिए कि इस तरह के गैरकानूनी निर्णय देने वाले जज कभी नियुक्त नहीं होने
चाहिए "
तत्कालीन क़ानून मंत्री -एच.आर.भारद्वाज -" कोई भी
जिम्मेदार जज इस तरह के धर्म- विशेष आधारित फैसले नहीं दे सकता ये एक
धर्मनिरपेक्ष देश के लिए मान्य नहीं है "
मित्रों अब आप लोग ही इस बात का निर्णय लें कि क्या ये सरकार और शन्ति भूषण जैसे लोग किसी कौम का भला कर सकते हैं ? ..
उल्लेखनीय है कि इन्ही एस.एन.श्रीवास्तव जी ने ५ अप्रैल २००७ को एक फैसले
में कहा था कि "उत्तर प्रदेश में मुसलमान अल्पसंख्यक नहीं है अत: उनके
शिक्षा संस्थानों को विशेष छूट नहीं दी जा सकती "
इस फैसला के ठीक दुसरे दिन ही "अंतरिम रोक " का आदेश लग गया, और आज तक उस आदेश को वोट बैंक के कारण चुनौती नहीं दी गयी ...
जय जन जय भारत
फैसला का एवं केस संख्या का लिंक नीचे दिया जा रहा है,. इस लिंक पर जाकर आप फैसले की कॉपी देख सकतें हैं,
कृपया इस मुददे पर अपनी राय भी दें,
ज्यादा से ज्यादा शेयर करें,..
जय हिन्द, जय भारत, माता की जय !
URL: http://www.liiofindia.org/in/ cases/up/INUPHC/2007/14725.html
द्रोपदी के पांच पति थे या एक: क्या कहती है महाभारत?
द्रोपदी महाभारत की एक आदर्श पात्र है। लेकिन द्रोपदी जैसी विदुषी नारी के
साथ हमने बहुत अन्याय किया है। सुनी सुनाई बातों के आधार पर हमने उस पर कई
ऐसे लांछन लगाये हैं जिससे वह अत्यंत पथभ्रष्ट और धर्म भ्रष्ट नारी सिद्घ
होती है। एक ओर धर्मराज युधिष्ठर जैसा परमज्ञानी उसका पति है, जिसके गुणगान
करने में हमने कमी नही छोड़ी। लेकिन द्रोपदी पर अतार्किक आरोप लगाने में
भी हम पीछे नही रहे।
द्रोपदी पर एक आरोप है कि उसके पांच पति थे। हमने यह आरोप महाभारत की साक्षी के आधार पर नही बल्कि सुनी सुनाई कहानियों के आधार पर लगा दिया। बड़ा दु:ख होता है जब कोई पढ़ा लिखा व्यक्ति भी इस आरोप को अपने लेख में या भाषण में दोहराता है। ऐसे व्यक्ति की बुद्घि पर तरस आता है, और मैं सोचा करता हूं कि ये लोग अध्ययन के अभाव में ऐसा बोल रहे हैं, पर इन्हें यह नही पता कि ये भारतीय संस्कृति का कितना अहित कर रहे हैं।
आईए महाभारत की साक्षियों पर विचार करें! जिससे हमारी शंका का समाधान हो सके कि द्रोपदी के पांच पति थे या एक, और यदि एक था तो फिर वह कौन था?
जिस समय द्रोपदी का स्वयंवर हो रहा था उस समय पांडव अपना वनवास काट रहे थे। ये लोग एक कुम्हार के घर में रह रहे थे और भिक्षाटन के माध्यम से अपना जीवन यापन करते थे, तभी द्रोपदी के स्वयंवर की सूचना उन्हें मिली। स्वयंवर की शर्त को अर्जुन ने पूर्ण किया। स्वयंवर की शर्त पूरी होने पर द्रोपदी को उसके पिता द्रुपद ने पांडवों को भारी मन से सौंप दिया। राजा द्रुपद की इच्छा थी कि उनकी पुत्री का विवाह किसी पांडु पुत्र के साथ हो, क्योंकि उनकी राजा पांडु से गहरी मित्रता रही थी। राजा दु्रपद पंडितों के भेष में छुपे हुए पांडवों को पहचान नही पाए, इसलिए उन्हें यह चिंता सता रही थी कि आज बेटी का विवाह उनकी इच्छा के अनुरूप नही हो पाया। पांडव द्रोपदी के साथ अपनी माता कुंती के पास पहुंच गये।
माता कुंती ने क्या कहा
पांडु पुत्र भीमसेन, अर्जुन, नकुल और सहदेव ने प्रतिदिन की भांति अपनी भिक्षा को लाकर उस सायंकाल में भी अपने ज्येष्ठ भ्राता युधिष्ठर को निवेदन की। तब उदार हृदया कुंती माता द्रोपदी से कहा-’भद्रे! तुम भोजन का प्रथम भाग लेकर उससे बलिवैश्वदेवयज्ञ करो तथा ब्राहमणों को भिक्षा दो। अपने आसपास जो दूसरे मनुष्य आश्रित भाव से रहते हैं उन्हें भी अन्न परोसो। फिर जो शेष बचे उसका आधा हिस्सा भीमसेन के लिए रखो। पुन: शेष के छह भाग करके चार भाईयों के लिए चार भाग पृथक-पृथक रख दो, तत्पश्चात मेरे और अपने लिए भी एक-एक भाग अलग-अलग परोस दो। उनकी माता कहती हैं कि कल्याणि! ये जो गजराज के समान शरीर वाले, हष्ट-पुष्ट गोरे युवक बैठे हैं इनका नाम भीम है, इन्हें अन्न का आधा भाग दे दो क्योंकि यह वीर सदा से ही बहुत खाने वाले हैं।
