गाय की बहु-उपयोगिता-
..."गावः पवित्रं परमं
गावो मांगल्यमुत्तमम् ।
गावः स्वर्गस्य सोपानं
गावो धन्याः सनातनाः।।"
'गायें परम पवित्र, परम मंगलमयी, स्वर्ग
का सोपान, सनातन एवं धन्यस्वरूपा हैं।'
...
'गाय पशु नहीं बल्कि सुंदर अर्थतन्त्र है।'
गाय का देश की अर्थव्यवस्था में
भी काफी महत्त्व है। गाय का दूध, घी,
मक्खन, झरण (गौमूत्र), गोबर
आदि सभी जीवनोपयोगी तथा लाभकारी चीजें
हैं।
इतना ही नहीं, गाय के रोएँ और
निःश्वास भी मानव-जीवन के लिए आवश्यक
हैं। इस बात की पुष्टि वैज्ञानिकों ने
भी अपने प्रयोगों से की है।
गाय के शरीर से निकलने वाली सात्त्विक
तरंगे पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त
करती हैं तथा वातावरण में फैले रोगों के
कीटाणुओं को नष्ट करती हैं।
गाय के शरीर
से गूगल की गंध निकलती है, जो प्रदूषण
को नष्ट करती है।
गाय और उसके बछड़े के रँभाने की आवाज से
मनुष्य की अनेक मानसिक
विकृतियाँ तथा रोग अपने-आप नष्ट
हो जाते हैं।
गाय की पीठ पर रोज सुबह-शाम 15-20
मिनट हाथ फेरने से ब्लडप्रेशर (रक्तचाप)
नियंत्रित (संतुलित) हो जाता है।
गाय अपने निःश्वास में ऑक्सीजन
छोड़ती है। डा. जूलिशस व डॉ. बुक
(कृषि वैज्ञानिक जर्मनी)।
गाय अपने सींग के माध्यम से कॉस्मिक
पावर ग्रहण करती है।
एक थके माँदे व तनावग्रस्त
व्यक्ति को स्वस्थ एवं सीधी गाय के नीचे
लिटाने से उसका तनाव एवं थकावट कुछ
ही मिनटों में दूर हो जाती है
तथा व्यक्ति पहले से ज्यादा ताजा एवं
स्फूर्तियुक्त हो जाता है। (वैज्ञानिक
पावलिटा, चेक यूनिवर्सिटी)।
पृथ्वी पर आने वाले भूकम्पों में से अधिकांश
ई.पी.वेव्स से ही आते हैं, जो प्राणियों के
कत्ल के समय उत्पन्न दारूण वेदना एवं
चीत्कार से निःसृत होती है। - डॉ.
मदनमोहन बजाज व डॉ. विजय राज सिंह
(भौतिकी व खगोल विभाग के रीडर,
दिल्ली वि.वि.)
गाय के ताजे गोबर से टी.बी.
तथा मलेरिया के कीटाणु मर जाते हैं।
गोबर में हैजे के कीटाणुओं को मारने
की अदभुत क्षमता है। डॉ. किंग, मद्रास।
अमेरिका के वैज्ञानिक जेम्स मार्टिन ने
गाय के गोबर, खमीर और समुद्र के
पानी को मिलाकर ऐसा उत्प्रेरक
बनाया है, जिसके प्रयोग से बंजर
भूमि हरी-भरी हो जाती है एवं सूखे तेल के
कुओं में दोबारा तेल आ जाता है।
शहरों में निकलने वाले कचरे पर गोबर
का घोल डालने से दुर्गंध
पैदा नहीं होती एवं कचरा खाद में
परिवर्तित हो जाता है। - डॉ. कांती सेन
सर्राफ, मुम्बई।
♥ गौमांस खाने वाले सावधानः
युनानी चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार
गाय का गोश्त बड़ा कड़ा होता है, यह
जल्दी नहीं पचता। आदमी के पेट के माफिक
नहीं है। इससे खून गाढ़ा होता है और
उन्माद, पीलिया, घाव एवं कोढ़
आदि बीमारियाँ हो जाती हैं।
गाय आय का साधन भी है,
आरोग्यदात्री भी है। अतः गाय मारने
योग्य नहीं है बल्कि हर प्रकार से गोवंश
की रक्षा व उसका संवर्धन अत्यन्त आवश्यक
है।
..."गावः पवित्रं परमं
गावो मांगल्यमुत्तमम् ।
गावः स्वर्गस्य सोपानं
गावो धन्याः सनातनाः।।"
'गायें परम पवित्र, परम मंगलमयी, स्वर्ग
का सोपान, सनातन एवं धन्यस्वरूपा हैं।'
...
