भारतीय तुमने 'कर' फैलाकर, कभी नही कुछ माँगा |
युध क्षेत्र में पीठ दिखाकर, कभी नही तू भागा ||
तू भारत माता का प्रहरी है, युगों से लड़ता आया |
कभी राम कभी कृष्ण रूप में, धर्म की रक्षा करता आया ||
जब-जब धरती पर धर्म घटा, तब-तब तुमने धर्म-युद्ध लड़ा |
अब फिर धरती पर त्राहि मची, अब फिर लड़ने की बरी है ||
हुंकार भरो, ललकार करो, ये धर्म-युद्ध हितकारी है |
पश्चिम से आते तुफानो ने जब भी हमको ललकारा है ||
विश्व विजेता बनते-बनते हर सिकंदर हमसे हारा है |
हर सागर जिससे डरता था तेरी वो प्यास कहाँ है ||
गौरी को सोलह बार हराया वोह पुरुषार्थ कहाँ है |
हिंद पर छाए राहू-केतु पाप-नाश धर्म संस्थापना हेतु ||
तुम चुप न रहो, अब सच कह दो, अब न्याय करने की बारी है |
हुंकार भरो ललकार करो, ये धर्म-युद्ध हितकारी है ||
क्यों सोया तेरा पौरुष है क्या कथा सुनानी होगी |
हनुमान की भांति शक्ति याद दिलानी होगी ?
पूर्वजो सा बल और पौरुष तुमको भी दिखलाना है |
कंधार से कन्याकुअरी तक एक राष्ट्र बनाना है ||
उठो, चलो, एकजुट हो जाओ, फिर सर्वश्रेष्ठ शक्ति बन जाओ |
तुम कर्म करो, फिर से व्रत धरो, फिर यज्ञ करने की बारी है ||
हुंकार भरो ललकार करो, ये धर्म-युद्ध हितकारी है....धर्म-युद्ध हितकारी है......
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