संघ को बाहर से समझना बहुत कठिन है मित्रों ! आपको निमंत्रण है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
में शामिल होने के लिए ! हमारे साथ आईये ! हमारे संगठन का अध्ययन करिए !
जब पूरी जानकारी हो जाय आर एस एस के अंदरुनी ढांचे का तब विचार करिए की आर
एस एस ठीक है या फिर गलत है ! अगर आपको ठीक न लगे तो छोड़ कर चले जाईये !
और फिर बढियां से बढ़ी हुई, अधिक जानकारी के साथ हमारी आलोचना करिए ! तब यह
आलोचना अकेडमिक लगेगी ! अभी आप लोग जब
आलोचना करते है तब आपके शब्दों से कुछ ऐसा लगता है कि आर एस एस के बारे में
आप कम जानकारी रखते हैं ! हमारा संगठन हरेक राष्ट्रवादी के लिए खुला हुआ
है सदैव ! आप कभी भी आ सकते हैं और कभी भी छोड़ कर जा सकते हैं
हमरे सभी बंधु-भगिनी ध्यान से पढ़िए इसको :-
गगनम गगनाकारम सागरम सागरोपमः !
राम रावणयोरयुद्धम राम रावणयोरिव !!
अर्थात १. आकाश कि कोई उपमा नहीं है अखिल विश्व में ! आकाश के जैसा कोई दूसरी वस्तु है ही नहीं इस जगत में इसीलिए आसमान आसमान के जैसा ही है ! २. समुद्र भी अपने आप में एक अलग प्रकार कि रचना है ! कोई भी दूसरा जल पिंड सागर कि बराबरी नहीं कर सकता ! इसीलिए सागर सागर के जैसा ही है ! ३. और भगवान श्रीराम और लंकेश रावण का जो युद्ध हुआ वह अपने आप में अनूठा था ! उस प्रकार के अस्त्र-शास्त्रों का प्रयोग कभी नहीं हुआ अभी तक दुबारा विश्व इतिहास में ! इस युद्ध की कोई उपमा और कोई समान उदाहरण देना असंभव है !
ठीक इसी प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी है ! चुकि संघ के जैसा दूसरा कोई संगठन नहीं है अखिल विश्व में इसीलिए आप दूसरे संगठनों के साथ इसकी तुलना करके कोई बात कहें तो शायद वो निर्परिप्रेक्ष्य हो जायेगा ! कुछ इसी तरह की बात हमारी भारत माता के बारे में भी है ! और भारत के परिवार व्यवस्था के बारे में भी ! संघ ,परिवार भाव पर आधारित संगठन है इसीलिए यहाँ चुनाव जैसे विषय अप्रासंगिक हो जाते हैं ! ध्याताब्य है कि हमारे परिवारों में परिवार का मुखिया चुनने के लिए कोई चुनाव नहीं हुआ करता है ! हमारे घरों में जो घर की हरेक बात को अधिक कुशलता से सम्हाल सकता है उसको ही आम तौर पर परिवार का मुखिया बना दिया जाता है ! इसी प्रकार से संघ को हम एक बृहत् परिवार मानते हैं !
हम हमारे ऋषियों का आदेश-- ''वसुधैव कुटुम्बकम'' (अर्थात पूरा विश्व ही एक परिवार है ऐसा हमें मानना चाहिए) का पालन करते हुए यह निश्चित किया है कि सबसे पहले इस भारत देश को तो एक परिवार बना दें ! और ऐसा करने के निमित हमने एक परिवार भाव के साथ सगठन का ताना-बना बुना है ! हम पुजनिये सर संघचालक जी को संगठन का अध्यक्ष नहीं इस बड़े परिवार का मुखिय मानते हैं ! इसलिए परिवार परंपरा का निर्वाह करते हुए हम चुनाव नहीं करते बहुमत से ! हम हरेक काम, हरेक निर्णय सर्व सहमती से करते हैं ! यहाँ फैसले बहुमत के आधार पर नहीं सर्वमत के आधार पर लिया जाता है ! कोई एक भी व्यक्ति तर्कपूर्ण विरोध कर दे तो वह निर्णय निरस्त कर दिया जाता है ! ऐसा लोकतंत्र दुनिया में आपको कही भी नहीं मिलेगा शायद जहाँ हरेक की भावनाओं का, हरेक की मेधा और योग्यता का ख्याल रखा जाता है ! किसी को भी नकारने की परंपरा नहीं है हमारे इस बृहत् परिवार में !
