हिन्दुओ टुटना बँटना बँद करो ~~
हमने खुद अपनों को नीचा कहकर के ठुकराया है |
हार के रूप में हमने अपनी गलती का फल पाया है ||
गैरों का ये दल न किसी भी आसमान से आया है |
पाप हमारा बनकर के आतंक हमीं पर छाया है ||
भूल पुरानी दुःखदायी है अब तो चलो सुधार करें |
बिछड़ गये जो भाई उनको गले लगाकर प्यार करें ||
वरना ये कांसी माया अंग्रेजों से भी भारी होंगे |
फूट डालकर जिनने अपना देश गुलाम बनाया था ||
में बोलूंगी गीत ये मैंने बार बार दोहराया था |
तुम मत कहना कवियों ने अपना धर्म नही निभाया था ||
हस्ती न मिट सकी हमारी दुश्मन था जग सदियों से |
गाकर मत भूलो जाकर पूछो पंजाबी नदियों से ||
कहॉ गया कंधार कहॉ नानकाना साहिब प्यारा है |
दूर हुआ गंगा से उसका सप्त सिंधुजल न्यारा है ||
कश्मीर कैलाश गया और हस्ती मिटती आई है |
दिग्विजयी भारत की सीमा सदा सिमटती आई है ||
कहॉ गया वो तक्षशिला का गुरूकुल जिसने दुनिया को |
ज्ञान कला विज्ञान नीति का पहला पाठ पढ़ाया था ||
में बोलूंगी गीत ये मैंने बार बार दोहराया था |
तुम मत कहना कवियों ने अपना धर्म नही निभाया था ||
दुश्मन की ताकत से ज्यादा ताकत सदा हमारी थी |
चंद दुश्मनों फिर भी कर ली हम पर सरदारी थी ||
गांधार पारस तक अपनी विजय ध्वजा फहराती थी |
दूर दूर तक भारत के बेटों की फैली थाती थी ||
कहॉ गया वो सिंध बंग कैलाश जो जग से न्यारा था |
कटा फटा है देश हमारा जो वीरों का प्यारा था ||
नहीं रहा भू भाग के जिस पर बड़े गर्व से पुरखों ने |
हिन्दु भूमि कहकर के अपना भगवा ध्वज लहराया था ||
में बोलूंगी गीत ये मैंने बार बार दोहराया था |
तुम मत कहना कवियों ने अपना धर्म नही निभाया था ||
कदम कदम पर देशभक्ति की जो मिसाल दी जाती थी |
जापानी वीरों की गाथायें दोहराई जाती थी ||
जिसने एटम बम का मद तोड़ा है अपने सीने से |
देश बनाया जिस पीढ़ी ने अपने खून पसीने से ||
उस पीढ़ी की नई जवानी काम छोड़कर नाच रही |
चार्वाक के आदर्शों को कर्मों व्दारा बॉच रही ||
इतिहासों में देखो कि दुश्मन ने घुसपैठी बनकर के |
हर राजा को राग रंग में फॅसा कैद करवाया था ||
में बोलूंगी गीत ये मैंने बार बार दोहराया था |
तुम मत कहना कवियों ने अपना धर्म नही निभाया था ||
हम ईश्वर को बॉध रहे अपने घर की दीवारों में |
खोट कहीं न कहीं मगर है भक्ति भरे विचारों में ||
हम अपने ठाकुरजी को सोने चॉदी से मढ़वाते हैं |
ठाकुरजी का है नाम प्रतिष्ठा हम अपनी बढ़वाते है ||
ठाकुरजी को अपनाते अपनाते ठाकुरजी की राह नहीं |
दुनिया जिस ठाकुरजी की उस ठाकुरजी की है पर्वाह नहीं ||
सचमुच अगर तुम्हारे ठाकुरजी दुनियॉ भर के ठाकुरजी है तो |
गले लगाओ उन्हें जिन्हें ठाकुरजी ने गले लगाया था ||
में बोलूंगी गीत ये मैंने बार बार दोहराया था |
तुम मत कहना कवियों ने अपना धर्म नहीं निभाया था ||
साथ चलें और साथ में बोले वेद वचन ये प्यारा है |
व्यष्टि नहीं समष्टि में हरि ने खुद को विस्तारा है ||
जाओ मंदिर में सत्संग करो सबके संग भजन करो |
अपने अपने घर में छोटे मंदिर का मत सृजन करो ||
मुस्लिम को देखो कुछ भी हो पर मंदिर तोड़कर बनी मस्जिद में जाता है |
अपनी अपनी छोटी मस्जिद घर में नहीं बनाता है ||