महाभारत की इस साक्षी से स्पष्ट है कि माता कुंती से पांडवों ने ऐसा नही कहा था कि आज हम तुम्हारे लिए बहुत अच्छी भिक्षा लाए हैं और न ही माता कुंती ने उस भिक्षा को (द्रोपदी को) अनजाने में ही बांट कर खाने की बात कही थी। माता कुंती विदुषी महिला थीं, उन्हें द्रोपदी को अपनी पुत्रवधु के रूप में पाकर पहले ही प्रसन्नता हो चुकी थी।
राजा दु्रपद के पुत्र धृष्टद्युम्न पांडवों के पीछे-पीछे उनका सही ठिकाना जानने और उन्हें सही प्रकार से समझने के लिए भेष बदलकर आ रहे थे, उन्होंने पांडवों की चर्चा सुनी उनका शिष्टाचार देखा। पांडवों के द्वारा दिव्यास्त्रों, रथों, हाथियों, तलवारों, गदाओं और फरसों के विषय में उनका वीरोचित संवाद सुना। जिससे उनका संशय दूर हो गया और वह समझ गये कि ये पांचों लोग पांडव ही हैं इसलिए वह खुशी-खुशी अपने पिता के पास दौड़ लिये। तब उन्होंने अपने पिता से जाकर कहा-’पिताश्री! जिस प्रकार वे युद्घ का वर्णन करते थे उससे यह मान लेने में तनिक भी संदेह रह जाता कि वह लोग क्षत्रिय शिरोमणि हैं। हमने सुना है कि वे कुंती कुमार लाक्षागृह की अग्नि में जलने से बच गये थे। अत: हमारे मन में जो पांडवों से संबंध करने की अभिलाषा थी, निश्चय ही वह सफल हुई जान पड़ती है।
राजकुमार से इस सूचना को पाकर राजा को बहुत प्रसन्नता हुई। तब उन्होंने अपने पुरोहित को पांडवों के पास भेजा कि उनसे यह जानकारी ली जाए कि क्या वह महात्मा पांडु के पुत्र हैं? तब पुरोहित ने जाकर पांडवों से कहा -
‘वरदान पाने के योग्य वीर पुरूषो!
वर देने में समर्थ पांचाल देश के राजा दु्रपद आप लोगों का परिचय जाननाा चाहते हैं। इस वीर पुरूष को लक्ष्यभेद करते देखकर उनके हर्ष की सीमा न रही। राजा दु्रपद की इच्छा थी कि मैं अपनी इस पुत्री का विवाह पांडु कुमार से करूं। उनका कहना है कि यदि मेरा ये मनोरथ पूरा हो जाए तो मैं समझूंगा कि यह मेरे शुभकर्मों का फल प्राप्त हुआ है।
तब पुरोहित से धर्मराज युधिष्ठर ने कहा-पांचाल राज दु्रपद ने यह कन्या अपनी इच्छा से नही दी है, उन्होंने लक्ष्यभेद की शर्त रखकर अपनी पुत्री देने का निश्चय किया था। उस वीर पुरूष ने उसी शर्त को पूर्ण करके यह कन्या प्राप्त की है, परंतु हे ब्राहमण! राजा दु्रपद की जो इच्छा थी वह भी पूर्ण होगी, (युधिष्ठर कह रहे हैं कि द्रोपदी का विवाह उसके पिता की इच्छानुसार पांडु पुत्र से ही होगा) इस राज कन्या को मैं (यानि स्वयं अपने लिए, अर्जुन के लिए नहीं ) सर्वथा ग्रहण करने योग्य एवं उत्तम मानता हूं…पांचाल राज को अपनी पुत्री के लिए पश्चात्ताप करना उचित नही है।
तभी पांचाल राज के पास से एक व्यक्ति आता है, और कहता है-राजभवन में आप लोगों के लिए भोजन तैयार है। तब उन पांडवों को वीरोचित और राजोचित सम्मान देते हुए राजा द्रुपद के राज भवन में ले जाया जाता है।
महाभारत में आता है कि सिंह के समान पराक्रम सूचक चाल ढाल वाले पांडवों को राजभवन में पधारे हुए देखकर राजा दु्रपद, उनके सभी मंत्री, पुत्र, इष्टमित्र आद सबके सब अति प्रसन्न हुए। पांडव सब भोग विलास की सामग्रियाों को छोड़कर पहले वहां गये जहां युद्घ की सामग्रियां रखी गयीं थीं। जिसे देखकर राजा दु्रपद और भी अधिक प्रसन्न हुए, अब उन्हें पूरा विश्वास हो गया कि ये राजकुमार पांडु पुत्र ही हैं।
