हमारे देश में महर्षि वाल्मीकि ने सर्वप्रथम श्रीराम की कथा का रामायण के
रूप में सृजन किया था। श्री रामदरबार में लव-कुश के गायन द्वारा जनसाधारण
तक उसे पहुँचाने की परम्परा की भी स्थापना की। उन्होंने रामकथा को
राजदरबार तथा जन-जन में समान रूप से प्रचार का माध्यम बनाया जिससे उसकी
लोकप्रियता महर्षि के जीवन-काल में ही शिखर पर पहुँच गई। महर्षि के
पश्चात् रामकथा की लोकप्रियता इतनी अधिक बढ़ी कि अनेकानेक अन्य संस्कृत
ग्रन्थों नाटकों, काव्यों, पुराणों एवं महाभारत में भी राम कथा ने प्रवेश
कर लिया। मध्ययुग तक पहुँचते-पहुँचते, यही राम कथा प्रादेशिक तथा विदेशी
भाषाओं में भी प्रस्तुत की जाने लगी। इतना ही नहीं, बौद्ध तथा जैन
धर्मावलम्बियों ने भी राम कथा को अपने रूप में अपनाया। अनेक लेखकों द्वारा
लिखी जाने के कारण ही मुख्यतः मूल कथा में परिवर्तन तथा परिवर्धन होता
रहा, जिससे कथानक का स्वरूप कुछ-कुछ बदलता भी रहा। इसके अतिरिक्त कुछ
स्थानीय भावनाएँ एवं प्रथाएँ भी इन काव्यों में जुड़ती गईं। जिसके कारण
मूल-मूल कथा में परिवर्तन होते गए। प्रस्तुत कृति में वाल्मीकि रामायण की
कुछ विशिष्ट घटनाओं को लेकर उन पर विभिन्न कवियों की कल्पना प्रस्तुत की
गई है तथा कुछ अन्य ऐसी रोचक घटनाएँ जैसे रावण द्वारा विवाह से पूर्व
कौशल्या का हरण आदि जो अन्य ग्रन्थों में उपलब्ध नहीं है, प्रस्तुत की गई
हैं ! आशा है कि यह प्रस्तुति पाठकों को रुचिकर लगेगी।
वाल्मीकि रामायण में भगवान राम को विष्णु का अवतार माना गया है। इस मान्यता को लेकर प्रश्न उठता है कि इस अवतार की आवश्यकता क्या थी ? इस विषय में नीचे दिये गये तथ्यों को ध्यान में रखना होगा-
(क) वाल्मीकि रामायण, बाल-काण्ड सर्ग-5 में आता है कि देवता रावण से आतंकित होकर भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं और उनसे उद्धार की प्रार्थना करते हैं। हरिवंश पुराण (अ. 3-67/69) तथा मत्स्य पुराण (अ. 243/9) में भी सभी देवता मिलकर भगवान विष्णु की तपस्या करते हैं तथा बलि को परास्त करने का वरदान प्राप्त करते हैं। वाल्मीकि रामायण के दाक्षिणात्य पाठ (1.29.10.17) में तथा वामनपुराण (24-28) में कश्यप तथा अदिति के विष्णु से वर--प्राप्ति का उल्लेख है।
(ख) अध्यात्म रामायण (बाल काण्ड, सर्ग-2) में कहा गया है कि एक बार धरती रावण के अत्याचारों से त्रस्त होकर सभी देवताओं सहित गौ का रूप धारण कर ब्रह्मा- विष्णु के पास रक्षार्थ गयी, तब ब्रह्मा आदि सभी देवताओं तथा पृथ्वी को लेकर भगवान विष्णु के पास क्षीरसागर में पहुँचे थे और उन्होंने भगवान विष्णु से धरती की करुणा भरी गाथा का निवेदन किया था। भगवान विष्णु ने उनकी प्रार्थना स्वीकार करते हुए कहा था कि मैं अपने चार अंशों से कौशल्या तथा अन्य माताओं से जन्म लेकर रावण का संहार करूँगा तथा उसी समय मेरी योगमाया भी जनक के घर में सीता के रूप में अवतरित होगी। उसको साथ लेकर मैं आपका कार्य सिद्ध करूँगा।