इसीलिये वे एक और हम टुकडो में हैं बटे हुए |
सोचो कि संतों ने क्यूं मंदिर का चलन चलाया था ||
में बोलूंगी गीत ये मैंने बार बार दोहराया था |
तुम मत कहना कवियों ने अपना धर्म नहीं निभाया था ||
स्वर्ग मिलेगा इसी वास्ते हमने हरदम दान किया |
कहा गया उसको न समझा आंख मींच कर मान लिया ||
मंदिर ऊंचे बनवाकर के स्वर्ण कलश चढ़वाये थे |
फर्शों में हीरा मोती माणिक पन्ना जड़वाये थे ||
आंख मींच कर सोचा हमने पाप हमारे छूट गये |
आंख खुली तो देखा उनको चंद विधर्मी लूट गये ||
राम कीन्ह चाहै सोइ होई कहकर के चुप बैठ गये |
अपनी कायरता की कबरों में जाकर हम लेट गये ||
टूटे सब देवालय जिनको श्रद्धा से बनवाया था |
में बोलूंगी गीत ये मैंने बार बार दोहराया था | तुम मत कहना कवियों ने अपना धर्म निभाया था |||
हमने दुर्गा सप्तशती को घर्म ग्रंथ स्वीकार किया |
तिल जौ की आहूति देकर मंत्रों का उच्चार किया ||
महिसासुर को मारा मॉ ने कथा खूब दोहराई है |
चंड मुंड संहारक मां दुर्गा की महिमा गाई है ||
किंतु कथा के अंदर का पहचाना हमने मर्म नहीं |
पूजा अर्चन मंत्रोच्चार हमने माना धर्म यही ||
फूट में पड़के देव सभी जब जाकर फंसे विपक्ति में |
एक भाव तब हुआ सहायक शक्ति की उत्पत्ति में ||
सदा संगठन में शक्ति और फूट में दुर्गति होती है |
सबकी शक्ति ने मिलकर के दुर्गा रूप बनाया था ||
में बोलूंगी गीत ये मैंने बार बार दोहराया था |
तुम मत कहना कवियों ने अपना धर्म नही निभाया था ||
हिन्दु एकत्ता है अगर तो भारत महाशक्ति के दिन दुर नही |
जीना है तो पापियों का खून पीना सीख ||
हमने खुद अपनों को नीचा कहकर के ठुकराया है |
हार के रूप में हमने अपनी गलती का फल पाया है ||
गैरों का ये दल न किसी भी आसमान से आया है |
पाप हमारा बनकर के आतंक हमीं पर छाया है ||
भूल पुरानी दुःखदायी है अब तो चलो सुधार करें |
बिछड़ गये जो भाई उनको गले लगाकर प्यार करें ||
वरना ये कांसी माया अंग्रेजों से भी भारी होंगे |
फूट डालकर जिनने अपना देश गुलाम बनाया था ||
में बोलूंगी गीत ये मैंने बार बार दोहराया था |
तुम मत कहना कवियों ने अपना धर्म नही निभाया था ||
हस्ती न मिट सकी हमारी दुश्मन था जग सदियों से |
गाकर मत भूलो जाकर पूछो पंजाबी नदियों से ||
कहॉ गया कंधार कहॉ नानकाना साहिब प्यारा है |
दूर हुआ गंगा से उसका सप्त सिंधुजल न्यारा है ||
कश्मीर कैलाश गया और हस्ती मिटती आई है |
दिग्विजयी भारत की सीमा सदा सिमटती आई है ||
कहॉ गया वो तक्षशिला का गुरूकुल जिसने दुनिया को |
ज्ञान कला विज्ञान नीति का पहला पाठ पढ़ाया था ||
में बोलूंगी गीत ये मैंने बार बार दोहराया था |
तुम मत कहना कवियों ने अपना धर्म नही निभाया था ||
दुश्मन की ताकत से ज्यादा ताकत सदा हमारी थी |
चंद दुश्मनों फिर भी कर ली हम पर सरदारी थी ||
गांधार पारस तक अपनी विजय ध्वजा फहराती थी |
दूर दूर तक भारत के बेटों की फैली थाती थी ||
कहॉ गया वो सिंध बंग कैलाश जो जग से न्यारा था |
कटा फटा है देश हमारा जो वीरों का प्यारा था ||
नहीं रहा भू भाग के जिस पर बड़े गर्व से पुरखों ने |
हिन्दु भूमि कहकर के अपना भगवा ध्वज लहराया था ||
में बोलूंगी गीत ये मैंने बार बार दोहराया था |