तब युधिष्ठर ने पांचाल राज से कहा कि राजन! आप प्रसन्न हों क्योंकि आपके मन में जो कामना थी वह पूर्ण हो गयी है। हम क्षत्रिय हैं और महात्मा पांडु के पुत्र हैं। मुझे कुंती का ज्येष्ठ पुत्र युधिष्ठर समझिए तथा ये दोनों भीम और अर्जुन हैं। उधर वे दोनों नकुल और सहदेव हैं।
महाभारतकार का कहना है कि युधिष्ठर के मुंह से ऐसा कथन सुनकर महाराज दु्रपद की आंखों में हर्ष के आंसू छलक पड़े। शत्रु संतापक दु्रपद ने बड़े यत्न से अपने हर्ष के आवेग को रोका, फिर युधिष्ठर को उनके कथन के अनुरूप ही उत्तर दिया। सारी कुशलक्षेम और वारणाव्रत नगर की लाक्षागृह की घटना आदि पर विस्तार से चर्चा की। तब उन्होंने उन्हें अपने भाईयों सहित अपने राजभवन में ही ठहराने का प्रबंध किया। तब पांडव वही रहने लगे। उसके बाद महाराज दु्रपद ने अगले दिन अपने पुत्रों के साथ जाकर युधिष्ठर से कहा-
‘कुरूकुल को आनंदित करने वाले ये महाबाहु अर्जुन आज के पुण्यमय दिवस में मेरी पुत्री का विधि पूर्वक पानी ग्रहण करें तथा अपने कुलोचित मंगलाचार का पालन करना आरंभ कर दें।
तब धर्मात्मा राजा युधिष्ठर ने उनसे कहा-’राजन! विवाह तो मेरा भी करना होगा।
द्रुपद बोले-’हे वीर! तब आप ही विधि पूर्वक मेरी पुत्री का पाणिग्रहण करें। अथवा आप अपने भाईयों में से जिसके साथ चाहें उसी के साथ मेरी पुत्री का विवाह करने की आज्ञा दें।
दु्रपद के ऐसा कहने पर पुरोहित धौम्य ने वेदी पर प्रज्वलित अग्नि की स्थापना करके उसमें मंत्रों की आहुति दी और युधिष्ठर व कृष्णा (द्रोपदी) का विवाह संस्कार संपन्न कराया।
इस मांगलिक कार्यक्रम के संपन्न होने पर द्रोपदी ने सर्वप्रथम अपनी सास कुंती से आशीर्वाद लिया, तब माता कुंती ने कहा-’पुत्री! जैसे इंद्राणी इंद्र में, स्वाहा अग्नि में… भक्ति भाव एवं प्रेम रखती थीं उसी प्रकार तुम भी अपने पति में अनुरक्त रहो।’
इससे सिद्घ है कि द्रोपदी का विवाह अर्जुन से नहीं बल्कि युधिष्ठर से हुआ इस सारी घटना का उल्लेख आदि पर्व में दिया गया है। उस साक्षी पर विश्वास करते हुए हमें इस दुष्प्रचार से बचना चाहिए कि द्रोपदी के पांच पति थे। माता कुंती भी जब द्रोपदी को आशीर्वाद दे रही हैं तो उन्होंने भी कहा है कि तुम अपने पति में अनुरक्त रहो, माता कुंती ने पति शब्द का प्रयोग किया है न कि पतियों का। इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि द्रोपदी पांच पतियों की पत्नी नही थी।
माता कुंती आगे कहती हैं कि भद्रे! तुम अनंत सौख्य से संपन्न होकर दीर्घजीवी तथा वीरपुत्रों की जननी बनो। तुम सौभाग्यशालिनी, भोग्य सामग्री से संपन्न, पति के साथ यज्ञ में बैठने वाली तथा पतिव्रता हो।
माता कुंती यहां पर अपनी पुत्रवधू द्रोपदी को पतिव्रता होने का निर्देश भी कर रही हैं। यदि माता कुंती द्रोपदी को पांच पतियों की नारी बनाना चाहतीं तो यहां पर उनका ऐसा उपदेश उसके लिए नही होता।
सुबुद्घ पाठकबृंद! उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि हमने द्रोपदी के साथ अन्याय किया है। यह अन्याय हमसे उन लोगों ने कराया है जो नारी को पुरूष की भोग्या वस्तु मानते हैं, उन लम्पटों ने अपने पाप कर्मों को बचाने व छिपाने के लिए द्रोपदी जैसी नारी पर दोषारोपण किया। इस दोषारोपण से भारतीय संस्कृति का बड़ा अहित हुआ।
ईसाईयों व मुस्लिमों ने हमारी संस्कृति को अपयश का भागी बनाने में कोई कसर नही छोड़ी। जिससे वेदों की पावन संस्कृति अनावश्यक ही बदनाम हुई। आज हमें अपनी संस्कृति के बचाव के लिए इतिहास के सच उजागर करने चाहिए जिससे हम पुन: गौरव पूर्ण अतीत की गौरवमयी गाथा को लिख सकें और दुनिया को ये बता सकें कि क्या थे और कैसे थे?