भूमिका
रामायण की रचना आदिकवि वाल्मीकि ने सर्वप्रथम नारद तथा ब्रह्मा के परामर्श
के अनुसार की थी। रामायण को देश का आदिकाव्य माना जाता है तथा वाल्मीकि को
आदिकवि। रामायण का सम्पूर्ण ताना-बाना दशरथ-पुत्र राम को नायक मानकर बुना
गया है जो एक महाकाव्य के रूप में है। वास्तव में महर्षि वाल्मीकि कृत
रामायण राष्ट्र को सबसे बड़ी देन हैं। ऐसा नहीं है कि महर्षि वाल्मीकि से
पूर्व रामकथा नहीं थी, हालाँकि नारद जी ने तो वाल्मीकि को श्रीराम के
चरित्र का मात्र संक्षिप्त परिचय दिया था, शेष कथा तो महर्षि को स्वयं ही
विकसित करनी थी जो उन्होंने अत्यन्त सफलतापूर्वक की भी। हो सकता है कि इस
कार्य के लिए उन्हें अनेक स्थानों की यात्रा भी करनी पड़ी हो तथा रामकथा
से सम्बन्धित अन्य तथ्य भी एकत्र करने पड़ी हों। कुछ भी हो, महर्षि
वाल्मीकि ने अत्यन्त कठिन परिश्रम से इस महान एवं अपूर्व ग्रन्थ की रचना
की, जो कालान्तर में संसार में अत्यन्त लोकप्रिय हुआ।
चूँकि वाल्मीकि रामायण संस्कृत में है तथा उस काल में संस्कृत जानने वाले लोगों की संख्या अधिक नहीं थी, अतः एक ही विद्वान कथा कहता था तथा अन्य जन उसे भक्ति भाव से आनन्दपूर्वक क्षवण करते थे। इसके फलस्वरूप रामकथा का प्रचार दिन प्रतिदिन बढ़ता ही गया। महर्षि के बाद के अन्य अनेक कवियों ने भी उसी पर आधारित अनेक रचनाएँ की। इसके अतिरिक्त अनेक पुराणों तथा महाभारत आदि अन्य अन्य धर्मग्रन्थों में भी रामायण की कथाओं को विभिन्न रूप में सम्मिलित कर लिया गया जिनका संक्षिप्त परिचय नीचे दिया जाता है-
चूँकि वाल्मीकि रामायण संस्कृत में है तथा उस काल में संस्कृत जानने वाले लोगों की संख्या अधिक नहीं थी, अतः एक ही विद्वान कथा कहता था तथा अन्य जन उसे भक्ति भाव से आनन्दपूर्वक क्षवण करते थे। इसके फलस्वरूप रामकथा का प्रचार दिन प्रतिदिन बढ़ता ही गया। महर्षि के बाद के अन्य अनेक कवियों ने भी उसी पर आधारित अनेक रचनाएँ की। इसके अतिरिक्त अनेक पुराणों तथा महाभारत आदि अन्य अन्य धर्मग्रन्थों में भी रामायण की कथाओं को विभिन्न रूप में सम्मिलित कर लिया गया जिनका संक्षिप्त परिचय नीचे दिया जाता है-
काल- ग्रन्थ का नाम (पुराण
आदि)
अन्य संस्कृत-साहित्य
बौद्धग्रन्थ
ई.पू.600 वाल्मीकि
रामायण
दशरथ जातक
ई.पू. 400
महाभारत-व्यासदेव कृत
रामकथा
अनामकम
जातक
ई.पू.100/800
(1) रामोपाख्यान
(2) प्रतिमानाटक-भास
(3) अभिषेक नाटक-भास
(2) प्रतिमानाटक-भास
(3) अभिषेक नाटक-भास
300-400
ई. (1) विष्णुपुराण-व्यासदेव कृत
(2) ब्रह्माण्डपुराण-व्यासदेव कृत
(2) ब्रह्माण्डपुराण-व्यासदेव कृत
400-500 ई. (1)
हरिवंशपुराण ’’
कालिदास का रघुवंश
दशरथ
(2) वायुपुराण ’’ जातक
(3) नृसिंहपुराण ’’
(2) वायुपुराण ’’ जातक
(3) नृसिंहपुराण ’’
300-700 ई. (1)
मत्स्यपुराण ’’
भटिकाव्य-भट्टि
रावणवहो
(2) कूर्म पुराण ’’
(3) भागवत पुराण ’’
(2) कूर्म पुराण ’’
(3) भागवत पुराण ’’
700-800 ई.
