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Wednesday, February 13, 2013

V̶a̶l̶e̶n̶t̶i̶n̶e̶ D̶a̶y̶

हमारे देश में कईं सारे "दिवस" मनाये जाते हैं। ये सभी दिवस या तो हमारे गौरवशाली इतिहास को याद दिलाते हैं या फिर सामाजिक कर्त्तव्यों का अहसास कराते हैं। कईं वर्षों से प्रति वर्ष पूरा देश इन्हें मनाता आ रहा है। या यूँ कहें कि इन "दिवसों" के नाम पर छुट्टी मनाता आ रहा है। इसी तरह से ढेरों "जयन्तियाँ" थोक के भाव में हर महीने आ ही जाती हैं।
 
खैर पिछले आठ से दस साल से एक और "दिवस" हम भारतीयों की ज़िन्दिगी का हिस्सा बन गया है। जिसका नाम है "वेलंटाइन डे" अब अंग्रेज़ी के "डे" को हिन्दी में दिवस ही बोलेंगे। ये दिवस बाकि सब दिवसों का "बाप" बन कर आया है। सरकार गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर छुट्टी देती है और हम घर में सो कर बिता देते हैं। जबकि इस "वेलेंटाइन डे" पर छुट्टी करते हैं और बाहर घूमने जाते हैं। मैने बिना किसी कारण के इस "डे" को सबका "बाप" नहीं कहा है। एक आँकड़ा देखिये- 1500 करोड़। ये आँकड़ा इस वर्ष वेलेंटाइन डे पर होने वाले पूरे व्यापार का। हम भारतीयों ने 1500 करोड़ रूपये केवल इस "दिवस" को मनाने में खर्च किये। क्या इसको "फ़िजूलखर्च" कहा जा सकता है? ऐसा प्रश्न कईं बार उठता है। "प्यार" के नाम पर इस दिन का व्यापारीकरण किया गया और भारतीय बाज़ार में चुपचाप उतार दिया। ठीक उसी तरह जैसे कोई कम्पनी नया प्रोडक्ट बाज़ार में पेश करती है।
करीबन दस साल पहले जब ये "दिन" भारत के बाज़ार में आया तब किसी ने नहीं सोचा था कि "बाज़ार" में प्यार के दाम में इतना अधिक उछाल आ जायेगा कि बाकि सब ऐतिहासिक दिन पीछे छूट जायेंगे। नई पीढ़ी "प्रेम" के नये फ़ंडे को अपनाती चली गई और आज यह प्रोडक्ट 1500 करोड़ में बिकता है। आने वाले समय में ईद और दीवाली को टक्कर देने वाला है। एक "दिन" से ऊपर उठकर त्योहार की उपाधि पाने से इसे कोई नहीं रोक सकता।
 
एक और आँकड़े की मानें तो अमरीका में 14 फ़रवरी के आसपास अधिक तालाक होने शुरु हो गये हैं। पिछले दो सालों में 40 प्रतिशत का उछाल आया है। हमारे देश में भी तालाक की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। पिछले कुछ वर्षों से एक नया शब्द चलन में है "ब्रेक अप"। यानि युवक युवती में कथित "प्यार" हुआ (शायद कुछ वेलेंटाइन डे साथ में बिताये) और फिर अलग हो गये। ऐसा क्यों? प्यार की कीमत क्यों लगाई जाने लगी है? राधा-कॄष्ण के प्रेम की साक्षी यह धरती आज इस एक दिन की मोहताज क्यों बन गई है? क्या हमें इस प्यार(?) के लिये किसी विशेष दिन की दरकार है , तो फिर 14 फ़रवरी का इंतज़ार क्यों करें।
प्रेम की इस संसार को ज़रूरत है.... पर प्रेम के व्यापारीकरण का क्या....
 
वेलेंटाइन-डे पर मुझे मेरे साथियों ने मेरे विचार पूछे! ,सच कहूं तो इस विषय पर मुझे लिखने की रूचि नहीं थी। लिखने के लिए बहुत कुछ हैं जो वर्तमान देश के लिए आवश्यक भी हैं। प्रेम कोई बाजार में खरिदने-बेचने की चीज तो नहीं कि इस विषय पर बहुत विज्ञापन करते रहे। प्रेम एक ऐसी अहसास हैं जो एकान्त में ही शोभा देती हैं। प्रेम की अभिव्यक्ति सार्वजनिक रूप से करने की क्या आवश्यकता है? दुनियॉं इसकी विरोध करें या समर्थन दें। प्रेम के लिए इसकी कोई आवश्यकता नहीं होती। प्रेम करने वाले करते रहेंगे और विरोध करने वाले विरोध भी करेंगे। दोनों एक साथ चलता हैं। इसलिए इतनी हंगामा करने की क्या आवश्यकता है? भारत वर्ष में तो प्रेम कहानियॉं अमर होती हैं हीर-राझां, लैला-मजनू, आशिक-मासूका, सोनी-माहिवाल, देव-पारो। लेकिन सबसे पवित्र प्रेम की मिशाल राधा-कृष्ण... जिनका प्रेम अतुलनीय है। प्रेम को एक दिन विशेष में बॉध देने से सारी समस्या उत्पन्न हो रही हैं। प्रेम तो माता.पिता से ,भाई–बहनों से, पास-पडौसी से, दोस्त–दोस्त से, ऐसी सभी से किया जा सकता हैं। भारत वर्ष में तो इतनी पूजा पाठ, त्यौहार आदी प्रचलित हैं जिसका मकशद प्रेम भाव होता है। होली में रंग गुलाल की त्यौहार तो बसन्त में मतवाला कर देती हैं यदि वास्तविक भाव द्वारा इसे मनाई जाए तो प्रेम की त्यौहार का रूप ही कुछ ओर दिखेगा। रास–लीला, से बढकर कोई वेलेंटाइन–डे ,दूनियॉं में खोजने से मिल सकेगा क्या? रक्षा बन्धन ,भाई दूज सभी तो हमारे धरोहर हैं, फिर नई रूप से एक त्यौहार इस देश में जबरदस्ती लादने का षड़यंत्र क्यो किया जा रहा है? कोई भी त्यौहार मनाने के लिए या कोई भी डे मनाने के लिए आर्थिक साधनों का होना अति आवश्यक होता हैं। जिस देश में ४० करोड जनता को भरपेट भोजन उपलब्ध न हो, उस देश में एक विदेशी खर्चिला दिन लादने का कुचेष्टा से मन आहत हो उठता है, जब देश में चारों ओर अँधेरा ही अन्धेरा नजर आता हो, ऐसी स्थिति में प्रेम की अभिव्यक्ति किस तरह से हो सकता हैं, यह विचारनीय प्रश्न हैं।
 
जब देश गुलाम था तब नौजवानों ने मातृभुमि की रक्षा के लिए अपना सबकुछ न्यौछावार कर दिया करते थें। युवावस्था में वे हँसते -हँसते फॉंसी के फन्दे में झुलजाया करते थे। समय के साथ–साथ प्राथमिकता भी बदलती है। अत: आज की स्थिति को देखते हुए हम सभी को त्याग करने के लिए वाध्य किया जाना चाहिए। प्रेम फिर भी अमर रहेगा। प्रेम तो हो जाने वाली विषय है। प्रचार प्रसार से लाखों मिल दुर प्रेम की मंजिल है। मात्र दिखावा के लिए और व्यापार बनाने के लिए इसे हथियार के रूप में इस्तेमाल करना कभी शोभा नहीं देता।

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