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Monday, February 18, 2013

सिर्फ तुम्हारे लिये...!



फर्ज के पुलिदो
का वोह गठ्ठर,
चलो उठो !
और देखो खोलकर..,
क्शत्रिय धर्मग्रन्थो के
उन पन्नो को..,
छुआ नही हे तुमने,
जिन्हे अभी तक,

ये देखो!
रक्त-रंजित इन
आभुशनो को....,
पहन्कर जिन्हे
लढा था धर्मयुद्ध
बुजुर्गो ने...
सिर्फ तुम्हारे लिये..

वह देखो!
किले की उन
खंडित दिवारो को
जिसको लेकर बहा था लहु,
पानी ज्यो..
बचाने को अस्तित्व...
सिर्फ तुम्हारे लिये.

छुकर देखो!
गर्म हे अभी तक,
जौहर की राख,
जब...
विलिन हुइ क्षत्राणिय़ा,
बचाने को सतित्व,
सिर्फ तुम्हारे लिये...

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