Pages

तात्कालिक लेख

Grab the widget  Get Widgets

Monday, February 18, 2013

भारत के साथ एक षड्यंत्र - संविधान का ४२ वां संशोधन

ऐसा लगता है भारत में सेकुलरिज्म अब फैशन बन चुका है..अब तो पढ़े लिखे, संभ्रांत होने का पैमाना भी सेकुलर होना होता जा रहा है माने आप सभ्रांत तभी है जब कि आप बड़े गर्व के साथ घोषणा करते हो कि आप सेकुलर है आपका धर्म से कोई लेना देना नहीं है ! दरअसल पश्चिम जो कि सेकुरारिज्म की अवधारणा का जनक रहा वहां Religion की संकल्पना है, जिसके आधार है बाइबिल नामक एक पुस्तक, एक पैगम्बर या मसीहा जो कि मार्गदर्शन करता है, एक ईश्वर जो इस मत के अनुयायियों पर कृपा करता है और इन अनुयायियों के लिए एक स्वर्ग ! अन्य इस्लाम, यहूदी, आदि सभी मतों की भी यही धारणा है ! संभवतः तभी पश्चिमी विचारकों ने भारत के ‘हिंदुत्व’ को भी Religion मान लिया ! डॉ सम्पूर्णानन्द ने कहा है कि,”कठिनाई यह है कि संस्कृत में ‘मजहब’ या religion के लिए कोई शब्द नहीं है ! इसीलिए “धर्म” शब्द की छीछालेदर की जाती है और उसको ‘मजहब’ या religion का पर्याय बना दिया जाता है .
संशोधन का वर्तमान में परिणाम
मूल संविधान ने भारत को 'लोकतांत्रिक गणराज्य' कहा गया था, लेकिन इस संशोधन के बाद वह 'लोकतांत्रिक समाजवादी सेकुलर गणराज्य' में बदल दिया गया। यह 42वां संशोधन अत्यंत बदनाम हुआ था, जिसे तत्कालीन कांग्रेस-कम्युनिस्ट गठजोड़ द्वारा लगाई गई इमरजेंसी के दौरान संपन्न किया गया था। इसे महत्वहीन नहीं मानना चाहिए कि यह संशोधन उस समय किया गया जब केंद्रीय मंत्रिमंडल के निर्णय स्वयं केंद्रीय मंत्रियों को भी रेडियो से मालूम होते थे! अर्थात यह संशोधन बिना किसी विचार विमर्श के और दो-चार व्यक्तियों की मनमानी से किया गया था। उसके पीछे गर्हित स्वार्थ थे, यह इससे भी स्पष्ट है कि इमरजेंसी खत्म होने पर नई सरकार द्वारा उस संशोधन की कई बातों को निरस्त कर दिया गया। अत: संविधान की प्रस्तावना में समाजवाद जोड़ने से न केवल संविधान का मूल ढांचा बिगड़ा, बल्कि यह कार्य अनुचित तरीके से भी किया गया था। 'सोशलिस्ट' और 'सेकुलर' ऐसी अवधारणाएं नहीं थीं जिनके बारे में हमारे संविधान निर्माताओं को ज्ञान न था। सोशलिज्म तब पूरे यूरोप में सबसे अधिक फैशनेबल राजनीतिक विचारधारा थी। अतएव यदि उन्होंने भारतीय गणराज्य के स्वरूप को 'सोशलिस्ट' नहीं बनाया तो यह उनका सुविचारित निश्चय था। वैसे भी चाहे जितने व्यापक रूप में देखें, ये दोनों धारणाएं ऐसी सुंदर या अहिंसक नहीं है जितनी समझी जाती हैं। इसका प्रमाण तो इससे भी मिलता है कि 1975 में संविधान में इसे जोड़ने वाले निर्णयकर्ता सत्ताधारी एक प्रकार की तानाशाही में लिप्त थे। फिर समाजवाद के सिद्धांत और व्यवहार के बारे में तमाम समाजवादी शासनों के अनुभवों का भी आकलन करना चाहिए।
