हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के एक महान ज्ञाता ......
तानसेन
या मियां तानसेन या रामतनु पाण्डेय हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के एक
महान ज्ञाता थे। उन्हे सम्राट अकबर के नवरत्नों में भी गिना जाता है।
संगीत सम्राट तानसेन की नगरी ग्वालियर के लिए कहावत प्रसिद्ध है कि यहाँ
बच्चे रोते हैं, तो सुर में और पत्थर लुड़कते है तो ताल में।
अकबर
के ही सलाहकार और नवरत्नों में से एक अब्दुल फजल ने तानसेन की संगीत की
प्रशंसा में अकबर को चिट्ठी लिखी और सुझाव दिया कि तानसेन को अकबरी-दरबार
का नवरत्न होना चाहिए। अकबर तो कला-पारखी थे ही। ऐसे महान संगीतकार को रखकर
अपने दरबार की शोभा बढ़ाने के लिए बेचैन हो उठे।
उन्होंने तानसेन को बुलावा भेजा और राजा रामचंद्र को पत्र लिखा। किंतु
राजा रामचंद्र अपने दरबार के ऐसे कलारत्न को भेजने के लिए तैयार न हुए। बात
बढ़ी और युद्ध तक पहुँच गई। आखिर तानसेन के कहने पर राजा रामचंद्र ने
तानसेन को भेज दिया। अकबर के दरबार में आकर तानसेन पहले तो खुश न थे लेकिन
धीरे-धीरे अकबर के प्रेम ने तानसेन को अपने निकट ला दिया।
एक बार
अकबर ने उनसे कहा कि वो उनके गुरु का संगीत सुनना चाहते हैं। गुरु हरिदास
तो अकबर के दरबार में आ नहीं सकते थे। लिहाजा निधि वन में अकबर हरिदास का
संगीत सुनने आए। हरिदास ने उन्हें कृष्ण भक्ति के कुछ भजन सुनाए थे। अकबर
हरिदास से इतने प्रभावित हुए कि वापस जाकर उन्होंने तानसेन से अकेले में
कहा कि आप तो अपने गुरु की तुलना में कहीं आस-पास भी नहीं है। फिर तानसेन
ने जवाब दिया कि जहांपनाह हम इस ज़मीन के बादशाह के लिए गाते हैं और हमारे
गुरु इस ब्रह्मांड के बादशाह के लिए गाते हैं तो फर्क तो होगा न।
तानसेन के पुराने चित्रों से उनके रूप-रंग की जानकारी मिलती है।
तानसेन का रंग सांवला था। मूँछें पतली थीं। वह सफेद पगड़ी बाँधते थे। सफेद
चोला पहनते थे। कमर में फेंटा बाँधते थे। तानसेन का देहावसान अस्सी वर्ष
की आयु में हुआ। उनकी इच्छा धी कि उन्हें उनके गुरु मुहम्मद गौस खाँ की
समाधि के पास दफनाया जाए। वहाँ आज उनकी समाधि पर हर साल तानसेन संगीत
समारोह आयोजित होता है।
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