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Saturday, February 16, 2013

मानव का प्रकृति,वृक्षों और पौधों के साथ अटूट रिश्ता

मानव का प्रकृति,वृक्षों और पौधों के साथ सदियों से अटूट रिश्ता रहा है। वृक्ष, मानव जीवन का आधार है। केवल बढ़ते हुए प्रदूषण को रोकने में ही नहीं, बल्कि जलवायु एवं वातावरण के संतुलन में भी वृक्षों का योगदान सर्वोपरि है। वृक्षों से हमें फल, फूल, औषधि और लकड़ी आदि तो मिलता ही है, साथ ही घर और अपने आसपास पेड़-पौधे लगाना मनुष्य का धर्म है।
बागवानी का गृह-विन्यास और नगर-विन्यास से अटूट नाता है। हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा इससे संबंधित व्याख्या ज्योतिष और वास्तु संबंधी ग्रंथों में विस्तार से की गई है।ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार, हमारे सौरमंडल के विभिन्न ग्रहों का अलग-अलग प्रकार के वृक्षों पर आधिपत्य है। जो वृक्ष ऊंचे और मज़बूत तथा कठोर तने वाले (शीशम इत्यादि) हैं, उनपर सूर्य का विशेष अधिकार होता है। दूध वाले वृक्षों (देवदार इत्यादि) पर चंद्र का प्रभाव होता है। लता, वल्ली इत्यादि पर चंद्र और शुक्र का अधिकार होता है। झाड़ियों वाले पौधों पर राहू और केतू काविशेष अधिकार है। जिन वृक्षों में रस विशेष न हो, कमज़ोर, देखने में अप्रिय और सूखे वृक्षों पर शनि का अधिकार है।
सभी फलदार वृक्ष बृहस्पति के वर्ग में, बिना फल के वृक्षों पर बुध का और फल, पुष्प वाले चिकने वृक्षों पर शुक्र का अधिकार है। औषधीय जड़ी बूटियों का स्वामीचन्द्रमा है। आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली में किसी ग्रह के अधीन आने वाले वनस्पतियों और औषधियों से ही उस ग्रह-जनक रोग का उपचार किया जाता है।उदाहरण के लिए बुध हमारी याद्दाश्त का कारक है और ब्राह्री बूटी जो बुध के आधिपत्य में है उसका इस्तेमाल याद्दाश्त वाली दवाई के रूप में किया जाता है।
ग्रहों के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए मंत्रपाठ, हवन, ध्यान और उपाय संबंधी रत्नों का उपयोग किया जाता है। इन सभी के अत्यधिक मूल्यवान होने से कई बार ये सभी सामान्य जन की पहुंच से दूर होते हैं। ऐसे में कुछ पौधों की जड़ों का इस्तेमाल रत्नों के विकल्प के रूप में किया जाता है। वास्तुशास्त्र के ग्रंथों के अनुसार, पाकड़ का वृक्ष दक्षिण में, बड़ पश्चिम में, गूलर उत्तर में और पीपल पूर्व में हो, तो यह अशुभ है।
इसके विपरीत उत्तर में पाकड़, पूर्व में बड़, दक्षिण में गूलर और पश्चिम में पीपल शुभ है। गृह के समीप कांटेदार वृक्ष (बबूल आदि)होने से शत्रुभय, दूध वाले वृक्ष (आक, कटैली आदि) से धननाश और फलदार वृक्ष संतान के लिए हानिकारक होते हैं। इन वृक्षों को घरके पास नहीं लगाना चाहिए और उनकी लकड़ी भी घर में प्रयोग न करें। यदि इन वृक्षों को हटाना किसी कारण संभव न हो, तो इनके बीच में शुभदायक वृक्ष जैसे नागकेसर, अशोक, अरिष्ट, कटहल, शमी जैसे कोई वृक्ष लगा देने से दोष निवृत हो जाता है।
घर के पूर्व, उत्तर-पश्चिम या ईशान कोण में वाटिका या तालाब बनवाने से अत्यंत शुभ होता है। ईशान कोण की वाटिका में हल्के फूलों वाले पौधे, बेल और लताएं और औषधीय गुणों वाले पौधे जैसे तुलसी, आंवला इत्यादि लगाए जाने चाहिए। घर के आसपास नीम, अनार, अशोक, नारियल, सुपारी और घर के भीतर तुलसी, गुलाब, चंदन, मोगरा, चमेली और अंगूर के पौधे शुभ होते हैं। मकान से कुछ दूरी पर ईशान में आंवला, नैऋत्य में इमली, आग्नेय में अनार, उत्तर में कैथ व पाकड़, दक्षिण में गुलाब और पश्चिम में पीपल लगाना चाहिए।
हमारे शास्त्रों में वृक्षों की महत्ता और उपयोगिता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति एक पीपल, एक नीम, दस इमली, तीन कैथ, तीन बेल, तीन आंवला और पांच आम के वृक्ष लगाता है, वह पुण्यात्मा होता है और कभी नरक के दर्शन नहीं करता।
..................हर हर महादेव ...............जय अम्बे

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