हमरे सभी बंधु-भगिनी ध्यान से पढ़िए इसको :-
गगनम गगनाकारम सागरम सागरोपमः !
राम रावणयोरयुद्धम राम रावणयोरिव !!
अर्थात १. आकाश कि कोई उपमा नहीं है अखिल विश्व में ! आकाश के जैसा कोई दूसरी वस्तु है ही नहीं इस जगत में इसीलिए आसमान आसमान के जैसा ही है ! २. समुद्र भी अपने आप में एक अलग प्रकार कि रचना है ! कोई भी दूसरा जल पिंड सागर कि बराबरी नहीं कर सकता ! इसीलिए सागर सागर के जैसा ही है ! ३. और भगवान श्रीराम और लंकेश रावण का जो युद्ध हुआ वह अपने आप में अनूठा था ! उस प्रकार के अस्त्र-शास्त्रों का प्रयोग कभी नहीं हुआ अभी तक दुबारा विश्व इतिहास में ! इस युद्ध की कोई उपमा और कोई समान उदाहरण देना असंभव है !
ठीक इसी प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी है ! चुकि संघ के जैसा दूसरा कोई संगठन नहीं है अखिल विश्व में इसीलिए आप दूसरे संगठनों के साथ इसकी तुलना करके कोई बात कहें तो शायद वो निर्परिप्रेक्ष्य हो जायेगा ! कुछ इसी तरह की बात हमारी भारत माता के बारे में भी है ! और भारत के परिवार व्यवस्था के बारे में भी ! संघ ,परिवार भाव पर आधारित संगठन है इसीलिए यहाँ चुनाव जैसे विषय अप्रासंगिक हो जाते हैं ! ध्याताब्य है कि हमारे परिवारों में परिवार का मुखिया चुनने के लिए कोई चुनाव नहीं हुआ करता है ! हमारे घरों में जो घर की हरेक बात को अधिक कुशलता से सम्हाल सकता है उसको ही आम तौर पर परिवार का मुखिया बना दिया जाता है ! इसी प्रकार से संघ को हम एक बृहत् परिवार मानते हैं !
हम हमारे ऋषियों का आदेश-- ''वसुधैव कुटुम्बकम'' (अर्थात पूरा विश्व ही एक परिवार है ऐसा हमें मानना चाहिए) का पालन करते हुए यह निश्चित किया है कि सबसे पहले इस भारत देश को तो एक परिवार बना दें ! और ऐसा करने के निमित हमने एक परिवार भाव के साथ सगठन का ताना-बना बुना है ! हम पुजनिये सर संघचालक जी को संगठन का अध्यक्ष नहीं इस बड़े परिवार का मुखिय मानते हैं ! इसलिए परिवार परंपरा का निर्वाह करते हुए हम चुनाव नहीं करते बहुमत से ! हम हरेक काम, हरेक निर्णय सर्व सहमती से करते हैं ! यहाँ फैसले बहुमत के आधार पर नहीं सर्वमत के आधार पर लिया जाता है ! कोई एक भी व्यक्ति तर्कपूर्ण विरोध कर दे तो वह निर्णय निरस्त कर दिया जाता है ! ऐसा लोकतंत्र दुनिया में आपको कही भी नहीं मिलेगा शायद जहाँ हरेक की भावनाओं का, हरेक की मेधा और योग्यता का ख्याल रखा जाता है ! किसी को भी नकारने की परंपरा नहीं है हमारे इस बृहत् परिवार में !
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