(1) उत्तर रामचरित भवभूमि कृत
(2) उदात्त राघव अनंग हर्ष मयूराज
(2) उदात्त राघव अनंग हर्ष मयूराज
800-900 ई. (1)
अग्नि पुराण ’’
(1) जानकी हरण
(2) स्कन्द पुराण ’’ (2) रामचरित (अभिनन्द)
(3)वराह पुराण ’’ (3)कुन्दमाला (दिन्नाग)
(4) तिब्बितन रामायण
(5) खोतानी रामायण
(2) स्कन्द पुराण ’’ (2) रामचरित (अभिनन्द)
(3)वराह पुराण ’’ (3)कुन्दमाला (दिन्नाग)
(4) तिब्बितन रामायण
(5) खोतानी रामायण
900-1000 ई. (1) नारदीय
पुराण व्यासदेव कृत (1) अनर्घ राघव
(2) गरुड़ पुराण ’’ (2) बाल रामायण राजशेखर
(3) ब्रह्म पुराण ’’ (3) आश्चर्य चूड़ामणि
(4) लिंग पुराण ’’
(2) गरुड़ पुराण ’’ (2) बाल रामायण राजशेखर
(3) ब्रह्म पुराण ’’ (3) आश्चर्य चूड़ामणि
(4) लिंग पुराण ’’
1000-1100 ई. (1) भागवत पुराण
’’
(1) महानाटक
हनुमान
(2) देवी भागवत पुराण ’’ (2) रामायण मंजरी क्षेमेन्द्र
(3) सौर पुराण ’’ (3) दशावतार चरित क्षेमेन्द्र
(4) कालिका पुराण ’’ (4) कथासरित्सागर सोमदेव
(5) चम्पू रामायण भोजराज
(6) पम्पा रामायण
(2) देवी भागवत पुराण ’’ (2) रामायण मंजरी क्षेमेन्द्र
(3) सौर पुराण ’’ (3) दशावतार चरित क्षेमेन्द्र
(4) कालिका पुराण ’’ (4) कथासरित्सागर सोमदेव
(5) चम्पू रामायण भोजराज
(6) पम्पा रामायण
1100-1200 ई. (1) पद्मपुराण व्यासदेव
कृत
(1) प्रसन्नराधव-जयदेव
(पाताल खण्ड) (2) रामचरित
(2) बृहद्धर्म पुराण ’’ (3) राघवपाण्डवीय
(4)जैमिनीय अश्वमेध-जैमिनी भरत
(5) योगवशिष्ठ रामायण
(6) कम्ब रामायण-तमिल, महर्षि कम्बर
(पाताल खण्ड) (2) रामचरित
(2) बृहद्धर्म पुराण ’’ (3) राघवपाण्डवीय
(4)जैमिनीय अश्वमेध-जैमिनी भरत
(5) योगवशिष्ठ रामायण
(6) कम्ब रामायण-तमिल, महर्षि कम्बर
1200-1300 ई. रामतापिनी
उपनिषद्
(1) उल्लग राघव
(2) मैथिली कल्याण
(3) दूतांगद-सुभट्ट
(4) हंस सन्देश
(5) महिरावण चरित-भवभूति
(6) रंगनाथ रामायण (तेलुगू)
(7) निर्वाचनोत्तर रामायण
(2) मैथिली कल्याण
(3) दूतांगद-सुभट्ट
(4) हंस सन्देश
(5) महिरावण चरित-भवभूति
(6) रंगनाथ रामायण (तेलुगू)
(7) निर्वाचनोत्तर रामायण
1300-1400 ई. (1) अध्यात्म
रामायण वेदव्यास
(1) उदार राघव सकलमल्ल
(2) अद्भुत रामायण महर्षि (2) उन्मत्त राघव भास्कर वाल्मीकि
(3) शिव महापुराण वेदव्यास (3) सहस्रमुख राव चरित जैमिनी भरत
(4) भास्कर रामायण (तेलुगू) (4) पुण्य श्रावणकथासार (कन्नड़)
(5) असमिया माधव कन्दली रामायण (असमिया)
(6) रामलीला ने पदों (गुजराती)
(2) अद्भुत रामायण महर्षि (2) उन्मत्त राघव भास्कर वाल्मीकि
(3) शिव महापुराण वेदव्यास (3) सहस्रमुख राव चरित जैमिनी भरत
