वसंत
पंचमी पर ब्राह्मी सेवन का विशेष महत्व माना गया है। ब्राह्मी एक ऐसी जड़ी
बूटी है जिसे आयुर्वेद में बहुत उपयोगी माना गया है। ब्राह्मी तराई वाले
स्थानों पर उगती है। बुद्धि तथा उम्र को बढ़ाती है। यह रसायन के समान होती
है। ब्राह्मी में एल्केलाइड तथा सेपोनिन नामक दो मुख्य: जैव सक्रिय
पदार्थ पाए जाते हैं। इसमें पाए जाने वाले दो मुख्य एल्केलाइड हैं
ब्राह्मीन तथा हरपेस्टिन जबकि बेकोसाइड ए तथा बी मुख्य सेपोनिन हैं।
गुणों की दृष्टि से - ब्राह्मी में पाए जाने वाले एल्केलाइड स्ट्रिकनीन के समान हैं परन्तु यह उसकी तरह विषाक्त नहीं होती। ब्राह्मी में बोटूलिक अम्ल, स्टिग्मा स्टेनॉल, बीटा-साइटोस्टीरॉल तथा टेनिन आदि भी पाए जाते हैं। हरे पत्तों में प्राय: एल्केलाइड तथा उड़नशील तेल पाए जाते हैं जबकि सूखे पौधों में सेण्टोइक एसिड तथा सेण्टेलिंक एसिड भी पाए जाते हैं। बुखार को खत्म करती है। याददाश्त को बढ़ाती है।
इन बड़ी बीमारियों में फायदेमंद˜-
सफेद दाग, पीलिया, प्रमेह और खून की खराबी को दूर करती है। खांसी, पित्त और सूजन को रोकती है। बैठे हुए गले को साफ करती है। ब्राह्मी का उपयोग दिल के लिए लाभदायक होता है। यह मानसिक पागलपन को दूर करता है। सही मात्रा के अनुसार इसका सेवन करने से निर्बुद्ध, त्रिकालदर्शी यानी भूत, भविष्य और वर्तमान सब दिखाई देने लगते हैं। ब्राह्मी घृत, ब्राही रसायन, ब्राही पाक, ब्राह्मी तेल, सारस्वतारिष्ट, सारस्वत चूर्ण आदि के रूप में प्रयोग किया जाता हैं।
हिस्टीरिया जैसे रोगों में यह तुरन्त प्रभावी होती है जिससे सभी लक्षण तुरन्त नष्ट हो जाते हैं। चिन्ता तथा तनाव में ठंडाई के रूप में भी इसका प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त किसी बीमार या अन्य बीमारी के कारण आई निर्बलता के निवारण के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। कुष्ठ और चर्म रोगों में भी यह उपयोगी है। खांसी तथा गला बैठने पर इसके रस का सेवन काली मिर्च तथा शहद के साथ करना चाहिए।
दिल का दोस्त
ब्राह्मी बुद्धि और उम्र को बढ़ाती है। यह रसायन के समान होती है। यह बुखार को खत्म करती है, याददाश्त को बढ़ाती है। सफेद दाग, पीलिया, खून की खराबी को दूर करती है। खांसी, पित्त और सूजन को रोकती है। यह मानसिक रोगों में भी लाभकारी है और दिल के लिए भी फायदेमंद। ब्राह्मी को यह नाम उसके बुद्धिवर्धक होने के गुण के कारण दिया गया है। इसे जलनिम्ब भी कहते हैं, क्योंकि यह प्रधानत: जलासन्न भूमि में पाई जाती है।
कब्ज और गठिया में फायदेमंद
यह कई तरह के रोगों में फायदेमंद साबित होती है। यह कब्ज को दूर करती है। इसके पत्ते के रस को पेट्रोल के साथ मिलाकर लगाने से गठिया दूर होती है। ब्राह्मी में रक्तशोधक गुण भी पाये जाते हैं। यह हृदय के लिए भी पौष्टिक होती है।
कार्यक्षमता बढ़ाए
ब्राह्मी के पौधे के सभी भाग उपयोगी होते हैं। जहां तक हो सके ब्राह्मी को ताजा ही प्रयोग करना चाहिए। ब्राह्मी का प्रभाव मुख्यत: मस्तिष्क पर पड़ता है। यह मस्तिष्क के लिए टॉनिक है ही, उसे शान्ति भी देती है। लगातार मानसिक कार्य करने से थकान हो जाने पर जब व्यक्ति की कार्यक्षमता घट जाती है तो ब्राह्मी के उपयोग से आश्चर्यजनक लाभ होता है।
स्मृति बढ़ाए
मिर्गी के दौरों तथा उन्माद में भी ब्राह्मी बहुत लाभकारी होती है।
सही मात्रा में इसका सेवन करने से याददाश्त दुरुस्त होती है। अल्पमंदता में ब्राह्मी का रस या चूर्ण पानी या मिसरी के साथ रोगी को दिया जाना चाहिए।
