महिलाओं के संदर्भ में मीडिया की भूमिका की बात करें तो यह कभी संतोषजनक नहीं रही है, मीडिया ने भी पुरूषवादी सोच को आत्मसात करते हुए सदा ही उसकी उपेक्षा की है। इस उपेक्षा के साथ वो इसका इस्ते माल अपने प्रोडेक्ट के प्रचार व अपने विज्ञाप्ति उद्योगपतियों द्वारा निर्मित वस्तुओं के ग्राहक बनाने में करने लगा है। ताकि बाजार में वस्तुओं का उपभोग अधिक हो सके और इस उपभोग से मिलने वाले लाभ का कुछ अंश इन उद्योगपतियों द्वारा चढ़ौत्री के रूप में चैनल को मिले जिससे चैनल अपना गुजारा कर सकें, नहीं तो किसी सरकारी नेता से खबर के बदले में नोट को गिना सके। जैसा कि आज हो रहा है। चाहे वो खबर किसी नेता से संबंधित हो या किसी बाहुबली से, यदि जरा भी गलती नजर आती है तो पहुंच जाते है चंदा मांगने, और यह लोग भी अपने कारनामों को उजागर न करने की हड्डी डाल ही देते हैं। जिस हड्डी को चूस-चूस कर मीडिया दिनों दिन मोटा होता जा रहा है नेताओं की तरह। क्यों कि नेता जनता का खून चूसते हैं और यह बची हुई हड्डिया। बीच में फंस जाती हैं महिलाएं, जो सदा पिसने के लिए ही बनी है। क्योंकि सवर्ण समाज ने उसे कभी पनपने नहीं दिया, हमेशा उसका ति्रस्कार किया है, कभी मनु ने तो कभी सूरदास ने तो कभी भगवान राम ने। उन्हीं के पद चिहनों पर चलने वाली आज की जनता जिसने स्त्रियों को बिस्तर पर या पैरों में पसंद किया है। परंतु वो यह भूल जाते हैं कि उसको जीवन देने वाली भी एक स्त्री ही है। जिसके प्यार की छांव में वो पला बढ़ा। और यह भूल गया कि स्त्री का सम्मा न भी करना चाहिए।
इसमें गलती किसकी है इस पर विचार करना चाहिए कि जो पुरूष मां के आंचल में पला बढ़ा, पिता के संरक्षण व बहनों का प्या र मिला तथा गुरूजनों के ज्ञान से बुद्धिमान बना, वह पुरूष महिलाओं के प्रति इतना हैवान कैसे बन जाता है। क्याक मां के पालन-पोषण, पिता के संरक्षण व बहन के प्यारर तथा गुरूजनों द्वारा दिए गए ज्ञान में कहीं कोई चूक तो नहीं रह जाती, जिस कारण पुरूष में कभी-कभी हैवानियत का जानवर भाव उत्पन्न होने लगता है और यह भाव पुरूष में अच्छे और बुरे दोनों में फर्क करना तक भूला देता है। और वह महिलाओं को अपनी हवस का शिकार बनाने लगता है। कभी पैदा होते ही, कभी दहेज से, कभी खरीद-फरोख्त करके, कभी घर में ही हिंसा करके तो कभी बलात्कार करके, चारों तरफ महिलाओं पर अत्या्चारों की झड़ी लगी हुई है। जो पुलिस और कानून व्यवस्था के बावजूद थमने का नाम नहीं ले रही है, यह तो किसी जिंद की भांति दिन-प्रतिदिन लगातर बढ़ती ही जा रही है। चाहे नाबालिग हो, किशोरी हो या फिर वृद्धा हो कोई इस अत्याचार से अछूता नहीं है। हो भी कैसे सकता है जब लोकतंत्र के चारों स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका तथा प्रचार-प्रसार के माध्यम यानि मीडिया में पुरूषवादी सोच विराजमान हो। और यह सोच महिलाओं को हमेशा से दोयाम दर्जे पर लाकर खड़ा कर देता है, ताकि यह पुरूषों के समकक्ष कंधे-से-कंधा मिलाकर आगे न बढ़ सकें।
हालांकि इन सब अत्याचारों के बावजूद महिलाओं ने पुरूषों को कहीं पीछे छोड़ दिया है। पर सवाल अब भी वही रह जाता है कि हम पर अत्याचार कब तक। कब तक हमें असुरक्षा का भाव और शोषण को बर्दास्त करना पड़ेगा। क्या कोई रहनुमा इस कलयुग में राक्षसों से हम सब को मुक्ति दिलाएंगा या हमें इन बहसी पुरूषों के हाथों अकाल मौत का ग्रास हमेशा बनना पड़ेगा। क्योंकि जिस-जिस से हमने उम्मीद की वो ही हमारी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा। तभी तो तीनों स्तंभों की भांति चौथा स्तंभ भी महिलाओं के पक्ष में बहुत कम खड़ा नजर आता है। वो तो एक तरफ महिलाओं को वस्तु बनाकर बाजार के समक्ष परोसने का काम करता है तो दूसरी तरफ खबर के दृष्टिकोण से, हां सनसनी खबर के दृष्टिकोण से हमेशा परोसता रहता है। वह महिलाओं की छवि को अश्लील बनाकर इस तरह परोसता है कि पुरूषवादी मस्तिष्क प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। इस अश्लीलता की बमबारी से पुरूष हैवान बनने लगता है। क्योंकि कहीं-न-कहीं यह कामुक अश्लीलता उसके दिलों-दिमाग में इस कदर घर जाती है कि वो महिलाओं को अकेली पाने की फिराक में लगा रहता है ताकि अपनी हवस मिटा सके।
इस आलोच्य में कहें तो अश्लीलता का सम्राज्य आज इस कदर बढ़ता जा रहा है जिससे नाबालिग बच्चों के दिमाग भी अछूते नहीं रहे हैं वह भी आधुनिक मीडिया यानि न्यू मीडिया द्वारा अश्लील तस्वीरों व फिल्मों को लगातार देख रहें हैं और उसी तरह के कृत्यों को करने की दिन-रात फिराक में बने रहते हैं। यह आधुनिक मीडिया द्वारा उपजी एक फसल है जिसको आज की युवा पीढ़ी काट रही है जिसका खामयाजा महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है। यह खामयाजा वो कब तक भुगतती रहेगी, क्या कभी वो इस स्वतंत्र समाज की खुली हवा में सांस ले सकेगी। यही प्रश्न वो लगातार मीडिया से कर रही है कि कब तक वो इनकी छवि को वस्तु बनाकर अपना उल्लू सीधा करता रहेगा और समाज के दरिंदों द्वारा उनका शोषण करवाता रहेगा। क्योंकि महिलाओं के साथ हो रहे शोषण में तीनों स्तंभों के साथ-साथ यह चौथा स्तंभ भी बराबर का जिम्मेवार है। अगर मीडिया को अपने ऊपर उठ रहे तमाम प्रश्नवाचक चिह्नों से मुक्ति चाहिए तो उसे अश्लीलता का सहारा छोड़कर महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई में सहयोग देना होगा तभी पुरूष समाज द्वारा महिलाओं पर किए जा रहे अत्याचारों से महिलाओं को मुक्ति मिल सकेगी और वो खुली हवा में आजाद पंक्षी की भांति उड़ सकेगी।
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