भगतसिंह के वरिष्ठ सहयोगी और अपने
"आज़ाद" नाम को सार्थक करने वाले महान
क्रांतिकारी चन्द्रशेखर "आज़ाद" का जन्म 23
जुलाई 1906 को श्रीमती जगरानी देवी व
पण्डित सीताराम तिवारी के यहाँ भाबरा (झाबुआ
मध्य प्रदेश) में हुआ था। उनके हृदय में
क्रांति की ज्वाला बहुत अल्पायु से ही ज्वलंत
थी। वे पण्डित रामप्रसाद "बिस्मिल"
की हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसियेशन (HRA)
में थे और उनकी मृत्यु के बाद नवनिर्मित
हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी/
ऐसोसियेशन (HSRA) के प्रमुख चुने गये थे।
उनके प्रति उनके समकालीन क्रांतिकारियों के
हृदय में कितना आदर रहा है उसकी एक झलक
संलग्न चित्र में वर्णित आज़ाद मन्दिर से
मिलती है। 1931 में छपे "आज़ाद मन्दिर" के
इस चित्र में उनके शव के चित्र के साथ ही वे
अपने मन्दिर में अपने क्रांतिकारी साथियों से
घिरे हुए दिखाये गये हैं।
काकोरी काण्ड के बाद झांसी में
जननी, जन्मभूमि के प्रति आदरभाव से भरे
"आज़ाद" को "बिस्मिल" से लेकर सरदार भगत
सिंह तक उस दौर के लगभग
सभी क्रांतिकारियों के साथ काम करने
का अवसर मिला था। मात्र 14 वर्ष की आयु में
अपनी जीविका के लिये नौकरी आरम्भ करने वाले
आज़ाद ने 15 वर्ष की आयु में काशी जाकर
शिक्षा फिर आरम्भ की और लगभग तभी सब
कुछ त्यागकर गांधी जी के असहयोग आन्दोलन में
भाग लिया। अपना नाम "आज़ाद" बताया, पुलिस
के डण्डे खाये, और बाद में वयस्कों की भीड के
सामने भारत माता को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य
पर एक ओजस्वी भाषण दिया।
काशी की जनता ने बाद में ज्ञानवापी में एक
सभा बुलाकर इस बालक का सम्मान किया।
.
सम्पूर्णानन्द के सम्पादन में छपने वाले
"मर्यादा" पत्र में इस घटना की जानकारी के
साथ उनका चित्र भी छपा। यही सम्पूर्णानन्द
बाद में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने।
.
"देश ने एक सच्चा सिपाही खो दिया।"~मोहम्मद
अली जिन्ना
शहीदों के आदर्श आज़ाद
उसके बाद उन्होंने देश भर में अनेक
क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया और अनेक
अभियानों का प्लान, निर्देशन और संचालन
किया। पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल के
काकोरी कांड से लेकर शहीद भगत सिंह के
सौंडर्स व संसद अभियान तक में
उनका उल्लेखनीय योगदान रहा है।
काकोरी काण्ड, सौण्डर्स हत्याकाण्ड व
बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह का असेम्बली बम
काण्ड उनके कुछ प्रमुख अभियान रहे हैं। उनके
आग्रह पर ही भगवतीचरण वोहरा ने
"फ़िलॉसॉफ़ी ऑफ़ द बॉम" तैयार किया था।
.
उनके सरल, सत्यवादी और धर्मात्मा स्वभाव
और अपने साथियों के प्रति प्रेम और समर्पण
के लिये वे सदा आदरणीय रहे।
क्रांतिकारी ही नहीं कॉंग्रेसी भी उनका बहुत
आदर करते थे। अचूक निशानेबाज़ आज़ाद
का प्रण था कि वे अंग्रेज़ों की जेल में नहीं रहेंगे।
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भगवतीचरण वोहरा
काकोरी काण्ड के बाद फ़रार आज़ाद ने पण्डित
रामप्रसाद बिस्मिल और साथियों की पैरवी और
जीवन रक्षा के लिये बहुत प्रयत्न किये थे।
.
सुखदेव, राजगुरू और भगत सिंह को बचाने के
लिये उन्होंने जेल पर बम से हमले
की योजना बनाई और उसके लिये नये और
अधिक शक्तिशाली बमों पर काम किया।
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दुर्भाग्य से बमों की तैयारी और जाँच के दौरान
बम विशेषज्ञ क्रांतिकारी भगवतीचरण
वोहरा की मृत्यु हो गयी जिसने उन्हें शहीदत्रयी-
बचाव कार्यक्रम की दिशा बदलने को मजबूर
किया। वे विभिन्न कॉंग्रेसी नेताओं के अतिरिक्त
उस समय जेल में बन्दी गणेश शंकर विद्यार्थी से
भी मिले। दुर्गा भाभी को गांधी जी से मिलने
भेजा। इलाहाबाद आकर वे नेहरूजी सहित कई बडे
नेताओं से मिलकर भागदौड कर रहे थे। इलाहाबाद
प्रवास के दौरान वे मोतीलाल नेहरू
की शवयात्रा में भी शामिल हुए थे।
"भैया सरल स्वभाव के थे। दाँव-पेंच और कपट
की बातों से उनका दम घुटता था। उस समय पूरे
देश में एक संगठन था और उसके केन्द्र थ
.े
"आज़ाद" ~दुर्गा भाभी "
आज़ाद की पहली जीवनी क्रांतिकारी
विश्वनाथ वैशम्पायन ने लिखी थी
27 फ़रवरी 1931 को जब वे अपने
साथी सरदार भगतसिंह की जान बचाने के लिय
.े
आनन्द भवन में नेहरू जी से मुलाकात करके निकले
तब पुलिस ने उन्हें चन्द्रशेखर आज़ाद पार्क (तब
ऐल्फ़्रैड पार्क) में घेर लिया। पुलिस पर
अपनी पिस्तौल से गोलियाँ चलाकर "आज़ाद" ने
पहले अपने साथी सुखदेव राज को वहाँ से से
सुरक्षित हटाया और अंत में एक
गोली अपनी कनपटी पर दाग़ ली और "आज़ाद"
नाम सार्थक किया।
पुलिस ने बिना किसी सूचना के उनका अंतिम
संस्कार कर दिया। बाद में पता लगने पर
युवकों ने उनकी अस्थि-भस्म के साथ नगर में
यात्रा निकाली। कहते हैं कि इलाहाबाद नगर ने
वैसी भीड उससे पहले कभी नहीं देखी थी।
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यात्रा सम्पन्न होने पर प्रतिभा सान्याल,
कमला नेहरू, पण्डित नेहरू, पुरुषोत्तम दास टण्डन
सहित अनेक नेताओं ने इस महान
क्रांतिकारी को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि दी।
दल का संबंध मुझसे है, मेरे घर वालों से नहीं। मैं
नहीं चाहता कि मेरी जीवनी लिखी जाए।
.
~चन्द्रशेखर तिवारी "आज़ाद"
शत शत नमन श्री आज़ाद जी को
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