काले धन की काली दुनिया का सच.........
1.4 खरब अमेरिकी डॉलर यानि करीब 73 लाख करोड़ रुपये। ये पैसा उन भारतीयों का है जो सिर्फ स्विट्जरलैंड के बैंकों में पड़ा है। और इसका बड़ा हिस्सा ऐसा पैसा है जिसके बारे में ना तो सरकार को पता है और ना ही उसे कभी उसपर टैक्स मिला है यानि काला धन - ब्लैक मनी।
जिस आंकड़े की हम बात कर रहे हैं उसका मतलब ये है कि सिर्फ स्विस बैंकों में जितनी रकम जमा है वो उतनी ही बड़ी है जितनी बड़ी देश की इकोनॉमी। लेकिन ये पैसा, ब्लैक मनी इकोनॉमी का सिर्फ एक हिस्सा है। आजकल फैशन बन गया है कि हम विदेश से काले धन को वापस लाने की बात ज्यादा, देश में पैदा हो रहे काले धन की बात कम करते हैं। अंदाजा ये है कि आजादी के बाद से अपने देश में करीब 330 लाख करोड़ रुपये ब्लैक मनी के तौर पर जेनरेट हुई है।
कुछ अन्ना आंदोलन का असर कहिए, कुछ राजनीतिक पार्टियों का दबाव सरकार काले धन को लेकर कुछ एक्शन में आई है। बजट में जिस जनरल एंटी एव्वॉयडेंस रुल्स (जीएएआर) के कायदे कानून से एफआईआई के होश उड़ गए थे - उसका मकसद भी काले धन पर रोक लगाना भी बताया जा रहा था। वैसे तो दबाव में वित्त मंत्री ने इसे वापस ले लिया। लेकिन जानकार मानते हैं कि इससे ब्लैक मनी को कंट्रोल करने में मदद नहीं मिलेगी।
सरकार को ब्लैक मनी जनेरेट होने से रोकने के लिए कोई और तरीका अपनाना होगा। एक चौंकाने वाले आंकड़े पर नजर डालिए। हमारे देश में 1.20 अरब लोग रहते हैं लेकिन इसमें से सिर्फ 3 करोड़ वो लोग हैं, जो टैक्स देते हैं। यानी 3 फीसदी से भी कम!! करीब 70 फीसदी किसान टैक्स के दायरे से बाहर हैं, 2 फीसदी वो लोग हैं जिनकी आमदनी टैक्स के दायरे में नहीं आती और 15 फीसदी वो लोग हैं जो टैक्स देना नहीं चाहते। यानी प्रणव मुखर्जी के पास यही 3 फीसदी लोग बचते हैं जिनके टैक्स में बदलाव कर के वो बाकि 97 फीसदी लोगों की भी जरूरतों को पूरा करते हैं। यानी जरूरत है सरकार को अपने टैक्स के दायरे को बढ़ाने की।
लेकिन सिर्फ सरकार के किए ही सब कुछ नहीं होगा। हमें और आपको भी ब्लैक मनी को रोकने में अपना योगदान देना होगा। सरकारी दफ्तर में फाइल आगे बढ़ानी हो, अपनी पसंद का घर खरीदना हो, सिग्नल पर पकड़े जाने पर ट्रैफिक हवलदार से पीछा छुड़ाना हो या फिर रेलवे में वेटिंग टिकट को कंन्फर्म करवाना हो - इन सब परेशानियों से बचने के लिए हम लोग घूस का सहारा लेते हैं। और ये घूस भी काला धन ही है।
क्या हो अगर सारा काला धन सफेद हो जाए, सिस्टम में आ जाए। इसको समझते हैं - सिर्फ स्विस बैंकों में जमा भारतीयों के पैसे से। ये रकम 1,400 अरब डॉलर के आसपास है। सरकार चाहे तो इससे भारत को एक कर्ज मुक्त देश बना सकती है। दिसंबर 2011 तक भारत पर करीब 326 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज था जिसे वो सीधे उतार सकती है। रोड, बिजली, हवाई अड्डे जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए अगले 5 साल में सरकार को 1 खरब डॉलर खर्च करना पड़ेगा।
अगर पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप में सरकार इस खर्च का 70 फीसदी भार भी उठाती है तो वो स्विस बैंक से आए करीब 700 अरब डॉलर की रकम इसपर लगा सकती है। सरकार अगर इसमें से 300 अरब डॉलर खर्च करे तो अगले 10 साल तक देश में कोई भूखा नहीं रहेगा। और इतना खर्च करने के बाद भी सरकार के पास करीब 7,400 करोड़ डॉलर बचेंगे, जिसका इस्तेमाल बेहतर शिक्षा, डिफेंस और साइंटिफिक रिसर्च में किया जा सकता है।
