राम के चरणों कि स्तुति गाने वाली ….कृष्ण की
लीलाओ का रसास्वादन करने वाली….शिव कि महिमाओ का वर्णन करके खुद को परम
धन्य समझने वाली परम सोभाग्यशाली हिन्दुओ ने किस आधार पर …साई के नाम का
घंटा बजाना चालू कर दिया …जवाब हो तो जरूर दीजिएगा………….किस धर्मग्रंथ मे
साई का नाम लिखा है ???????? अगर तुम लोगो को संतो को पूजना ही आधुनिक फैशन
लग रहा है अथवा साई को पूजने के लिए ये
तर्क है तो … ऋषियों को पूजो न …..वशिष्ठ को पूजो न …. अत्री मुनि को पूजो न
….संदीपनी को पूजो न …….दधीचि को पूजो न ……..वाल्मीकि को पूजो न …..साई
बाबा न इनसे बड़ा संत था न इनसे बड़ा सिध्ध…… अगर ये पुराने लगते है तो
तुलसी दास को पूजो न ………. उन्होने रामायण लिख दी…… उन्हे मंदिरो में
स्थापित नहीं किया हा चार चमत्कार दिखाकर…. एक दो उपदेश देकर….सबका मालिक
एक का नारा देने वाले साई महाशय को किस आधार पर भगवान बनाकर मंदिरो में
स्थापित करने का फतवा जारी कर दिया कुछ साई अंधभक्तो ने ….. अथवा साई
अजेंटों ने अथवा साई दलालो ने अथवा साई के नाम पर धंधा करने वालो ने ….
भारत एक भक्ति प्रधान देश है यहा कि अंधी जनता को हर दस वर्ष में एक नया भगवान चाहिए। अरे मूढ़ो क्या तेतीस करोड़ देवता तुम्हारे लिए कम पड गए है… या शिव जी ,श्री हरि ,श्री कृष्ण ,श्री राम ,माँ भवानी सब से मन ऊब गया है तुम्हारा… या बस चार चमत्कार देख लिए या किसी के मुह से सुन भी लिए तो बस वही हो गया तुम्हारा मुक्ति दाता। अक्ल पर पत्थर पड गए है या पापो ने बुद्धि को इतना कुंठित कर दिया है कि इतना नहीं सोच पा रहे कि साई महाराज को किस आधार पर भगवान घोसीत कर दिया….बिना सिर पैर के तर्को के आधार पर ही तुम किसी को भगवान मान लोगे? संत पुजयनीय होते है उनके लिए मन में श्रीद्धा होनी चाहिए पर ये जो तुम कर रहे हो वोह तो आँख वाला होकर भी कुए में गिर पड़ने कि तरह है। मेरी श्रद्धा सभी संतो पर है, पर संतो को ही एक मात्र परमबरमहा मानकर सर्वव्यापक परमेश्वर कि अवमानना नहीं कि जा सकती॥ और अवतार अकारण नहीं होता स्वयं भगवान कहते है कि किसी उद्देश्य से होता है और साई महाराज का क्या उद्देश्य था सिर्फ ज्ञान देना…..एकता का संदेश देना …बस….या फिर साई महाराज के ‘लेटैस्ट वर्जन ‘ सत्य साई के अवतार लेने का उद्देश्य क्या था मुह से बॉल निकालकर दिखाना , उँगलियो से राख़ निकालकर दिखाना , जादू से हाथ से जंजीर पैदा कर देना …..ऐसी चीजे सड्को पर एक एक दो दो रुपया मांगते जादूगर दिखाया करते थे……. कड़वा लगे पर सच यही है ….. कि भ्रांतियुक्त बुद्धि से , सिर्फ सुनकर और सिर्फ सुनकर ही सबका मालिक एक चिल्लाते हुये शिरडी वाले साई बाबा आए है तेरे दर पे — गाते हुये शिर्डी कि परिक्रमा लगाकर खुद को भगवान का परम उपासक समझने वाले सिर्फ मूर्ख है सिर्फ मूर्ख है सिर्फ मूर्ख है …… इतना बहुत है …….जिस साई के उपासक के पास इन सब बातो का पूर्णतः ठोस जवाब हो तो ही बात करे … वरना इतने पर भी इन बातो को दरकिनार कर अब भी पूजा कि अलमारी मे भगवान के बीच में रखे साई बाबा के सामने बैठकर … साई राम साई राम चिल्लाना इससे बड़ा मूर्खता का उदाहरण मुझे तो ढूँढे नहीं मिलेगा…….. ……… सोचिए……… और निस्कर्ष निकालिए ….. सच क्या है ….और इतने पर भी जो हिन्दू साई का लॉकेट अपने गले से न निकाले तो उसे खुद को हिन्दू कहने का हक तो है पर वो सनातन धर्मी कतई नहीं है ….क्यो कि सनातन धर्म मे साई था ही नहीं …….न है .