द्रोपदी पर एक आरोप है कि उसके पांच पति थे। हमने यह आरोप महाभारत की साक्षी के आधार पर नही बल्कि सुनी सुनाई कहानियों के आधार पर लगा दिया। बड़ा दु:ख होता है जब कोई पढ़ा लिखा व्यक्ति भी इस आरोप को अपने लेख में या भाषण में दोहराता है। ऐसे व्यक्ति की बुद्घि पर तरस आता है, और मैं सोचा करता हूं कि ये लोग अध्ययन के अभाव में ऐसा बोल रहे हैं, पर इन्हें यह नही पता कि ये भारतीय संस्कृति का कितना अहित कर रहे हैं।
आईए महाभारत की साक्षियों पर विचार करें! जिससे हमारी शंका का समाधान हो सके कि द्रोपदी के पांच पति थे या एक, और यदि एक था तो फिर वह कौन था?
जिस समय द्रोपदी का स्वयंवर हो रहा था उस समय पांडव अपना वनवास काट रहे थे। ये लोग एक कुम्हार के घर में रह रहे थे और भिक्षाटन के माध्यम से अपना जीवन यापन करते थे, तभी द्रोपदी के स्वयंवर की सूचना उन्हें मिली। स्वयंवर की शर्त को अर्जुन ने पूर्ण किया। स्वयंवर की शर्त पूरी होने पर द्रोपदी को उसके पिता द्रुपद ने पांडवों को भारी मन से सौंप दिया। राजा द्रुपद की इच्छा थी कि उनकी पुत्री का विवाह किसी पांडु पुत्र के साथ हो, क्योंकि उनकी राजा पांडु से गहरी मित्रता रही थी। राजा दु्रपद पंडितों के भेष में छुपे हुए पांडवों को पहचान नही पाए, इसलिए उन्हें यह चिंता सता रही थी कि आज बेटी का विवाह उनकी इच्छा के अनुरूप नही हो पाया। पांडव द्रोपदी के साथ अपनी माता कुंती के पास पहुंच गये।
माता कुंती ने क्या कहा
पांडु पुत्र भीमसेन, अर्जुन, नकुल और सहदेव ने प्रतिदिन की भांति अपनी भिक्षा को लाकर उस सायंकाल में भी अपने ज्येष्ठ भ्राता युधिष्ठर को निवेदन की। तब उदार हृदया कुंती माता द्रोपदी से कहा-’भद्रे! तुम भोजन का प्रथम भाग लेकर उससे बलिवैश्वदेवयज्ञ करो तथा ब्राहमणों को भिक्षा दो। अपने आसपास जो दूसरे मनुष्य आश्रित भाव से रहते हैं उन्हें भी अन्न परोसो। फिर जो शेष बचे उसका आधा हिस्सा भीमसेन के लिए रखो। पुन: शेष के छह भाग करके चार भाईयों के लिए चार भाग पृथक-पृथक रख दो, तत्पश्चात मेरे और अपने लिए भी एक-एक भाग अलग-अलग परोस दो। उनकी माता कहती हैं कि कल्याणि! ये जो गजराज के समान शरीर वाले, हष्ट-पुष्ट गोरे युवक बैठे हैं इनका नाम भीम है, इन्हें अन्न का आधा भाग दे दो क्योंकि यह वीर सदा से ही बहुत खाने वाले हैं।
महाभारत की इस साक्षी से स्पष्ट है कि माता कुंती से पांडवों ने ऐसा नही कहा था कि आज हम तुम्हारे लिए बहुत अच्छी भिक्षा लाए हैं और न ही माता कुंती ने उस भिक्षा को (द्रोपदी को) अनजाने में ही बांट कर खाने की बात कही थी। माता कुंती विदुषी महिला थीं, उन्हें द्रोपदी को अपनी पुत्रवधु के रूप में पाकर पहले ही प्रसन्नता हो चुकी थी।
राजा दु्रपद के पुत्र धृष्टद्युम्न पांडवों के पीछे-पीछे उनका सही ठिकाना जानने और उन्हें सही प्रकार से समझने के लिए भेष बदलकर आ रहे थे, उन्होंने पांडवों की चर्चा सुनी उनका शिष्टाचार देखा। पांडवों के द्वारा दिव्यास्त्रों, रथों, हाथियों, तलवारों, गदाओं और फरसों के विषय में उनका वीरोचित संवाद सुना। जिससे उनका संशय दूर हो गया और वह समझ गये कि ये पांचों लोग पांडव ही हैं इसलिए वह खुशी-खुशी अपने पिता के पास दौड़ लिये। तब उन्होंने अपने पिता से जाकर कहा-’पिताश्री! जिस प्रकार वे युद्घ का वर्णन करते थे उससे यह मान लेने में तनिक भी संदेह रह जाता कि वह लोग क्षत्रिय शिरोमणि हैं। हमने सुना है कि वे कुंती कुमार लाक्षागृह की अग्नि में जलने से बच गये थे। अत: हमारे मन में जो पांडवों से संबंध करने की अभिलाषा थी, निश्चय ही वह सफल हुई जान पड़ती है।
राजकुमार से इस सूचना को पाकर राजा को बहुत प्रसन्नता हुई। तब उन्होंने अपने पुरोहित को पांडवों के पास भेजा कि उनसे यह जानकारी ली जाए कि क्या वह महात्मा पांडु के पुत्र हैं? तब पुरोहित ने जाकर पांडवों से कहा -
‘वरदान पाने के योग्य वीर पुरूषो!