1.4 खरब अमेरिकी डॉलर यानि करीब 73 लाख करोड़ रुपये। ये पैसा उन भारतीयों का है जो सिर्फ स्विट्जरलैंड के बैंकों में पड़ा है। और इसका बड़ा हिस्सा ऐसा पैसा है जिसके बारे में ना तो सरकार को पता है और ना ही उसे कभी उसपर टैक्स मिला है यानि काला धन - ब्लैक मनी।
जिस आंकड़े की हम बात कर रहे हैं उसका मतलब ये है कि सिर्फ स्विस बैंकों में जितनी रकम जमा है वो उतनी ही बड़ी है जितनी बड़ी देश की इकोनॉमी। लेकिन ये पैसा, ब्लैक मनी इकोनॉमी का सिर्फ एक हिस्सा है। आजकल फैशन बन गया है कि हम विदेश से काले धन को वापस लाने की बात ज्यादा, देश में पैदा हो रहे काले धन की बात कम करते हैं। अंदाजा ये है कि आजादी के बाद से अपने देश में करीब 330 लाख करोड़ रुपये ब्लैक मनी के तौर पर जेनरेट हुई है।
कुछ अन्ना आंदोलन का असर कहिए, कुछ राजनीतिक पार्टियों का दबाव सरकार काले धन को लेकर कुछ एक्शन में आई है। बजट में जिस जनरल एंटी एव्वॉयडेंस रुल्स (जीएएआर) के कायदे कानून से एफआईआई के होश उड़ गए थे - उसका मकसद भी काले धन पर रोक लगाना भी बताया जा रहा था। वैसे तो दबाव में वित्त मंत्री ने इसे वापस ले लिया। लेकिन जानकार मानते हैं कि इससे ब्लैक मनी को कंट्रोल करने में मदद नहीं मिलेगी।
सरकार को ब्लैक मनी जनेरेट होने से रोकने के लिए कोई और तरीका अपनाना होगा। एक चौंकाने वाले आंकड़े पर नजर डालिए। हमारे देश में 1.20 अरब लोग रहते हैं लेकिन इसमें से सिर्फ 3 करोड़ वो लोग हैं, जो टैक्स देते हैं। यानी 3 फीसदी से भी कम!! करीब 70 फीसदी किसान टैक्स के दायरे से बाहर हैं, 2 फीसदी वो लोग हैं जिनकी आमदनी टैक्स के दायरे में नहीं आती और 15 फीसदी वो लोग हैं जो टैक्स देना नहीं चाहते। यानी प्रणव मुखर्जी के पास यही 3 फीसदी लोग बचते हैं जिनके टैक्स में बदलाव कर के वो बाकि 97 फीसदी लोगों की भी जरूरतों को पूरा करते हैं। यानी जरूरत है सरकार को अपने टैक्स के दायरे को बढ़ाने की।
लेकिन सिर्फ सरकार के किए ही सब कुछ नहीं होगा। हमें और आपको भी ब्लैक मनी को रोकने में अपना योगदान देना होगा। सरकारी दफ्तर में फाइल आगे बढ़ानी हो, अपनी पसंद का घर खरीदना हो, सिग्नल पर पकड़े जाने पर ट्रैफिक हवलदार से पीछा छुड़ाना हो या फिर रेलवे में वेटिंग टिकट को कंन्फर्म करवाना हो - इन सब परेशानियों से बचने के लिए हम लोग घूस का सहारा लेते हैं। और ये घूस भी काला धन ही है।
क्या हो अगर सारा काला धन सफेद हो जाए, सिस्टम में आ जाए। इसको समझते हैं - सिर्फ स्विस बैंकों में जमा भारतीयों के पैसे से। ये रकम 1,400 अरब डॉलर के आसपास है। सरकार चाहे तो इससे भारत को एक कर्ज मुक्त देश बना सकती है। दिसंबर 2011 तक भारत पर करीब 326 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज था जिसे वो सीधे उतार सकती है। रोड, बिजली, हवाई अड्डे जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए अगले 5 साल में सरकार को 1 खरब डॉलर खर्च करना पड़ेगा।
अगर पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप में सरकार इस खर्च का 70 फीसदी भार भी उठाती है तो वो स्विस बैंक से आए करीब 700 अरब डॉलर की रकम इसपर लगा सकती है। सरकार अगर इसमें से 300 अरब डॉलर खर्च करे तो अगले 10 साल तक देश में कोई भूखा नहीं रहेगा। और इतना खर्च करने के बाद भी सरकार के पास करीब 7,400 करोड़ डॉलर बचेंगे, जिसका इस्तेमाल बेहतर शिक्षा, डिफेंस और साइंटिफिक रिसर्च में किया जा सकता है।
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