अक्सर इन बातो को सुनकर भी कुछ धर्मप्रिय हिंदुत्ववादी हिन्दू साई का मोह नहीं छोड़ पाते इसलिए वो अंत मे एक तर्क देते है कि हे हे हे अजी हम तो साई को संत मानते है इसलिए मंदिरो में स्थापित करके उनकी पूजा करते है तो क्या साई महाराज से पहले कोई ज्ञानी संत नहीं हुये थे …महर्षि वाल्मीकि जिनहोने कि अपनी त्रिकालदर्शिता से राम की लीलाओ के अंत से पहले ही रामायण कि रचना पूर्ण कर दी थी क्या साई महाराजजी उनसे ज्यादा त्रिकालदर्शी थे। या ब्रम्हाऋषि वसिष्ठ से भी ज्यादा श्रेस्ठ थे जो कि स्वयं श्री राम के कुलगुरु थे …. या विश्वामित्र से ज्यादा बड़े तपस्वी थे…. या वेदब्यास जी जिनके द्वारा अठारह पुराण,चारो वेद,महाभारत,श्रीमदभगवतगीता सहित अनेकों धर्मग्रंथो कि रचना कि थी उनसे बड़े ज्ञानी … या महर्षि दधीचि से ज्यादा बड़े त्यागी थे….चमत्कारो कि कहो तो साई महाराज से बड़े बड़े चमत्कार पहले भी ऋषि मुनियो ने प्रकट किए है तुलसी दास जी ने भी किए थे सूरदास जी ने भी…..तो ये बस ईश्वर भक्त थे भगवान नहीं तो साई महाराज भगवान कैसे हो गए?…… या बस कोई साधारण मनुष्य साईचारित नाम से कोई पुस्तक लिख थे उसी के आधार पर उन्हे भगवान मान लिया?
अरे मुर्खाधिराजों (सच है कृपया मुंह कड़वा मत होने देना) …इन धर्मग्रंथो कि रचना क्यो कि गयी …. इसीलिए ताकि जब मनुष्य भटके तो इनसे धर्म की प्रेरणा ले सके …किस धर्मग्रंथ में लिखा है कि साई महाराज नाम के कोई अवतार होंगे?…..लिखा हुआ तो बहुत दूर रामायण ,महाभारत ,श्रीमद्भगवत गीता ,वेद,उपनिषद श्रुतिया पुराण इनमे साई महाराज का नाम तक नहीं है….तो हिन्दू हो तो क्या धर्मग्रंथो को भी झूठा साबित करोगे।इनमे कलयुग में सिर्फ दो अवतार लिखे गए है एक हो चुका और दूसरा कलयुग के अंतिम चरण में होगा कल्कि अवतार….. तो क्या वेदब्यास जी साई महाराज का जिक्र करना भूल गए होंगे?…..वेदब्यास जी ने ग्रंथो में और तुलसी दास जी ने रामायण में बहुत पहले ही कलयुग का चित्रण किया है जो कि बिलकुल सही है तो क्या उन्होने जानबूझकर साई महाराज के बारे में नहीं लिखा कि साई महाराज नाम के कोई अवतार होंगे?…… नहीं
जिसको भी भक्ति का क्षय और अपना धर्म भ्रष्ट करना हो …..वही साई साई करे …..जो हिन्दू है ….. और भगवान को प्यार करता है ……साई बाबा के चक्कर में न पड़े……. भगवान को छोडकर …… किसी और को भगवान के स्थान पर पूजना …..भगवान के साथ साथ भक्ति और धर्म का भी अपमान है …… जय श्री राम
अपने परमसमर्थ , परम कृपालु , परमभक्तवत्सल…… परम दयालु श्री भगवान को छोडकर ……साई के दर पर जाकर दौलत की भीख मांगने वालो,साई से अपनी इक्षाओ की पूर्ति की आशा रखने वालो को .तुमसे बड़ा मूर्खता का उदाहरण कलयुग में और क्या होगा ?