वर देने में समर्थ पांचाल देश के राजा दु्रपद आप लोगों का परिचय जाननाा चाहते हैं। इस वीर पुरूष को लक्ष्यभेद करते देखकर उनके हर्ष की सीमा न रही। राजा दु्रपद की इच्छा थी कि मैं अपनी इस पुत्री का विवाह पांडु कुमार से करूं। उनका कहना है कि यदि मेरा ये मनोरथ पूरा हो जाए तो मैं समझूंगा कि यह मेरे शुभकर्मों का फल प्राप्त हुआ है।
तब पुरोहित से धर्मराज युधिष्ठर ने कहा-पांचाल राज दु्रपद ने यह कन्या अपनी इच्छा से नही दी है, उन्होंने लक्ष्यभेद की शर्त रखकर अपनी पुत्री देने का निश्चय किया था। उस वीर पुरूष ने उसी शर्त को पूर्ण करके यह कन्या प्राप्त की है, परंतु हे ब्राहमण! राजा दु्रपद की जो इच्छा थी वह भी पूर्ण होगी, (युधिष्ठर कह रहे हैं कि द्रोपदी का विवाह उसके पिता की इच्छानुसार पांडु पुत्र से ही होगा) इस राज कन्या को मैं (यानि स्वयं अपने लिए, अर्जुन के लिए नहीं ) सर्वथा ग्रहण करने योग्य एवं उत्तम मानता हूं…पांचाल राज को अपनी पुत्री के लिए पश्चात्ताप करना उचित नही है।
तभी पांचाल राज के पास से एक व्यक्ति आता है, और कहता है-राजभवन में आप लोगों के लिए भोजन तैयार है। तब उन पांडवों को वीरोचित और राजोचित सम्मान देते हुए राजा द्रुपद के राज भवन में ले जाया जाता है।
महाभारत में आता है कि सिंह के समान पराक्रम सूचक चाल ढाल वाले पांडवों को राजभवन में पधारे हुए देखकर राजा दु्रपद, उनके सभी मंत्री, पुत्र, इष्टमित्र आद सबके सब अति प्रसन्न हुए। पांडव सब भोग विलास की सामग्रियाों को छोड़कर पहले वहां गये जहां युद्घ की सामग्रियां रखी गयीं थीं। जिसे देखकर राजा दु्रपद और भी अधिक प्रसन्न हुए, अब उन्हें पूरा विश्वास हो गया कि ये राजकुमार पांडु पुत्र ही हैं।
तब युधिष्ठर ने पांचाल राज से कहा कि राजन! आप प्रसन्न हों क्योंकि आपके मन में जो कामना थी वह पूर्ण हो गयी है। हम क्षत्रिय हैं और महात्मा पांडु के पुत्र हैं। मुझे कुंती का ज्येष्ठ पुत्र युधिष्ठर समझिए तथा ये दोनों भीम और अर्जुन हैं। उधर वे दोनों नकुल और सहदेव हैं।
महाभारतकार का कहना है कि युधिष्ठर के मुंह से ऐसा कथन सुनकर महाराज दु्रपद की आंखों में हर्ष के आंसू छलक पड़े। शत्रु संतापक दु्रपद ने बड़े यत्न से अपने हर्ष के आवेग को रोका, फिर युधिष्ठर को उनके कथन के अनुरूप ही उत्तर दिया। सारी कुशलक्षेम और वारणाव्रत नगर की लाक्षागृह की घटना आदि पर विस्तार से चर्चा की। तब उन्होंने उन्हें अपने भाईयों सहित अपने राजभवन में ही ठहराने का प्रबंध किया। तब पांडव वही रहने लगे। उसके बाद महाराज दु्रपद ने अगले दिन अपने पुत्रों के साथ जाकर युधिष्ठर से कहा-
‘कुरूकुल को आनंदित करने वाले ये महाबाहु अर्जुन आज के पुण्यमय दिवस में मेरी पुत्री का विधि पूर्वक पानी ग्रहण करें तथा अपने कुलोचित मंगलाचार का पालन करना आरंभ कर दें।
तब धर्मात्मा राजा युधिष्ठर ने उनसे कहा-’राजन! विवाह तो मेरा भी करना होगा।
द्रुपद बोले-’हे वीर! तब आप ही विधि पूर्वक मेरी पुत्री का पाणिग्रहण करें। अथवा आप अपने भाईयों में से जिसके साथ चाहें उसी के साथ मेरी पुत्री का विवाह करने की आज्ञा दें।
दु्रपद के ऐसा कहने पर पुरोहित धौम्य ने वेदी पर प्रज्वलित अग्नि की स्थापना करके उसमें मंत्रों की आहुति दी और युधिष्ठर व कृष्णा (द्रोपदी) का विवाह संस्कार संपन्न कराया।
इस मांगलिक कार्यक्रम के संपन्न होने पर द्रोपदी ने सर्वप्रथम अपनी सास कुंती से आशीर्वाद लिया, तब माता कुंती ने कहा-’पुत्री! जैसे इंद्राणी इंद्र में, स्वाहा अग्नि में… भक्ति भाव एवं प्रेम रखती थीं उसी प्रकार तुम भी अपने पति में अनुरक्त रहो।’
इससे सिद्घ है कि द्रोपदी का विवाह अर्जुन से नहीं बल्कि युधिष्ठर से हुआ इस सारी घटना का उल्लेख आदि पर्व में दिया गया है। उस साक्षी पर विश्वास करते हुए हमें इस दुष्प्रचार से बचना चाहिए कि द्रोपदी के पांच पति थे। माता कुंती भी जब द्रोपदी को आशीर्वाद दे रही हैं तो उन्होंने भी कहा है कि तुम अपने पति में अनुरक्त रहो, माता कुंती ने पति शब्द का प्रयोग किया है न कि पतियों का। इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि द्रोपदी पांच पतियों की पत्नी नही थी।
माता कुंती आगे कहती हैं कि भद्रे! तुम अनंत सौख्य से संपन्न होकर दीर्घजीवी तथा वीरपुत्रों की जननी बनो। तुम सौभाग्यशालिनी, भोग्य सामग्री से संपन्न, पति के साथ यज्ञ में बैठने वाली तथा पतिव्रता हो।
माता कुंती यहां पर अपनी पुत्रवधू द्रोपदी को पतिव्रता होने का निर्देश भी कर रही हैं। यदि माता कुंती द्रोपदी को पांच पतियों की नारी बनाना चाहतीं तो यहां पर उनका ऐसा उपदेश उसके लिए नही होता।