(4) भास्कर रामायण (तेलुगू) (4) पुण्य श्रावणकथासार (कन्नड़)
(5) असमिया माधव कन्दली रामायण (असमिया)
(6) रामलीला ने पदों (गुजराती)
1400-1500 ई. (1) आनन्द रामायण महर्षि
(1) रामभ्युदय यशोवर्मन
वाल्मीकि
(2) पद्मपुराण-व्यासदेव (2) उन्मत्त राघव-विरुपाक्ष
(3) वन्ही पुराण ’’ (3)रामनाथचरित
(4) कृत्तिबास रामायण-
सन्त कृत्तिवास (4) रामविवाह
(5) महाभारत (उड़िया) (5) रामबालचरित (गुजराती) सन्त कृत्तिवास
(सरलादास) (6) सीताहरणम् (गुजराती)
(7) सीताहरणम् (गुजराती)
(2) पद्मपुराण-व्यासदेव (2) उन्मत्त राघव-विरुपाक्ष
(3) वन्ही पुराण ’’ (3)रामनाथचरित
(4) कृत्तिबास रामायण-
सन्त कृत्तिवास (4) रामविवाह
(5) महाभारत (उड़िया) (5) रामबालचरित (गुजराती) सन्त कृत्तिवास
(सरलादास) (6) सीताहरणम् (गुजराती)
(7) सीताहरणम् (गुजराती)
(6) कण्णश
रामायण (मलयालम) (8) रामकथा (सिंहल)
(7) सेरी रामायण (मलाया)
(7) सेरी रामायण (मलाया)
1500-1600 ई. (1) फारसी रामायण (अकबरकालीन)
(2) रामचरितमानस-तुलसीदास कृत
(2) रामचरितमानस-तुलसीदास कृत
उपर्युक्त तालिका केवल उदाहरण मात्र के लिए ही प्रस्तुत की गयी है। वास्तव
में हिन्दी एवं प्रादेशिक भाषाओं की रामायणों की संख्या इनसे कई गुना अधिक
है। उदाहरणार्थ, केवल कन्नड़ भाषा में ही चौहदवीं से सत्रहवीं शती तक के
रामायण ग्रन्थों की संख्या बीस से अधिक है।
वास्तव में रामायण अथवा रामकथा साहित्य अत्यधिक विशाल है, जिसके अनेक रूपान्तर भारत के आसपास के अनेक देशों, जैसे थाइलैण्ड, मयाँमार, तिब्बत, चीन, बांग्लादेश, जापान आदि में आज भी उपलब्ध हैं। इसमें सन्देह नहीं है कि इन देशों में रामकथा का स्वरूप काफी बदला हुआ है परन्तु मुख्य रूप से वे सभी भारत के वाल्मीकि रामायण पर ही आधारित हैं। इतना होने पर भी कुछेक पाश्चात्य तथा भारतीय विद्वानों का मत है, कि वाल्मीकि रामायण के बाल काण्ड तथा उत्तर काण्ड वाल्मीकि द्वारा रचित नहीं हैं अपितु वे दोनों काण्ड कालान्तर में उस ग्रन्थ में जोड़ दिए गये हैं। इन सन्दर्भ में निम्नलिखित कुछ तथ्यों पर गहन रूप से विचार करने की आवश्यकता है :-
(1) रामायण की कथा एक सम्पूर्ण आख्यान है। इसमें से यदि एक कड़ी भी निकाल दी जाए तो उसमें स्पष्ट रूप से अपूर्णता दिखाई देने लगेगी।
(2) वाल्मीकि रामायण के श्लोकों की गिनती चौबीस हजार है। अतः यदि यह मान लिया जाए कि वास्तवित रामायण में दो काण्ड क्षेपक रूप से विद्यमान हैं तो यह संख्या विकृत हो जाएगी।