तुम मत कहना कवियों ने अपना धर्म नही निभाया था ||
कदम कदम पर देशभक्ति की जो मिसाल दी जाती थी |
जापानी वीरों की गाथायें दोहराई जाती थी ||
जिसने एटम बम का मद तोड़ा है अपने सीने से |
देश बनाया जिस पीढ़ी ने अपने खून पसीने से ||
उस पीढ़ी की नई जवानी काम छोड़कर नाच रही |
चार्वाक के आदर्शों को कर्मों व्दारा बॉच रही ||
इतिहासों में देखो कि दुश्मन ने घुसपैठी बनकर के |
हर राजा को राग रंग में फॅसा कैद करवाया था ||
में बोलूंगी गीत ये मैंने बार बार दोहराया था |
तुम मत कहना कवियों ने अपना धर्म नही निभाया था ||
हम ईश्वर को बॉध रहे अपने घर की दीवारों में |
खोट कहीं न कहीं मगर है भक्ति भरे विचारों में ||
हम अपने ठाकुरजी को सोने चॉदी से मढ़वाते हैं |
ठाकुरजी का है नाम प्रतिष्ठा हम अपनी बढ़वाते है ||
ठाकुरजी को अपनाते अपनाते ठाकुरजी की राह नहीं |
दुनिया जिस ठाकुरजी की उस ठाकुरजी की है पर्वाह नहीं ||
सचमुच अगर तुम्हारे ठाकुरजी दुनियॉ भर के ठाकुरजी है तो |
गले लगाओ उन्हें जिन्हें ठाकुरजी ने गले लगाया था ||
में बोलूंगी गीत ये मैंने बार बार दोहराया था |
तुम मत कहना कवियों ने अपना धर्म नहीं निभाया था ||
साथ चलें और साथ में बोले वेद वचन ये प्यारा है |
व्यष्टि नहीं समष्टि में हरि ने खुद को विस्तारा है ||
जाओ मंदिर में सत्संग करो सबके संग भजन करो |
अपने अपने घर में छोटे मंदिर का मत सृजन करो ||
मुस्लिम को देखो कुछ भी हो पर मंदिर तोड़कर बनी मस्जिद में जाता है |
अपनी अपनी छोटी मस्जिद घर में नहीं बनाता है ||
इसीलिये वे एक और हम टुकडो में हैं बटे हुए |
सोचो कि संतों ने क्यूं मंदिर का चलन चलाया था ||
में बोलूंगी गीत ये मैंने बार बार दोहराया था |
तुम मत कहना कवियों ने अपना धर्म नहीं निभाया था ||
स्वर्ग मिलेगा इसी वास्ते हमने हरदम दान किया |
कहा गया उसको न समझा आंख मींच कर मान लिया ||
मंदिर ऊंचे बनवाकर के स्वर्ण कलश चढ़वाये थे |
फर्शों में हीरा मोती माणिक पन्ना जड़वाये थे ||
आंख मींच कर सोचा हमने पाप हमारे छूट गये |
आंख खुली तो देखा उनको चंद विधर्मी लूट गये ||
राम कीन्ह चाहै सोइ होई कहकर के चुप बैठ गये |
अपनी कायरता की कबरों में जाकर हम लेट गये ||
टूटे सब देवालय जिनको श्रद्धा से बनवाया था |
में बोलूंगी गीत ये मैंने बार बार दोहराया था | तुम मत कहना कवियों ने अपना धर्म निभाया था |||
हमने दुर्गा सप्तशती को घर्म ग्रंथ स्वीकार किया |
तिल जौ की आहूति देकर मंत्रों का उच्चार किया ||
महिसासुर को मारा मॉ ने कथा खूब दोहराई है |
चंड मुंड संहारक मां दुर्गा की महिमा गाई है ||
किंतु कथा के अंदर का पहचाना हमने मर्म नहीं |
पूजा अर्चन मंत्रोच्चार हमने माना धर्म यही ||
फूट में पड़के देव सभी जब जाकर फंसे विपक्ति में |
एक भाव तब हुआ सहायक शक्ति की उत्पत्ति में ||
सदा संगठन में शक्ति और फूट में दुर्गति होती है |
सबकी शक्ति ने मिलकर के दुर्गा रूप बनाया था ||
में बोलूंगी गीत ये मैंने बार बार दोहराया था |
तुम मत कहना कवियों ने अपना धर्म नही निभाया था ||
हिन्दु एकत्ता है अगर तो भारत महाशक्ति के दिन दुर नही |
जीना है तो पापियों का खून पीना सीख ||
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