सभी से यही प्रमाणित होता है कि सोशलिज्म एक विशिष्ट राजनीतिक विचारधारा है, जो कमोबेश लोकतंत्र के विपरीत पड़ती है। यदि यह लोकतंत्र का ही एक पहलू है तब प्रश्न उठता है कि भारत समेत सभी लोकतांत्रिक देशों में अलग से समाजवादी पार्टियों क्यों बनती रही है? दूसरी ओर एशिया, यूरोप, अफ्रीका, अरब दुनिया के सभी हिस्सों में जहां-जहां भी समाजवादी व्यवस्था बनाई गई, सर्वत्र यही हुआ कि समाजवादी सत्ता बनते ही दूसरी पार्टियों को बलपूर्वक खत्म कर डाला जाता रहा। इस सार्वभौमिक इतिहास को उस तथ्य से जोड़ कर देखें कि जब भारत में सारे विपक्ष को जेल में ठूंस दिया गया था तभी सत्ताधारियों ने संविधान में 'समाजवाद' का लक्ष्य जोड़ा था-वह भी बिना उसे परिभाषित किए। किसलिए? यह मानना ही होगा कि भारतीय संविधान में 'समाजवाद' को दिशा-निर्देशक स्थान दिए रहने से यहां कम्युनिस्ट और सोशलिस्ट पार्टियों को अनुचित वरिष्ठता शक्ति मिली रही है। यह परिवर्तन संविधान की लोकतांत्रिक आत्मा के विरुद्ध है, क्योंकि इससे एक विशेष राजनीतिक विचारधारा को संवैधानिक दबदबा प्रदान कर दिया गया है।
सेकुलरिज्म एक भ्रामक और कुपरिभाषित शब्द है.....अधिकाँश लोग इस शब्द कासही अर्थ भी नहीं जानते .....इस शब्द की न तो कोई सटीक परिभाषा है....और न ही कोईव्याख्या है... लेकिन कुछ धूर्तों और सत्ता लोलुप लोगों ने सेकुलर शब्द काअर्थ "धर्मनिरपेक्ष "कर दिया....जिसका मूल अंग्रेजी शब्द से दूर का भीसम्बन्ध नहीं है.....यही नहीं इन मक्कार लोगों ने सेकुलर शब्द का एक विलोमशब्द भी गढ़ लिया "साम्प्रदायवाद "....
आज यह सत्तालोभी ,हिंदुद्रोही नेताअपने सभी अपराधों पर परदा डालने और हिन्दुओं को कुचलने व् उन्हें फ़सानेके लिए इन शब्दों का ही उपयोग करते हैं....
इन कपटी लोगों की मान्यता है कीकोई व्यक्ति चाहे वह कितना ही बड़ा अपराधी हो... भ्रष्टाचारी हो ....यादेशद्रोही ही क्यों न हो,यदि वह ख़ुद को सेकुलर बताता है ...तो उसे दूध काधुला ,चरित्रवान ,देशभक्त,और निर्दोष मानना चाहए.....इस तरह से यह लोग अपनेसारे अपराधों को सेकुलरिज्म की चादर में छुपा लेते हैं ....लेकिन यही हमारे धर्म  की जड़ों के कीड़े सेकुलरलोग जब किसी हिन्दू संत.....महात्मा ...या संगठन को कानूनी शिकंजे में फ़सानाचाहते हैं ....तो उन पर सम्प्रदायवादी होने का आरोप लगा कर उन्हें प्रताडितकरते हैं....सेकुलर का वास्तविक अर्थ और इतिहास बहुत कम लोगों को पता है.....इससेकुलरिज्म रूपी राक्षस को इंदिरा गांधी नाम की डायन ने जन्म दिया था... इमरजेंसी केदौरान (1975-1977) इंदिरा ने अपनी सत्ता को बचाने ओर लोगों का मुंह बंदकराने के लिए पहिली बार सेकुलरिज्म का प्रयोग किया था....इसके लिए इंदिरा नेदिनांक 2 नवम्बर 1976को संविधान में 42 वां संशोधन करके उसमे सेकुलर शब्दजोड़ दिया था .जो की एक विदेश से आयातित शब्द है....हिन्दी में इसके लिएधर्मनिरपेक्ष शब्द बनाया गया.यह एक बनावटी शब्द है.....भारतीय इतिहास में इसशब्द का कोई उल्लेख नहीं मिलता है............................!!