(3) एक आश्चर्य की बात तो यह है कि कुछ विद्वान इन दो काण्डों को क्षेपक मानते हैं, परन्तु ऐसा करने की क्या आवश्यतता थी तथा किस व्यक्ति ने कौन से भाग की कब और क्यों रचना की-इसका कोई सन्तोषजनक उत्तर नहीं मिलता।
(4) यदि बाल-काण्ड को वाल्मीकि रामायण से अलग कर दिया जाए तो सम्पूर्ण ग्रन्थ शीर्ष रहित हो जाएगा क्योंकि रामायण की कथा के बीज रूप श्रीराम का जन्म तथा उनका विवाह आदि तो शेष अध्यायों में नहीं मिलेगा। अतः सम्पूर्ण रामकथा राम जन्म तथा उनके विवाह बिना अधूरी रह जाएगी।
(5) मेरे विचार में उत्तर-काण्ड भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितने अन्य, काण्ड, क्योंकि इसे क्षेपक मानने में सबसे बड़ी अड़चन यह है कि इतना महान रघुवंश ऐसी स्थिति में बिना किसी उत्तराधिकारी के रह जाता और लव-कुश का जन्म उत्तर-काण्ड में ही दर्शाया जा सकता है। कई विद्वानों का मत है कि सीता-वनवास हुआ ही नहीं था; इस बात की पुष्टि के लिए कुछ रामायण तो श्रीराम के राज्याभिषेक के उपरान्त ही समाप्त हो जाते हैं। यह युक्तिसंगत नहीं है; क्योंकि ऐसा करने से रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि की स्थिति गौण हो जाती है। वास्तव में वाल्मीकि द्वारा रामायण की रचना का सम्पूर्ण साक्ष्य उत्तर काण्ड में ही विद्यमान है किसी अन्य काण्ड में नहीं। अतः उत्तर-काण्ड को नकारना महर्षि वाल्मीकि की अवहेलना करना होगा। इसमें सन्देह नहीं है कि रंगनाथ कृत रामायण (तेलुगु) तोर्बे कृत रामायण (कन्नड़) और गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरित मानस आदि कुछ रामायणों में कथाकारों ने रामकथा को श्रीरामाभिषेक के पश्चात् ही समाप्त कर दिया है। ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसा करने में एक ही भावना कार्य कर रही थी कि यह काव्य सुखान्त हो; लेकिन ‘अध्यात्म रामायण’ आदि कई ग्रन्थों में सीता वनवास का प्रसंग उपलब्ध होता है। यही नहीं, भवभूति के उत्तर रामचरित का कथानक तो उत्तर काण्ड ही है। अतः उत्तर काण्ड को क्षेपक मानने का कोई औचित्य दिखाई नहीं देता।
(6) वाल्मीकि रामायण में राम, लक्ष्मण, भरत तथा शत्रुघ्न इन चारों भाइयों को विष्णु का अवतार माना गया है। यह भी कहा गया है कि राम के प्रादुर्भाव के समय कौशल्या को भगवान के विराट रूप के दर्शन हुए, विस्मित होकर कौशल्या ने उन्हें नमस्कार किया तथा उनसे बाल रूप में आने की प्रार्थना की। अतः भगवान बाल रूप में प्रकट हुए-