सुबुद्घ पाठकबृंद! उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि हमने द्रोपदी के साथ अन्याय किया है। यह अन्याय हमसे उन लोगों ने कराया है जो नारी को पुरूष की भोग्या वस्तु मानते हैं, उन लम्पटों ने अपने पाप कर्मों को बचाने व छिपाने के लिए द्रोपदी जैसी नारी पर दोषारोपण किया। इस दोषारोपण से भारतीय संस्कृति का बड़ा अहित हुआ।
ईसाईयों व मुस्लिमों ने हमारी संस्कृति को अपयश का भागी बनाने में कोई कसर नही छोड़ी। जिससे वेदों की पावन संस्कृति अनावश्यक ही बदनाम हुई। आज हमें अपनी संस्कृति के बचाव के लिए इतिहास के सच उजागर करने चाहिए जिससे हम पुन: गौरव पूर्ण अतीत की गौरवमयी गाथा को लिख सकें और दुनिया को ये बता सकें कि क्या थे और कैसे थे?
Jesus was a hindu (ईसा मसीह एक हिन्दू थे) .....
Why ‘DA VINCI CODE’ movie was BANNED in India ? It was biggest blockbuster success movie in rest of the world..just because the Evangelist Christian missionaries in India feared the Christians will lose faith and convert back to Hinduism,,.the movie showed Jesus Christ MARRIED had children and came to India …can u tell me y the BBC WORLD documentary (short film) endorsed by the Vatican Titled ‘lost years of Jesus’ showing the “tomb of the Jesus in Kashmir ” and the places he visited in India was BANNED in India ..I can give u a link for that if u want..Only the Indian Christians are hidden from this truth (f JESUS CONVERSION TO HINDUISM)..This Truth is whispered among the elite Christian Scholars and Theologists in rest of the world..This truth is hidden and dusting somewhere in the old Vatican Libraries.
http://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=7aauXxuLHnQ
THIS IS THE VIDEO CLEARLY SHOWING THE TOMB OF JESUS IN KASHMIR
do u know a fact that all the Indian Christians are converted ones ..i.e. they were HINDUS before father or grandfather or great GF ..
it is our responsibility of younger generation to enlighten every Christian to convert back to their default religion of Hinduism this is the ultimate weapon to convert back the Christians to main stream Hinduism.
This is the cave north of Rishikesh in which Sri Isha(Jesus) lived for some time. In the last century both Swami Rama Tirtha and Swami (Papa) Ramdas lived there (at separate times), and had visions of Isha meditating there, though they had no prior knowledge of His having lived there. Another Kashmiri history, the Rajatarangini, written in 1148 A.D., says that a great saint named Issana lived at Issabar on the bank of Dal Lake
Khanyar Rozabal, Srinagar, India the TOMB OF JESUS CHRIST
he Bengali educator and patriot, Bipin Chandra Pal, published an autobiographical sketch in which he revealed that Vijay Krishna Goswami, a renowned saint of Bengal and a disciple of Sri Ramakrishna, told him about spending time in the Aravalli mountains with a group of extraordinary ascetic monk-yogis known as Nath Yogis.
The monks spoke to him about Isha Nath, whom they looked upon as one of the great teachers of their order. When Vijay Krishna expressed interest in this venerable guru, they read his life as recorded in one of their sacred books, the Nathanamavali.36 It was the life of Him Whom the Goswami knew as Jesus the Christ! Here is the relevant portion of that book:
“Isha Natha came to India at the age of fourteen. After this he returned to his own country and began preaching. Soon after, his brutish and materialistic countrymen conspired against him and had him crucified. After crucifixion, or perhaps even before it, Isha Natha entered samadhi by means of yoga.Jesus travelled to India also in his teens & youth to acquaint himself with Indian wisdom in Puri, Varanasi, Rajgriha etc. He also interacted closely with the Shiva-worshipping Nath sect. He is still revered as one of the ancient Nath-Yogis. He was highly supported by King Shalivahan & King Gopananda. Ancient inscriptions in Srinagar have revealed that Jesus was requested by King Gopananda to guide repair of the ancient Shiva Temple atop Gopadri Hill in the city. Vedic thought subscribes to the view that Advents ( Messengers of God) keep appearing from time to time to re-establish the principles of life & growth.
