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Wednesday, February 27, 2013

ताज महल या तेजो महालय|


भारत में 12 ज्योतिर्लिंग थे 11 का सब को पता हें 12 व कहा गया ? आपको पता हें? चलो में बताता हूँ 12 वे ज्योतिर्लिंग का नाम हे अग्रेश्वर महादेव जो की आगरा में स्थित था| अब आप कहेंगे की आगरा में आज की तारीख में तो कोई शिव जी का ज्योतिर्लिंग नही हें ? किसी जमाने में, जिसे आज सब ताज महल कहते हें, वो शिवालय हुआ करता था |जिसे शाहजहाँ ने अपनी पत्नी या कहे की बच्चे पैदा करने की मशीन मुमताज की लाश को दफ़नकरने के लिए जबरदस्ती छीन लिया था | पूरी तथ्यात्मक रिपोर्ट पढ़े और अगर आप की रगों में हिन्दू का खून हें, तो ज्यादा से ज्यादा शेयर जरुर करे......
>प्रो. ओक कि खोज ताजमहल के नाम से प्रारम्भ होती है———
=”महल” शब्द, अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में भवनों के लिए प्रयोग नही किया जाता…
यहाँ यह व्याख्या करना कि, महल शब्द मुमताज महल से लिया गया है……वह कम से कम दो प्रकार से तर्कहीन है-
पहला - शाहजहाँ कि पत्नी का नाम मुमताज महल कभी नही था, बल्कि उसका नाम मुमताज-उल-ज़मान ­ी था ।
और दूसरा - किसी भवन का नामकरण किसी महिला के नाम के आधार पर रखने के लिए केवल अन्तिम आधे भाग (ताज)का ही प्रयोग किया जाए और प्रथम अर्ध भाग (मुम) को छोड़ दिया जाए, यह समझ से परे है ।
प्रो.ओक दावा करते हैं कि,ताजमहल नाम तेजो महालय (भगवान शिव का महल) का बिगड़ा हुआ संस्करण है, साथ ही साथ ओक कहते हैं कि -
मुमताज और शाहजहाँ कि प्रेम कहानी, चापलूस इतिहासकारों की भयंकर भूल और लापरवाह पुरातत्वविदों की सफ़ाई से, स्वयं गढ़ी गई कोरी अफवाह मात्र है, क्योंकि अगर इसमे थोड़ी भी सच्चाई होती तो शाहजहाँ के समय का कम से कम एक शासकीय अभिलेख इस प्रेम कहानी की पुष्टि कही ना कही जरुर करता है…..
इसके अतिरिक्त बहुत से प्रमाण ओक के कथन का प्रत्यक्षतः समर्थन कर रहे हैं……
तेजो महालय (ताजमहल) मुग़ल बादशाह के युग से पहले बना था, और यह भगवान् शिव कोसमर्पित था तथा आगरा के राजपूतों द्वारा पूजा जाता था ।
==>न्यूयार्क के पुरातत्वविद प्रो. मर्विन मिलर ने ताज के यमुना की तरफ़ केदरवाजे की लकड़ी की कार्बन डेटिंग के आधार पर 1985 में यह सिद्ध किया कि, यह दरवाजा सन् 1359 के आसपास अर्थात् शाहजहाँ के काल से लगभग 300 वर्ष पुराना है ।
==>मुमताज कि मृत्यु जिस वर्ष (1631) में हुई थी, उसी वर्ष के अंग्रेज भ्रमण कर्ता पीटर मुंडी का लेख भी इसका समर्थन करता है कि, ताजमहल मुग़ल बादशाह के पहले का एक अति महत्वपूर्ण भवन था ।
==>यूरोपियन यात्री जॉन अल्बर्ट मैनडेल्स्लो ने सन् 1638 (मुमताज कि मृत्यु के 07 साल बाद) में आगरा भ्रमण किया, और इस शहर के सम्पूर्ण जीवन वृत्तांत का वर्णन किया, परन्तु उसने ताज के बनने का कोई भी सन्दर्भ नही प्रस्तुत किया, जबकि भ्रांतियों मे यह कहा जाता है कि ताज का निर्माण कार्य 1631 से 1651 तक जोर शोर से चल रहा था ।
==>फ्रांसीसी यात्री फविक्स बर्निअर एम.डी. जो औरंगजेब द्वारा गद्दीनशीन होने के समय भारत आया था, और लगभग दस सालयहाँ रहा, के लिखित विवरण से पता चलता है कि, औरंगजेब के शासन के समय यह झूठ फैलाया जाना शुरू किया गया कि, ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था…….
प्रो. ओक. बहुत सी आकृतियों और शिल्प सम्बन्धी असंगताओं को इंगित करते हैं जो इस विश्वास का समर्थन करते हैं कि, ताजमहल विशाल मकबरा न होकर विशेषतः हिंदू शिव मन्दिर है…….
आज भी ताजमहल के बहुत से कमरे शाहजहाँ के काल से बंद पड़े हैं, जो आम जनता की पहुँच से परे हैं। प्रो. ओक जोर देकर कहते हैं कि, हिंदू मंदिरों में ही पूजाएवं धार्मिक संस्कारों के लिए भगवान् शिव की मूर्ति, त्रिशूल,कलश और ॐ आदि वस्तुएं प्रयोग की जाती हैं।
==>ताज महल के सम्बन्ध में यह आम किवदंत्ती प्रचलित है कि ताजमहल के अन्दर मुमताज की कब्र पर सदैव बूँद बूँद कर पानी टपकता रहता है, यदि यह सत्य है तो पूरे विश्व मे किसी कि भी कब्र पर बूँद बूँद कर पानी नही टपकाया जाता, जबकि प्रत्येक हिंदू शिव मन्दिर में ही शिवलिंग पर बूँद बूँद कर पानी टपकाने की व्यवस्था की जाती है, फ़िर ताजमहल (मकबरे) में बूँद बूँद कर पानी टपकाने का क्या मतलब….????
राजनीतिक भर्त्सना के डर से इंदिरा गाँधी सरकार ने ओक की सभी पुस्तकें स्टोर्स से वापस ले लीं थीं, और इन पुस्तकों के प्रथम संस्करण को छापने वाले संपादकों को भयंकर परिणाम भुगत लेने की धमकियां भी दी गईं थी ।
प्रो. पी. एन. ओक के अनुसंधान को ग़लत या सिद्ध करने का केवल एक ही रास्ता है, कि वर्तमान केन्द्र सरकार बंद कमरों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में खुलवाए, और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दे ।
ज़रा सोचिये….!!!!!!
कि यदि ओक का अनुसंधान पूर्णतयः सत्य है तो किसी देशी राजा के बनवाए गए संगमरमरी आकर्षण वाले खूबसूरत, शानदारएवं विश्व के महान आश्चर्यों में से एक भवन, “तेजो महालय” को बनवाने का श्रेय बाहर से आए मुग़ल बादशाह शाहजहाँ को क्यों……?????
तथा -
इससे जुड़ी तमाम यादों का सम्बन्ध मुमताज-उल-ज़मान ­ी से क्यों……..?????? ­? ताजमहल के बारे में ये लाइने बिलकुल सटीक बैठती हें--
आंसू टपक रहे हैं, हवेली के बाम से,
रूहें लिपट के रोती हैं, हर खासों आम से|
अपनों ने बुना था हमें, कुदरत के काम से,
फ़िर भी यहाँ जिंदा हैं, हम गैरों के नाम से|

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