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Tuesday, January 29, 2013

वेदों का महत्व
वेद भारतीय संस्कृति के मूलाधार हैं। सृष्टि के आदिकाल में परमपिता परमात्मा ने चार ऋषियों के पवित्र अंत:करण में वेदरूपी सूर्य का प्रकाश किया। अग्नि ऋषि को ऋग्वेद का, वायु ऋषि को यजुर्वेद का, आदित्य ऋषि को सामवेद का, अंगिरा ऋषि को अथर्ववेद का ज्ञान दिया। जो ज्ञान सृष्टि के आदिकाल में दिया जाता है वही ज्ञान ईश्वरीय ज्ञान कहलाता है। ज्ञान की दृष्टि से वेद एक ही है किंतु विषय की दृष्टि से चार विभाग किए गए हैं। ऋग्वेद ज्ञान का भंडार, यजुर्वेद कर्म का द्योतक, सामवेद संगीत विद्या का धनी तथा अथर्ववेद विज्ञान का पितामह है।

जिस प्रकार कोई उत्पादक किसी वस्तु का उत्पादन करता है तो उस वस्तु पर उसके प्रयोग करने की विधि भी लिख देता है ठीक उसी प्रकार जब परमात्मा ने मनुष्यों को वेद ज्ञान दिया तो उसके साथ-साथ वेद रूपी, संविधान भी दिया। जिसके माध्यम से हमें यह ज्ञात हो सके कि इस दुनिया में कैसे रहना है? कैसा हमारा खान-पान हो, कैसा आचार-विचार हो, कैसी उपासना पद्धति हो? इन सब बातों के लिए यह वेद ज्ञान दिया, क्योंकि वेद जीवन ग्रंथ हैं। यह हमें जीवन जीने की कला सिखाता है। वेद संपूर्ण प्राणिमात्र के कल्याण के लिए हैं। जैसा कि यजुर्वेद के 32वें अध्याय में कहा है 'यथेमांवाचं कल्याणी मावदानि जनेभ्य'। जिस प्रकार सूर्य की प्रकाश सबके लिए है, वायु सबके लिए है, ठीक उसी प्रकार वेद का ज्ञान सबके लिए है। इसलिए वेद को माता कहकर संबोधित किया गया है। संसार में बहुत सी माताएं हैं- गौमाता, धरती माता, जन्मदात्री माता, लेकिन इन सब माताओं के साथ-साथ यदि परमात्मा ने हमें वेदमाता न दी होती तो हम इन माताओं के बारे में भी ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते थे। वेद ज्ञान कहता है कि जो तर्क की कसौटी पर सत्य पाया जाए वही सत्य है। वेद की सत्ता अनंतकाल तक रहने वाली है क्योंकि यह ग्रंथ किसी व्यक्ति विशेष की कल्पना पर आधारित नहीं है। वेदों में शुद्ध ज्ञान है जिससे व्यक्ति सांसारिक बंधनों से मुक्त रहने का मार्ग ढूंढ़ लेता है।

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