ब्राह्मी के तेल की मालिश से मस्तिष्क की दुर्बलता तथा खुश्की दूर होती है तथा बुद्धि बढ़ती है।बच्चों को खांसी या छोटी उम्र में क्षयरोग होने पर छाती पर इसका गर्म लेप करना चाहिए, लाभ होता है।
गुणों की दृष्टि से - ब्राह्मी में पाए जाने वाले एल्केलाइड स्ट्रिकनीन के समान हैं परन्तु यह उसकी तरह विषाक्त नहीं होती। ब्राह्मी में बोटूलिक अम्ल, स्टिग्मा स्टेनॉल, बीटा-साइटोस्टीरॉल तथा टेनिन आदि भी पाए जाते हैं। हरे पत्तों में प्राय: एल्केलाइड तथा उड़नशील तेल पाए जाते हैं जबकि सूखे पौधों में सेण्टोइक एसिड तथा सेण्टेलिंक एसिड भी पाए जाते हैं। बुखार को खत्म करती है। याददाश्त को बढ़ाती है।
इन बड़ी बीमारियों में फायदेमंद˜-
सफेद दाग, पीलिया, प्रमेह और खून की खराबी को दूर करती है। खांसी, पित्त और सूजन को रोकती है। बैठे हुए गले को साफ करती है। ब्राह्मी का उपयोग दिल के लिए लाभदायक होता है। यह मानसिक पागलपन को दूर करता है। सही मात्रा के अनुसार इसका सेवन करने से निर्बुद्ध, त्रिकालदर्शी यानी भूत, भविष्य और वर्तमान सब दिखाई देने लगते हैं। ब्राह्मी घृत, ब्राही रसायन, ब्राही पाक, ब्राह्मी तेल, सारस्वतारिष्ट, सारस्वत चूर्ण आदि के रूप में प्रयोग किया जाता हैं।
हिस्टीरिया जैसे रोगों में यह तुरन्त प्रभावी होती है जिससे सभी लक्षण तुरन्त नष्ट हो जाते हैं। चिन्ता तथा तनाव में ठंडाई के रूप में भी इसका प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त किसी बीमार या अन्य बीमारी के कारण आई निर्बलता के निवारण के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। कुष्ठ और चर्म रोगों में भी यह उपयोगी है। खांसी तथा गला बैठने पर इसके रस का सेवन काली मिर्च तथा शहद के साथ करना चाहिए।
दिल का दोस्त
ब्राह्मी बुद्धि और उम्र को बढ़ाती है। यह रसायन के समान होती है। यह बुखार को खत्म करती है, याददाश्त को बढ़ाती है। सफेद दाग, पीलिया, खून की खराबी को दूर करती है। खांसी, पित्त और सूजन को रोकती है। यह मानसिक रोगों में भी लाभकारी है और दिल के लिए भी फायदेमंद। ब्राह्मी को यह नाम उसके बुद्धिवर्धक होने के गुण के कारण दिया गया है। इसे जलनिम्ब भी कहते हैं, क्योंकि यह प्रधानत: जलासन्न भूमि में पाई जाती है।
कब्ज और गठिया में फायदेमंद
यह कई तरह के रोगों में फायदेमंद साबित होती है। यह कब्ज को दूर करती है। इसके पत्ते के रस को पेट्रोल के साथ मिलाकर लगाने से गठिया दूर होती है। ब्राह्मी में रक्तशोधक गुण भी पाये जाते हैं। यह हृदय के लिए भी पौष्टिक होती है।
कार्यक्षमता बढ़ाए
ब्राह्मी के पौधे के सभी भाग उपयोगी होते हैं। जहां तक हो सके ब्राह्मी को ताजा ही प्रयोग करना चाहिए। ब्राह्मी का प्रभाव मुख्यत: मस्तिष्क पर पड़ता है। यह मस्तिष्क के लिए टॉनिक है ही, उसे शान्ति भी देती है। लगातार मानसिक कार्य करने से थकान हो जाने पर जब व्यक्ति की कार्यक्षमता घट जाती है तो ब्राह्मी के उपयोग से आश्चर्यजनक लाभ होता है।
स्मृति बढ़ाए
मिर्गी के दौरों तथा उन्माद में भी ब्राह्मी बहुत लाभकारी होती है।
सही मात्रा में इसका सेवन करने से याददाश्त दुरुस्त होती है। अल्पमंदता में ब्राह्मी का रस या चूर्ण पानी या मिसरी के साथ रोगी को दिया जाना चाहिए।
ब्राह्मी के तेल की मालिश से मस्तिष्क की दुर्बलता तथा खुश्की दूर होती है तथा बुद्धि बढ़ती है।बच्चों को खांसी या छोटी उम्र में क्षयरोग होने पर छाती पर इसका गर्म लेप करना चाहिए, लाभ होता है।
No comments:
Post a Comment