JESUS FEET BELOW THE TOMB NOTE THE CRUCIFICATION SCARS
THE ORIGINAL GRAVE OF JESUS IN SRINAGAR KASHMIR --
MORE SCIENTIFIC PROOF…PLEASE SHARE
Jesus never died on the cross. It takes at least forty-eight hours for a person to die on the Jewish cross; and there have been known cases where people have existed almost six days on the cross without dying. Because Jesus was taken down from the cross after only six hours, there is no possibility of his dying on the cross.
It was a conspiracy between a rich sympathizer of Jesus and Pontius Pilate to crucify Jesus as late as possible on Friday — because on Saturday, Jews stop everything; their Sabbath does not allow any act. By the evening of Friday everything stops.
The arrangement was that Jesus would be crucified late in the afternoon, so before sunset he would be brought down. He might have been unconscious because so much blood had flowed out of the body, but he was not dead. Then he would be kept in a cave, and before the Sabbath ended and the Jews hung him again, his body would be stolen by his followers. The tomb was found empty, and Jesus was removed from Judea as quickly as possible. As he again became healthy and healed, he moved to India and he lived a long life- in Kashmir.
It is a coincidence, but a beautiful coincidence, that Moses died in Kashmir and Jesus also died in Kashmir. The graves are ample proof, because those are the only two graves that are not pointing towards Mecca. Mohammedans make their graves with the head pointing towards Mecca, so in the whole world all the graves of Mohammedans point towards Mecca, and Kashmir is Mohammedan.
These two graves don’t point towards Mecca, and the writing on the graves is in Hebrew, which is impossible on a Mohammedan grave — Hebrew is not their language. The name of Jesus is written exactly as it was pronounced by the Jews, “Joshua.” “Jesus” is a Christian conversion of the Jewish name. The grave is certainly of Jesus.
A family has been taking care of both the graves — they are very close together in one place, Pahalgam — and only one family has been taking care of them down the centuries. They are Jews — they are still Jews .
Moses had come to Kashmir to find a tribe of Jews who were lost on the way from Egypt to Jerusalem. When he reached Jerusalem his deep concern was the whole tribe that had got lost somewhere in the desert. When his people were established in Jerusalem, he went in search of the lost tribe, and he found the lost tribe established in Kashmir. Kashmiris are basically Jewish — later on Mohammedans forcibly converted them — and Moses lived with them and died there.
Jesus also went to Kashmir, because then it was known that Moses had found the lost tribe there. The doors of Judea were closed — he would be hanged again — and the only place where he would find the people who speak the same language, the people who have a same kind of mind, where he would not be a foreigner, was Kashmir. So it was natural for him to go to Kashmir.
But he had learned his lesson. He had dropped the idea of being the only begotten son of God; otherwise these Jews would crucify him too. He dropped the idea of being a messiah. He lived with his few intimate friends and followers in Pahalgam.
Pahalgam is named after Jesus, because he used to call himself “the shepherd” — Pahalgam means “the town of the shepherd.” So it was a small colony of Jesus and his friends, surrounding the grave of their forefather and the founder of Judaic tradition.
But the followers who were left in Judea managed to create the story of resurrection. And there was no way to prove it this way or that. Neither could they produce Jesus — if he was resurrected then where was he? Nor could the other party prove what had happened. They had put such a big rock on the mouth of the cave that it was impossible for Jesus to have removed it, and there was a Roman soldier on duty twenty-four hours, so there was no possibility of anybody else removing the rock and taking the body.
But because Pontius Pilate was from the very beginning against crucifying Jesus…. He could see the man was absolutely innocent. He has some crazy ideas, but they are not criminal. And what harm does it do to somebody? If someone thinks he is the only begotten son of God, let him enjoy it. Why disturb him, and why get disturbed? If somebody thinks he is the messiah and he has brought the message of God… if you want to listen, listen; if you don’t want to listen, don’t listen. But there is no need to crucify the man.
But Jesus learned his lesson — learned the hard way. In Kashmir he lived very silently with his group, praying, living peacefully, no longer trying to change the world. And Kashmir was so far away from Judea that in Judea the story of resurrection, amongst the followers of Jesus, became significant.
So I say a kind of resurrection certainly happened — it was a conspiracy more than a resurrection. But certainly Jesus did not die on the cross, he did not die in the cave where he was put; he lived long enough.
