एक फैसला हुआ हिन्दुस्तान के इतिहास में जो कभी नहीं हुआ वो हो गया .....
जय
श्री राम ! जो हज़ारों साल से नहीं हुआ वो हुआ और भरपूर हुआ वो तारिख
हिंदुस्तान के लिए एक ऐतिहासिक दिन है, आज भारत भाग्य विधाता आपके लिए
इतिहास के कुछ पन्ने पलट रहा है..
वो स्वर्णिम दिन था ३० अगस्त २००७, माननिय एस.एन.श्रीवास्तव की अदालत,
इलाहाबाद उच्च न्याय्यालय- एक फैसला हुआ और हिन्दुस्तान के इतिहास में जो
कभी नहीं हुआ वो हो गया ... न्यायमूर्ति श्रीवास्तव जी ने एक केस का फैसला
सुनाते समय अपने आदेश में लिखा .-
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" जब भारत में राष्ट्रिय
झंडा, राष्ट्रिय गान, राष्ट्रिय पक्षी, राष्ट्रिय पशु, राष्ट्रिय फूल हो
सकतें हैं तो राष्ट्रिय धर्म शास्त्र क्यूँ नहीं हो सकता ? आदि काल से
हमारे देश में "गीता" हर एक भारतीय को सम्पूर्ण शिक्षा देती आई है,
अस्तु अत: श्रीमद भागवत गीता हिन्दुस्तान का "राष्ट्रिय धर्म शास्त्र " होना चाहिए "
लेकिन जैसा कि हमेशा होता आया है इस देश में वो तथाकथित सेकुलर लोग जिनकी
वजह से हमारा देश वर्षों तक गुलामी में रहा, वही लोग माननिय जज महोदय जी ने
जो आदेश दिया उसकी लीपापोती में लग गए --बानगी देखिये --
सुप्रीम
कोर्ट के मुख्यनयाधीश -माननिये वी.एन.खरे --"जो उन्होंने (जज एस.एन )कहा वो
क़ानून सम्मत नहीं है और इस सेकुलर देश में कोई धर्म राष्ट्रिय नहीं हो
सकता ."
पूर्व क़ानून मंत्री - शांति भूषन --"एक पोलिसी बनानी
चाहिए कि इस तरह के गैरकानूनी निर्णय देने वाले जज कभी नियुक्त नहीं होने
चाहिए "
तत्कालीन क़ानून मंत्री -एच.आर.भारद्वाज -" कोई भी
जिम्मेदार जज इस तरह के धर्म- विशेष आधारित फैसले नहीं दे सकता ये एक
धर्मनिरपेक्ष देश के लिए मान्य नहीं है "
मित्रों अब आप लोग ही इस बात का निर्णय लें कि क्या ये सरकार और शन्ति भूषण जैसे लोग किसी कौम का भला कर सकते हैं ? ..
उल्लेखनीय है कि इन्ही एस.एन.श्रीवास्तव जी ने ५ अप्रैल २००७ को एक फैसले
में कहा था कि "उत्तर प्रदेश में मुसलमान अल्पसंख्यक नहीं है अत: उनके
शिक्षा संस्थानों को विशेष छूट नहीं दी जा सकती "
इस फैसला के ठीक दुसरे दिन ही "अंतरिम रोक " का आदेश लग गया, और आज तक उस आदेश को वोट बैंक के कारण चुनौती नहीं दी गयी ...
जय जन जय भारत
फैसला का एवं केस संख्या का लिंक नीचे दिया जा रहा है,. इस लिंक पर जाकर आप फैसले की कॉपी देख सकतें हैं,
कृपया इस मुददे पर अपनी राय भी दें,
ज्यादा से ज्यादा शेयर करें,..
जय हिन्द, जय भारत, माता की जय !
URL: http://www.liiofindia.org/in/cases/up/INUPHC/2007/14725.html
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