भगत सिंह के देश में
भेडिये लूट रहे माँ का आँचल नेताओं के भेष में
आज नहीं क्या लहू उबलता भगत सिंह के देश में?
जीत के भी शिखरों पर जब अपना सीना तान चढे
हौंसले उन वीरों के तब दील्ली के परवान चढे
अब होती रोज ये हत्याऐं, न जाने कितनी विधवाऐं
पूछती हैं प्रश्न वही क्यूँ सीमित रह गयी सीमाऐं
क्यूँ है जिन्दा अब भी दुश्मन हपने ही परिवेश में
आज नहीं क्या लहू उबलता भगत सिंह के देश में?
एक अरब की आबादी, सब खून पसीना बाहाते हैं
और चुने हुए इस संसद के देश को बेच खाते हैं
कैसे गाँधी के लाल हैं ये, माँ के भी दलाल हैं ये
आओ अब इन्हें खत्म करो हिन्दुस्तान के काल हैं ये
यहाँ भूख से मरते रोज़ बच्चे और काला धन विदेश में
आज नहीं क्या लहू उबलता भगत सिंह के देश में?
जितने प्रतिनिधि जनता के, जितने ये अधिकारी हैं
सौ में से निन्यानवे तो बेईमान और भ्रुष्टाचारी हैं
इन सरकारी बत्ती वालों की ना अब आरती उतारिये
देश के गद्दार हैं जो, उनको घर में घुस के मारिये
क्या देख रहे हो यूँ जलता भारत सूचना विशेष में
आज नहीं क्या लहू उबलता भगत सिंह के देश में?
जय हिन्द .... वन्देमातरम .....
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