'गाय पशु नहीं बल्कि सुंदर अर्थतन्त्र है।'
गाय का देश की अर्थव्यवस्था में
भी काफी महत्त्व है। गाय का दूध, घी,
मक्खन, झरण (गौमूत्र), गोबर
आदि सभी जीवनोपयोगी तथा लाभकारी चीजें
हैं।
इतना ही नहीं, गाय के रोएँ और
निःश्वास भी मानव-जीवन के लिए आवश्यक
हैं। इस बात की पुष्टि वैज्ञानिकों ने
भी अपने प्रयोगों से की है।
गाय के शरीर से निकलने वाली सात्त्विक
तरंगे पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त
करती हैं तथा वातावरण में फैले रोगों के
कीटाणुओं को नष्ट करती हैं।
गाय के शरीर
से गूगल की गंध निकलती है, जो प्रदूषण
को नष्ट करती है।
गाय और उसके बछड़े के रँभाने की आवाज से
मनुष्य की अनेक मानसिक
विकृतियाँ तथा रोग अपने-आप नष्ट
हो जाते हैं।
गाय की पीठ पर रोज सुबह-शाम 15-20
मिनट हाथ फेरने से ब्लडप्रेशर (रक्तचाप)
नियंत्रित (संतुलित) हो जाता है।
गाय अपने निःश्वास में ऑक्सीजन
छोड़ती है। डा. जूलिशस व डॉ. बुक
(कृषि वैज्ञानिक जर्मनी)।
गाय अपने सींग के माध्यम से कॉस्मिक
पावर ग्रहण करती है।
एक थके माँदे व तनावग्रस्त
व्यक्ति को स्वस्थ एवं सीधी गाय के नीचे
लिटाने से उसका तनाव एवं थकावट कुछ
ही मिनटों में दूर हो जाती है
तथा व्यक्ति पहले से ज्यादा ताजा एवं
स्फूर्तियुक्त हो जाता है। (वैज्ञानिक
पावलिटा, चेक यूनिवर्सिटी)।
पृथ्वी पर आने वाले भूकम्पों में से अधिकांश
ई.पी.वेव्स से ही आते हैं, जो प्राणियों के
कत्ल के समय उत्पन्न दारूण वेदना एवं
चीत्कार से निःसृत होती है। - डॉ.
मदनमोहन बजाज व डॉ. विजय राज सिंह
(भौतिकी व खगोल विभाग के रीडर,
दिल्ली वि.वि.)
गाय के ताजे गोबर से टी.बी.
तथा मलेरिया के कीटाणु मर जाते हैं।
गोबर में हैजे के कीटाणुओं को मारने
की अदभुत क्षमता है। डॉ. किंग, मद्रास।
अमेरिका के वैज्ञानिक जेम्स मार्टिन ने
गाय के गोबर, खमीर और समुद्र के
पानी को मिलाकर ऐसा उत्प्रेरक
बनाया है, जिसके प्रयोग से बंजर
भूमि हरी-भरी हो जाती है एवं सूखे तेल के
कुओं में दोबारा तेल आ जाता है।
शहरों में निकलने वाले कचरे पर गोबर
का घोल डालने से दुर्गंध
पैदा नहीं होती एवं कचरा खाद में
परिवर्तित हो जाता है। - डॉ. कांती सेन
सर्राफ, मुम्बई।
♥ गौमांस खाने वाले सावधानः
युनानी चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार
गाय का गोश्त बड़ा कड़ा होता है, यह
जल्दी नहीं पचता। आदमी के पेट के माफिक
नहीं है। इससे खून गाढ़ा होता है और
उन्माद, पीलिया, घाव एवं कोढ़
आदि बीमारियाँ हो जाती हैं।
गाय आय का साधन भी है,
आरोग्यदात्री भी है। अतः गाय मारने
योग्य नहीं है बल्कि हर प्रकार से गोवंश
की रक्षा व उसका संवर्धन अत्यन्त आवश्यक
है।
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