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Tuesday, January 29, 2013

मनुष्य की खूबी ....

मनुष्य' की एक खूबी' है : वह गिरे तो पशुओं से नीचे गिर सकता है, उठे तो देवताओं से ऊपर उठ सकता है | वह सिर्फ मनुष्य की खूबी है | वह मनुष्य की ही गरिमा है| बात तुम्हारे हाथ है |

मनुष्य एक सीढ़ी है -- जिसका एक छोर पशुओं से नीचे चला गया है और दूसरा छोर बादलों के पार| तुम चाहो तो इसी सीढ़ी पर ऊपर चढ़ो और तुम चाहो तो इसी सीढ़ी पर नीचे उतरो| सीढ़ी एक ही है| कोई पशु मनुष्य से नीचे नहीं गिर सकता| अगर मनुष्य गिरने की तय कर ले तो सभी पशुओं को मात कर देगा| चंगेजखान, तैमूरलंग, नादिरशाह, इनका कौन मुकाबला कर सकेगा, कौन पशु? लाखों लोग काट डाले| खैर यह तो अतीत इतिहास हो गए; अभी-अभी अडोल्फ हिटलर ने, जोसेफ स्टैलिन ने लाखों लोग काट डाले| किस पशु ने इतने लोग काटे?

और एक बड़े मजे की बात है, कोई पशु अपनी जाति के पशुओं को नहीं मारता| कोई सिंह किसी दूसरे सिंह को नहीं मारता| कोई कुत्ता किसी दूसरे कुत्ते को नहीं मारता| सिर्फ आदमी अकेला है, जो आदमियों को मारता है| और अकारण भी मारता है| जैसे मारने की एक धुन सवार है आदमी को'! पशु अगर मारते भी हैं, एक तो अपनी जाति के पशुओं को कभी नहीं मारते, इतनी सज्जनता तो बरतते हैं| इतना तो पहचान उनको है| सिंह दूसरे सिंह पर हमला नहीं करता, कितना ही भूखा हो'| लेकिन दूसरी जाति के पशुओं को भी तभी मारते हैं जब भूखे होते हैं..

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