कश्मीर के खानयार मौहल्ले में स्थित रोजाबल ही हिन्दू धर्म में परिवर्तित ईसा मसीह की समाधि है । आज – कल कश्मीर की सरकारों ने अरबपंथी कट्टर मजहबी दरिंदों की मांग के आगे झुककर उस समाधि को एक मुस्लिम फकीर की कब्र घोषित कर दिया है तथा वहाँ पर गैर मुस्लिमों के प्रवेश करने एवं फोटोग्राफी करने पर प्रतिबंध लगा दिया है ।
मुझे यकीन है इसे पढ़ कर सारे ईसाइयों का दिल बदल जायगा क्योकि यही सत्य है और सत्य की हमेशा जीत होती है ..जिस प्रकार छल कपट से ईसाई मिशिनारियों ने असाम मणिपुर नागालैंड को ईसाई बनाया ..इस सत्य को उन भोले परिवर्तित ईसाइयों को समझाकर उन्हें पुनः हिंदू बनाया जा सकता है ..यह एक बहुत बड़ा अस्त्र है हमारे लिए ईसाइयों को वापस हिंदू धर्म में परिवर्तित करने के लिए ..जय श्री राम
आप सभी से अनुरोध है की इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करे ताकि भारत के और विश्व के सभी ईसाई अपने मूल हिंदू धर्म में वापिस आ जाए
I REQUEST ALL MY FRIENDS TO SHARE IT WITH YOUR CHRISTIAN FRIENDS AND SPREAD IT LIKE WILD FIRE SO THAT ALL THE CHRISTIANS IN INDIA AND THE WORLD CONVERT BACK TO THEIR DEFAULT RELIGION OF HINDUISM
Monday, January 28, 2013
अंग्रेजो के समय में ऐसा क्या होता था जो लोग अंग्रेजो से इतनी नफरत करते थे ?
मित्रो
आज मैं यह सोच रहा था कि अंग्रेजो के समय में ऐसा क्या होता था जो लोग
अंग्रेजो से इतनी नफरत करते थे ? जब सवाल अपने घर के बुजुर्गो से पुछा गया
तो यह सामने आया..
१. अंग्रेज लोगों से मोटा टैक्स वसूलते थे : वो
तो आज कांग्रेस (सरकार) भी वसूल रही है रूप बदल गया है बस | आज महंगाई की
एवज में टैक्स वसूला जाता है |
२. अंग्रेज देश की जनता को कुत्ता
समझते थे : वो तो कांग्रेस (सरकार) भी समझती है | देश की जनता जब कोई कार्य
करने के लिए कहती है तो कांग्रेस (सरकार) ऐसे व्यवहार करती है जैसे सड़क
पर कुत्ते भोंक रहे हों |
३. अंग्रेज लोगो की जमीन हड़पा करते थे : यह काम तो कांग्रेस (सरकार) भी बखूबी ६५ सालों से करती आ रही है |
४. अंग्रेज विदेशी व्यवसायों को आमंत्रित करती थी जिससे कि देश की
संस्कृति को खत्म किया जा सके: यह काम तो कांग्रेस (सरकार) भी कर रही है और
हमारी संस्कृति तक़रीबन- तक़रीबन विलुप्ति के कगार पर है |
५.
अंग्रेजो के समय में कानून अंग्रेजो का पक्ष लेता था और आज के दौर में
कानून कांग्रेस (सरकार) का पक्ष लेता है (अभिषेक मनु सिंघवी का जज बनाने का
लालच देकर महिला का शारीरिक शौषण का मामला हो या फिर राहुल गाँधी का
बलात्कार मामला ) ऐसे सैकड़ो मुद्दों पर अदालतों ने सबूतों को नजर अंदाज
किया, जांच तक नहीं होने दी और अपना फैसला कांग्रेस (सरकार) के हक में कर
दिया |
-------------------------
कुछ तथ्य :
१.
अंग्रेजो ने भारत का जो विकास किया था उतना विकास तो कांग्रेस (सरकार) भी
नहीं कर पायी है | सड़कें अंग्रेजो ने दी थी, रेलवे अंग्रेजो ने दिया था..
और तो और दिल्ली में जो आज सबसे पोर्श एरिया कहा जाता है साउथ दिल्ली का
उसका विकास भी अंग्रेजो ने ही किया था | और आज दिल्ली में अगर सबसे बढ़िया
कुछ देखने के लिए है तो वो साउथ दिल्ली है |
२. अंग्रेजो ने तो
फिर एक बार को देश को सिर्फ गुलाम रखने के लिए लोगो की मांगो को पूरा करने
की कोशिश करी थी | उदाहरण के तौर पर भगत सिंह जैसे वीर क्रांतिकारियों को
लालच दिया गया था और कहा था कि आपको जो चाहिए आपको वो सब मिलेगा बस हमारे
खिलाफ बगावत करना बंद कर दो | लेकिन कांग्रेस (सरकार) सरकार तो इतनी नीचे
गिर चुकी है कि अगर कोई उसके खिलाफ बगावत करे तो सीधा रहस्यमय मौत मिलती है
किसी भी क्रन्तिकारी को |
३. अंग्रेजो ने जलियाँवाला बाघ काण्ड
किया था जिसमें लोग कम से कम जागे हुए थे और पूरे होश में थे लेकिन
कांग्रेस (सरकार) ने तो सोते हुए ५०००० लोगो पर लाठिय पडवा दी थी | जिन्दा
जलाने तक की कोशिश की गयी थी |
अब सोचने वाली बात यह है कि जब देश
के लोगो को अंग्रेज एक आँख भी नहीं सुहाते थे तो आज देश की जनता नीच और
महाभ्रष्ट कांग्रेस (सरकार) को कैसे बर्दाश्त कर रही है ?
जितना अंग्रेज भारत से लूटकर ढाई सौ सालों में नहीं ले जा पाए थे, उससे सौ गुना ज्यादा ये लोग ६५ सालों में ले जा चु्के है..
यदि ये पोस्ट आज की नीच कांग्रेस (सरकार) और अंग्रेजों के बीच की समानता को समझाने में सफल हुआ तो.. ज्यादा से ज्यादा शेयर करें..
जय हिन्द
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