भारत एक भक्ति प्रधान देश है यहा कि अंधी जनता को हर दस वर्ष में एक नया भगवान चाहिए। अरे मूढ़ो क्या तेतीस करोड़ देवता तुम्हारे लिए कम पड गए है… या शिव जी ,श्री हरि ,श्री कृष्ण ,श्री राम ,माँ भवानी सब से मन ऊब गया है तुम्हारा… या बस चार चमत्कार देख लिए या किसी के मुह से सुन भी लिए तो बस वही हो गया तुम्हारा मुक्ति दाता। अक्ल पर पत्थर पड गए है या पापो ने बुद्धि को इतना कुंठित कर दिया है कि इतना नहीं सोच पा रहे कि साई महाराज को किस आधार पर भगवान घोसीत कर दिया….बिना सिर पैर के तर्को के आधार पर ही तुम किसी को भगवान मान लोगे? संत पुजयनीय होते है उनके लिए मन में श्रीद्धा होनी चाहिए पर ये जो तुम कर रहे हो वोह तो आँख वाला होकर भी कुए में गिर पड़ने कि तरह है। मेरी श्रद्धा सभी संतो पर है, पर संतो को ही एक मात्र परमबरमहा मानकर सर्वव्यापक परमेश्वर कि अवमानना नहीं कि जा सकती॥ और अवतार अकारण नहीं होता स्वयं भगवान कहते है कि किसी उद्देश्य से होता है और साई महाराज का क्या उद्देश्य था सिर्फ ज्ञान देना…..एकता का संदेश देना …बस….या फिर साई महाराज के ‘लेटैस्ट वर्जन ‘ सत्य साई के अवतार लेने का उद्देश्य क्या था मुह से बॉल निकालकर दिखाना , उँगलियो से राख़ निकालकर दिखाना , जादू से हाथ से जंजीर पैदा कर देना …..ऐसी चीजे सड्को पर एक एक दो दो रुपया मांगते जादूगर दिखाया करते थे……. कड़वा लगे पर सच यही है ….. कि भ्रांतियुक्त बुद्धि से , सिर्फ सुनकर और सिर्फ सुनकर ही सबका मालिक एक चिल्लाते हुये शिरडी वाले साई बाबा आए है तेरे दर पे — गाते हुये शिर्डी कि परिक्रमा लगाकर खुद को भगवान का परम उपासक समझने वाले सिर्फ मूर्ख है सिर्फ मूर्ख है सिर्फ मूर्ख है …… इतना बहुत है …….जिस साई के उपासक के पास इन सब बातो का पूर्णतः ठोस जवाब हो तो ही बात करे … वरना इतने पर भी इन बातो को दरकिनार कर अब भी पूजा कि अलमारी मे भगवान के बीच में रखे साई बाबा के सामने बैठकर … साई राम साई राम चिल्लाना इससे बड़ा मूर्खता का उदाहरण मुझे तो ढूँढे नहीं मिलेगा…….. ……… सोचिए……… और निस्कर्ष निकालिए ….. सच क्या है ….और इतने पर भी जो हिन्दू साई का लॉकेट अपने गले से न निकाले तो उसे खुद को हिन्दू कहने का हक तो है पर वो सनातन धर्मी कतई नहीं है ….क्यो कि सनातन धर्म मे साई था ही नहीं …….न है .
