योग की परिभाषा में आत्मा और परमात्मा के मिलन
को योग बोलते हैं अर्थात हमारे अंदर दिव्यशक्तियां उत्पन्न करने वाली
क्रिया ही योग है। योगग्रंथ में योग के 8 अंगों को बताया गया है। आत्मा को
ईश्वर से संबंध स्थापित करने के लिए मन की चंचलता को रोककर, उसे नियंत्रित
कर, उसे एकाग्रता प्रदान करते हुए समाधि को प्राप्त कर लेना ही योग कहलाता
है।
योग के सात प्रकार है- 1. कर्म योग 2. राज योग 3. हठयोग 4. भक्ति योग 5. कुण्डिलिनी योग 6. मंत्र योग 7. ज्ञान योग।
योग क्रिया के अभ्यास में यम का पालन करना आवश्यक होता है।
यम की मुख्य 5 क्रियाएं है- 1. अहिंसा अर्थात किसी भी प्राणी को मन, वाणी एवं शरीर से कष्ट नहीं देना 2. सत्य बोलना और किसी से छल-कपट नहीं करना 3. चोरी नहीं करना 4. संयम रखना 5. ब्रह्मचर्य। योगाभ्यास के लिए 5 नियम हैं- 1. शौच 2. संतोष 3. तपस 4. स्वाध्याय 5. सिद्धांत।
योग के आठ अंग होते हैं. यम, नियम, प्रत्याहार, आसन, प्राणायाम, धारणा, ध्यान, समाधि। इन सभी को मिलाकर योग बनता है। आसन से हमारा शरीर स्वस्थ होता है। प्राणायाम से हमारे शरीर में रजिस्टेंश पॉवर बढ़ती है। इससे इतनी रजिस्टेंश पॉवर आ जाती है कि बाहर का रोग अंदर आना बंद हो जाता है। प्रत्याहार में हम अपनी पांचों ज्ञानेन्द्रियों को कंट्रोल करने का अभ्यास करते हैं जैसे- आंख देखने के लिए, कान सुनने के लिए, नाक सूंघने के लिए, जीभ स्वाद लेने के लिए और त्वचा स्पर्श करने के लिए होती है। अब हमें इन पर नियंत्रण करना है- उदाहरण के लिए- पेट भरा हुआ है लेकिन सामने रसगुल्ला पड़ा हुआ है और हम स्वाद में खाते जा रहे हैं। हम ये नहीं देख रहे कि यह कितना नुकसान करेगा। इसका अर्थ है जीभ पर हमारा नियंत्रण नहीं है। धारणा में हम अपने को कॉनंस्ट्रेट करना सीखते हैं। यदि हमने अपने जीवन का कोई टारगेट बना लिया तो हम उसके अनुसार कार्य करते जाएंगे और सफल होते जाएंगे। इसके द्वारा हम अपने जीवन की प्लानिंग करते हुए आगे बढ़ते रहेंगे। ध्यान में हम अपने मन को अपनी मर्जी से एक स्थान पर केन्द्रित करने का अभ्यास करते हैं। यहां हम अपने मन को भटकने से रोकने की शक्ति पाते हैं। हम जहां चाहे वहां अपने ध्यान को केन्द्रित कर सकते हैं। इससे स्मरण शक्ति बढ़ती है, नर्वस-सिस्टम ठीक से कार्य करता है एवं सोचने-समझने की क्षमता बढ़ती है। दिमाग में नए-नए प्लान आते रहते हैं। ध्यान का अंतिम रूपसमाधि है। ये आठों मिलाकर योग कहलाते हैं। इनमें योगासन, प्राणायाम और ध्यान प्रमुख हैं।
योग के सात प्रकार है- 1. कर्म योग 2. राज योग 3. हठयोग 4. भक्ति योग 5. कुण्डिलिनी योग 6. मंत्र योग 7. ज्ञान योग।
योग क्रिया के अभ्यास में यम का पालन करना आवश्यक होता है।
यम की मुख्य 5 क्रियाएं है- 1. अहिंसा अर्थात किसी भी प्राणी को मन, वाणी एवं शरीर से कष्ट नहीं देना 2. सत्य बोलना और किसी से छल-कपट नहीं करना 3. चोरी नहीं करना 4. संयम रखना 5. ब्रह्मचर्य। योगाभ्यास के लिए 5 नियम हैं- 1. शौच 2. संतोष 3. तपस 4. स्वाध्याय 5. सिद्धांत।
योग के आठ अंग होते हैं. यम, नियम, प्रत्याहार, आसन, प्राणायाम, धारणा, ध्यान, समाधि। इन सभी को मिलाकर योग बनता है। आसन से हमारा शरीर स्वस्थ होता है। प्राणायाम से हमारे शरीर में रजिस्टेंश पॉवर बढ़ती है। इससे इतनी रजिस्टेंश पॉवर आ जाती है कि बाहर का रोग अंदर आना बंद हो जाता है। प्रत्याहार में हम अपनी पांचों ज्ञानेन्द्रियों को कंट्रोल करने का अभ्यास करते हैं जैसे- आंख देखने के लिए, कान सुनने के लिए, नाक सूंघने के लिए, जीभ स्वाद लेने के लिए और त्वचा स्पर्श करने के लिए होती है। अब हमें इन पर नियंत्रण करना है- उदाहरण के लिए- पेट भरा हुआ है लेकिन सामने रसगुल्ला पड़ा हुआ है और हम स्वाद में खाते जा रहे हैं। हम ये नहीं देख रहे कि यह कितना नुकसान करेगा। इसका अर्थ है जीभ पर हमारा नियंत्रण नहीं है। धारणा में हम अपने को कॉनंस्ट्रेट करना सीखते हैं। यदि हमने अपने जीवन का कोई टारगेट बना लिया तो हम उसके अनुसार कार्य करते जाएंगे और सफल होते जाएंगे। इसके द्वारा हम अपने जीवन की प्लानिंग करते हुए आगे बढ़ते रहेंगे। ध्यान में हम अपने मन को अपनी मर्जी से एक स्थान पर केन्द्रित करने का अभ्यास करते हैं। यहां हम अपने मन को भटकने से रोकने की शक्ति पाते हैं। हम जहां चाहे वहां अपने ध्यान को केन्द्रित कर सकते हैं। इससे स्मरण शक्ति बढ़ती है, नर्वस-सिस्टम ठीक से कार्य करता है एवं सोचने-समझने की क्षमता बढ़ती है। दिमाग में नए-नए प्लान आते रहते हैं। ध्यान का अंतिम रूपसमाधि है। ये आठों मिलाकर योग कहलाते हैं। इनमें योगासन, प्राणायाम और ध्यान प्रमुख हैं।
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