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Monday, February 18, 2013

विकास के नाम पर रईसी षड़यंत्र की आँधी, उजाड़ने जा रही किसानों और आदिवासियों की जिन्दगी...

एक गरीब किसान या आदिवासी अपने पूर्वजों से मिली व उसका भरण-पोषण करने वाली जमीन के नीचे दबे खनिज या जमीन से पैदा होने वाली फसल का मालिक सिर्फ इसलिये नहीं हो सकता क्योंकि उसमें उसकी खुद की जमीन में मौजूद खनिज संपदा को पूंजी में बदलने की क्षमता नहीं है|

इन रईसों ने जिन्होंने इन गरीबों को उनका हक न देकर हमेशा इनके श्रम का शोषण ही किया और उसके बल पर आलीशान कोठियाँ के मखमली कालीनों में अय्याशियों की भयावह कथायें लिखीं, इन गरीबों को कीडे-मकोडों के समान समझा जाता हैं| इन रईसों की खूनी व लालची निगाहें हमेशा इन गरीबों की जमीनों के नीचे छुपी खनिज संपदा के रूप में मौजूद असीमित खजानों पर टिकी रहती है जो उस संपदा को पाने के लिये दौलत की झड़ियाँ उन भ्रष्ट नेताओं / अधिकारियों और उनके चमचों की फौज पर बरसाते हैं बदले में सरकारी फौजों का इस्तेमाल इन गरीबों के ऊपर करके उन्हें उस संपदा से तो वंचित करते ही हैं बल्कि नीचता की हद इन रईसों में इस कदर व्याप्त है कि वे उन खनिज संपदा के मालिकों को उनकी संपदा को निकालने के लिये गुलामों के समान इस्तेमाल करते हैं और बेशर्मी इतनी है इनमें कि यह कहते हैं कि हमने बदले में इन्हें रोजगार दिया, इन रईसों के जुल्मों-सितम की दास्ताँ आप उन ठेकेदारों के मुँह से सुन सकते हैं, जो खनिज संपदा को निकलवाने के लिये ठेकेदारी का काम करते हैं और इन गरीबों के लिये कहते हैं कि अगर इस संपदा के असली मालिकों (इन गरीबों को) भरपेट भोजन दे दिया, तो यह आलसी और आरामपरस्त हो जायेंगे, इसलिये इन्हें रहने की जगह ऐसी दो जिससे इन्हें आराम से सोने को न मिल पाये (गंदे नाले के पास प्लास्टिक का टैन्ट लगाकर) और खाने को आधा पेट ही दो नहीं तो सिर पर चढ जायेंगे, इन रईसों के कारनामे उड़ीसा, बस्तर, छत्तीसगढ, झारखण्ड जैसी खनिज संपदा से भरपूर स्थानों पर बड़ी आसानी से मिलते चले जायेंगे| क्या विकास सिर्फ और सिर्फ रईसों की जागीर है? अगर हाँ, तो क्या जरूरत है विकास की? इन्हें तो वैसे भी बड़े-बड़े वातानुकूलित आरामगाहों में आराम करने से कोई नहीं रोक रहा, कोई गरीब उनके दरवाजे पर भीख माँगने नहीं जा रहा, हाँ वे जरूर इन गरीबों के असीमित खजानों को लूटने की कोशिश कर रहे हैं|

अगर विकास के लिए असीमित खजानों को लूटने की कोशिश कर रहें इन विकासशील योजनाओं का परिणाम पूरे देश के सामने ला्या जाये, कि खनिज संपदा के उस वास्तविक मालिक को अपनी भूमि विकास के नाम पर पुंजीपतियों को दिये जाने पर क्या मिला, तो वास्तविकता साफ नजर आ जायेगी, फिर किसी नई योजना का क्रियान्वन की सोचो|

आज देश में दिल्ली, मुंबई औद्योगिक कॉरिडोर की जो योजना देश की सरकार क्रियान्वन में लाने की सोच रही है, उसमें लाखों हेक्टेयर कृषि योग्य जमीन गरीब किसानों से ले ली जायेगी और उन चन्द रईसों को लगभग मुफ्त उद्योग लगाने के नाम पर दी जायेगी और साथ में अरबों रु. का कर्जा भी यह कहकर किया जायेगा कि वे हजारों लोगों को रोजगार देंगे इन उद्योगों में| क्या हम इतना भी विश्लेषण नहीं कर सकते कि विकास के नाम पर हमारे देश के वस्तविक नींव के पत्थरों को किस तरह लूटा जा रहा है और इन गरीबों को विद्रोही बनने पर मजबूत किया जा रहा है ताकि बाद में योजनाबद्ध तरीके से नक्सली का नाम देकर या तो गोलियों से भून दिया जाये, नहीं तो जेलों में सड़ने के लिये डाल दिया जाये|

आज जरूरत है हमें इंसानियत को शर्मसार करने वाली और विकास के नाम पर की जा रही इन हलचलों को रोकने की, हम सब शिक्षित हैं, सड़क पर उतरना हम सब के लिये मुमकिन नहीं मगर हम इतना तो अवश्य कर सकते हैं कि अपने-अपने क्षेत्र में मौजूद गरीबों को जागरूक करने के लिये आवश्यक हैण्ड बिल प्रिंट करके उन्हें अपने-अपने क्षेत्र में वितरित करें जिससे विकास की असलियत जनता तक पहुँच सके और वे विकास के असली चेहरों को पहचान सकें और इस मुहिम में शामिल हो सकें जिससे विकास के नाम पर किये जा रहे शोषण का विरोध करने वालों को हिम्मत मिल सकें| आपके क्षेत्र में आने वाली इस रैली में शामिल आन्दोलनकारियों को इस प्रकार मदद करें कि उन्हें महसूस हो कि वे अकेले नहीं हैं| आप के सहयोग की इन्हें आवश्यकता है, हम विकास के विरोधी नही हैं, मगर विकास के नाम पर पूँजी का अगर केन्द्रीकरण होता है, खनिज संपदा के वास्तविक मालिकों को अगर उनका हक नहीं मिलता है, हमें ऐसे विकास की आवस्यकता नहीं हैं| पहले विकास के नाम पर उजाड़े गये उन आदिवासियों और गरीब किसानों को इन्साफ दिलाओ, जब वे आकर देश को कहेंगे कि "हमें हमारा हक प्राप्त हो चुका है, हम भी विकास चाहते हैं, तभी अन्य विकास की मुहिम को आगे बढाया जाये"|

दिल्ली, मुंबई औद्योगिक कॉरिडोर के संबंध में पूरी वास्तविकता के बारे में पढ़िये|
http://www.bvbja.com/EmailReply.aspx?Pg=150&Rnd=0015340666274554640130219


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