अक्सर इन बातो को सुनकर भी कुछ धर्मप्रिय हिंदुत्ववादी हिन्दू साई का मोह नहीं छोड़ पाते इसलिए वो अंत मे एक तर्क देते है कि हे हे हे अजी हम तो साई को संत मानते है इसलिए मंदिरो में स्थापित करके उनकी पूजा करते है तो क्या साई महाराज से पहले कोई ज्ञानी संत नहीं हुये थे …महर्षि वाल्मीकि जिनहोने कि अपनी त्रिकालदर्शिता से राम की लीलाओ के अंत से पहले ही रामायण कि रचना पूर्ण कर दी थी क्या साई महाराजजी उनसे ज्यादा त्रिकालदर्शी थे। या ब्रम्हाऋषि वसिष्ठ से भी ज्यादा श्रेस्ठ थे जो कि स्वयं श्री राम के कुलगुरु थे …. या विश्वामित्र से ज्यादा बड़े तपस्वी थे…. या वेदब्यास जी जिनके द्वारा अठारह पुराण,चारो वेद,महाभारत,श्रीमदभगवतगीता सहित अनेकों धर्मग्रंथो कि रचना कि थी उनसे बड़े ज्ञानी … या महर्षि दधीचि से ज्यादा बड़े त्यागी थे….चमत्कारो कि कहो तो साई महाराज से बड़े बड़े चमत्कार पहले भी ऋषि मुनियो ने प्रकट किए है तुलसी दास जी ने भी किए थे सूरदास जी ने भी…..तो ये बस ईश्वर भक्त थे भगवान नहीं तो साई महाराज भगवान कैसे हो गए?…… या बस कोई साधारण मनुष्य साईचारित नाम से कोई पुस्तक लिख थे उसी के आधार पर उन्हे भगवान मान लिया?
अरे मुर्खाधिराजों (सच है कृपया मुंह कड़वा मत होने देना) …इन धर्मग्रंथो कि रचना क्यो कि गयी …. इसीलिए ताकि जब मनुष्य भटके तो इनसे धर्म की प्रेरणा ले सके …किस धर्मग्रंथ में लिखा है कि साई महाराज नाम के कोई अवतार होंगे?…..लिखा हुआ तो बहुत दूर रामायण ,महाभारत ,श्रीमद्भगवत गीता ,वेद,उपनिषद श्रुतिया पुराण इनमे साई महाराज का नाम तक नहीं है….तो हिन्दू हो तो क्या धर्मग्रंथो को भी झूठा साबित करोगे।इनमे कलयुग में सिर्फ दो अवतार लिखे गए है एक हो चुका और दूसरा कलयुग के अंतिम चरण में होगा कल्कि अवतार….. तो क्या वेदब्यास जी साई महाराज का जिक्र करना भूल गए होंगे?…..वेदब्यास जी ने ग्रंथो में और तुलसी दास जी ने रामायण में बहुत पहले ही कलयुग का चित्रण किया है जो कि बिलकुल सही है तो क्या उन्होने जानबूझकर साई महाराज के बारे में नहीं लिखा कि साई महाराज नाम के कोई अवतार होंगे?…… नहीं
जिसको भी भक्ति का क्षय और अपना धर्म भ्रष्ट करना हो …..वही साई साई करे …..जो हिन्दू है ….. और भगवान को प्यार करता है ……साई बाबा के चक्कर में न पड़े……. भगवान को छोडकर …… किसी और को भगवान के स्थान पर पूजना …..भगवान के साथ साथ भक्ति और धर्म का भी अपमान है …… जय श्री राम
अपने परमसमर्थ , परम कृपालु , परमभक्तवत्सल…… परम दयालु श्री भगवान को छोडकर ……साई के दर पर जाकर दौलत की भीख मांगने वालो,साई से अपनी इक्षाओ की पूर्ति की आशा रखने वालो को .तुमसे बड़ा मूर्खता का उदाहरण कलयुग में और क्या होगा ?
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