ओ विप्लव के थके साथियों विजय मिली विश्राम न समझोउदित प्रभात हुआ फिर भी छाई चारों ओर उदासी ऊपर मेघ भरे बैठे हैं किंतु धरा प्यासी की प्यासी जब तक सुख के स्वप्न अधूरे पूरा अपना काम न समझो विजय मिली विश्राम न समझो पद-लोलुपता और त्याग का एकाकार नहीं होने का दो नावों पर पग धरने से सागर पार नहीं होने का युगारंभ के प्रथम चरण की गतिविधि को परिणाम न समझो विजय मिली विश्राम न समझो तुमने वज्र प्रहार किया था पराधीनता की छाती पर देखो आँच न आने पाए जन जन की सौंपी थाती पर समर शेष है सजग देश है सचमुच युद्ध विराम न समझो विजय मिली विश्राम न समझो बलवीर सिंह रंग २१ जनवरी २००८ |
तात्कालिक लेख
Saturday, February 23, 2013
विजय मिली विश्राम न समझो ....
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