वास्तव में रामायण अथवा रामकथा साहित्य अत्यधिक विशाल है, जिसके अनेक रूपान्तर भारत के आसपास के अनेक देशों, जैसे थाइलैण्ड, मयाँमार, तिब्बत, चीन, बांग्लादेश, जापान आदि में आज भी उपलब्ध हैं। इसमें सन्देह नहीं है कि इन देशों में रामकथा का स्वरूप काफी बदला हुआ है परन्तु मुख्य रूप से वे सभी भारत के वाल्मीकि रामायण पर ही आधारित हैं। इतना होने पर भी कुछेक पाश्चात्य तथा भारतीय विद्वानों का मत है, कि वाल्मीकि रामायण के बाल काण्ड तथा उत्तर काण्ड वाल्मीकि द्वारा रचित नहीं हैं अपितु वे दोनों काण्ड कालान्तर में उस ग्रन्थ में जोड़ दिए गये हैं। इन सन्दर्भ में निम्नलिखित कुछ तथ्यों पर गहन रूप से विचार करने की आवश्यकता है :-
(1) रामायण की कथा एक सम्पूर्ण आख्यान है। इसमें से यदि एक कड़ी भी निकाल दी जाए तो उसमें स्पष्ट रूप से अपूर्णता दिखाई देने लगेगी।
(2) वाल्मीकि रामायण के श्लोकों की गिनती चौबीस हजार है। अतः यदि यह मान लिया जाए कि वास्तवित रामायण में दो काण्ड क्षेपक रूप से विद्यमान हैं तो यह संख्या विकृत हो जाएगी।
(3) एक आश्चर्य की बात तो यह है कि कुछ विद्वान इन दो काण्डों को क्षेपक मानते हैं, परन्तु ऐसा करने की क्या आवश्यतता थी तथा किस व्यक्ति ने कौन से भाग की कब और क्यों रचना की-इसका कोई सन्तोषजनक उत्तर नहीं मिलता।
(4) यदि बाल-काण्ड को वाल्मीकि रामायण से अलग कर दिया जाए तो सम्पूर्ण ग्रन्थ शीर्ष रहित हो जाएगा क्योंकि रामायण की कथा के बीज रूप श्रीराम का जन्म तथा उनका विवाह आदि तो शेष अध्यायों में नहीं मिलेगा। अतः सम्पूर्ण रामकथा राम जन्म तथा उनके विवाह बिना अधूरी रह जाएगी।
(5) मेरे विचार में उत्तर-काण्ड भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितने अन्य, काण्ड, क्योंकि इसे क्षेपक मानने में सबसे बड़ी अड़चन यह है कि इतना महान रघुवंश ऐसी स्थिति में बिना किसी उत्तराधिकारी के रह जाता और लव-कुश का जन्म उत्तर-काण्ड में ही दर्शाया जा सकता है। कई विद्वानों का मत है कि सीता-वनवास हुआ ही नहीं था; इस बात की पुष्टि के लिए कुछ रामायण तो श्रीराम के राज्याभिषेक के उपरान्त ही समाप्त हो जाते हैं। यह युक्तिसंगत नहीं है; क्योंकि ऐसा करने से रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि की स्थिति गौण हो जाती है। वास्तव में वाल्मीकि द्वारा रामायण की रचना का सम्पूर्ण साक्ष्य उत्तर काण्ड में ही विद्यमान है किसी अन्य काण्ड में नहीं। अतः उत्तर-काण्ड को नकारना महर्षि वाल्मीकि की अवहेलना करना होगा। इसमें सन्देह नहीं है कि रंगनाथ कृत रामायण (तेलुगु) तोर्बे कृत रामायण (कन्नड़) और गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरित मानस आदि कुछ रामायणों में कथाकारों ने रामकथा को श्रीरामाभिषेक के पश्चात् ही समाप्त कर दिया है। ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसा करने में एक ही भावना कार्य कर रही थी कि यह काव्य सुखान्त हो; लेकिन ‘अध्यात्म रामायण’ आदि कई ग्रन्थों में सीता वनवास का प्रसंग उपलब्ध होता है। यही नहीं, भवभूति के उत्तर रामचरित का कथानक तो उत्तर काण्ड ही है। अतः उत्तर काण्ड को क्षेपक मानने का कोई औचित्य दिखाई नहीं देता।
(6) वाल्मीकि रामायण में राम, लक्ष्मण, भरत तथा शत्रुघ्न इन चारों भाइयों को विष्णु का अवतार माना गया है। यह भी कहा गया है कि राम के प्रादुर्भाव के समय कौशल्या को भगवान के विराट रूप के दर्शन हुए, विस्मित होकर कौशल्या ने उन्हें नमस्कार किया तथा उनसे बाल रूप में आने की प्रार्थना की। अतः भगवान बाल रूप में प्रकट हुए-
विष्णोरर्धं महाभांग पुत्रमैक्ष्वाकुनन्दनम्।
लोहिताक्षं महाबाहुं रक्तोष्ठं दुन्दुभिस्वनम्।।
(वा.रा, 1.18.11)
लोहिताक्षं महाबाहुं रक्तोष्ठं दुन्दुभिस्वनम्।।
(वा.रा, 1.18.11)
वाल्मीकि रामायण में भगवान राम को विष्णु का अवतार माना गया है। इस मान्यता को लेकर प्रश्न उठता है कि इस अवतार की आवश्यकता क्या थी ? इस विषय में नीचे दिये गये तथ्यों को ध्यान में रखना होगा-
(क) वाल्मीकि रामायण, बाल-काण्ड सर्ग-5 में आता है कि देवता रावण से आतंकित होकर भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं और उनसे उद्धार की प्रार्थना करते हैं। हरिवंश पुराण (अ. 3-67/69) तथा मत्स्य पुराण (अ. 243/9) में भी सभी देवता मिलकर भगवान विष्णु की तपस्या करते हैं तथा बलि को परास्त करने का वरदान प्राप्त करते हैं। वाल्मीकि रामायण के दाक्षिणात्य पाठ (1.29.10.17) में तथा वामनपुराण (24-28) में कश्यप तथा अदिति के विष्णु से वर--प्राप्ति का उल्लेख है।
(ख) अध्यात्म रामायण (बाल काण्ड, सर्ग-2) में कहा गया है कि एक बार धरती रावण के अत्याचारों से त्रस्त होकर सभी देवताओं सहित गौ का रूप धारण कर ब्रह्मा- विष्णु के पास रक्षार्थ गयी, तब ब्रह्मा आदि सभी देवताओं तथा पृथ्वी को लेकर भगवान विष्णु के पास क्षीरसागर में पहुँचे थे और उन्होंने भगवान विष्णु से धरती की करुणा भरी गाथा का निवेदन किया था। भगवान विष्णु ने उनकी प्रार्थना स्वीकार करते हुए कहा था कि मैं अपने चार अंशों से कौशल्या तथा अन्य माताओं से जन्म लेकर रावण का संहार करूँगा तथा उसी समय मेरी योगमाया भी जनक के घर में सीता के रूप में अवतरित होगी। उसको साथ लेकर मैं आपका कार्य सिद्ध करूँगा।
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