  संशोधन का भावी परिणाम
आज सेकुलरिज्म के नाम पर स्वार्थी लोगों ने कई शब्द बना रखे हैं जो भ्रामक और परस्पर विरोधी हैं। कुछ प्रचलित शब्द इस प्रकार हैं -
शब्दकोश में इसके अर्थ धर्म से संबंध न रखनेवाला....संसारी(धर्म निरपेक्षता) अर्थात धर्म की अपेक्षा न रखना ......धर्म हीनता या नास्तिकता....इस परिभाषा केअनुसार धर्म निरपेक्ष व्यक्ती उसको कहा जा सकता है ....जिसको अपने बाप का पतान हो ....और जो हर आदमी को अपना बाप मानता हो.....या ऎसी औरत जो हर व्यक्ति कोअपना पति मानती हो .... आजकल के अधिकाँश वर्ण संकर नेता इसी श्रेणी में आतेहैं....ऐसे लोगों को हम ,निधर्मी ,धर्मभ्रष्ट ,धर्महीन ,धर्मपतित याधर्मविमुख कह सकते हैं .........सर्व धर्म समभाव-  .....अर्थात सभी धर्मों को एक समान मानना... अक्सर ईसाई और मुसलमान सेकुलर कायही मतलब बताते हैं... यदि ऐसा ही है तो यह लोग धर्म परिवर्तन क्यों करातेहैं? धर्म परिवर्तन को अपराध घोषित क्यों नहीं कराते....और धर्म परिवर्तनकराने वालों को सज़ा देने की मांग क्यों नहीं करते?ईसाई मिशनरियांहिन्दुओं के धर्म परिवर्तन के लिए क्यों लगी रहती हैं ?या तो यह लोगस्वीकार करें की सभी धर्म समान नहीं है....
मुसलमान तो साफ़ कहते हैं की अल्लाह के नजदीक सिर्फ़ इस्लाम धर्म ही है - इन्नाद्दीन इन्दाल्लाहे इस्लाम .....
सभी धर्मों के समान होने की बात मात्र छलावा है और कुछ नहीं.........पंथ निरपेक्षता - अर्थात सभी पंथों, सप्रदायों, और मतों को एक समान मानना-वास्तव में यहपरिभाषा केवल भारतीय पंथों ...जैसे बौध्ध ,जैन,और सिख,जैसे अन्य पंथों परलागू होती है। क्योंकि यह सभी पंथ एक दूसरे को समान रूप से आदर देते हैं....लेकिन इस परिभाषा में इस्लामी फिरके नहीं आते.शिया और सुन्निओं की अलगअलग शरियतें हैं.... वे एक दूसरे को कभी बराबर नहीं मानते ,यही कारण है कीयहलोग हमेशा आपस में लड़ते रहते हैं......उक्त परिभाषा के अनुसार केवलहिन्दू हीस्वाभाविक रूप से सेकुलर हैं....उन्हें सेकुलरिज्म का पाठ पढाने की कोईजरूरतनहीं है.........ला मज़हबियत
मुसलमान सेकुलरिज्म का अर्थ यही करते है..... इसका मतलब है कोई धर्म नहींहोना....निधर्मी पना ...मुसलमान सिर्फ़ दिखावे के लिए ही सेकुलरिज्म की वकालतकरते हैं.और इसकी आड़ में अपनी कट्टरता ...देश द्रोह... अपना आतंकी चेहरा छुपालेते हैं.....इस्लाम में सभी धर्मो को समान मानना...शिर्क- यानी महा पाप है....ऐसेलोगों को मुशरिक कहा जाता है,और शरियत में मुशरिकों के लिए मौत की सज़ा काविधान है... इसीलिए मुसलमान भारत को दारुल हरब यानी धर्म विहीन देश कहतेहैं.... और सभी मुस्लिम देशों में सेकुलर का यही मतलब है।
अगरसेकुलरिज्म का पाठ पढाना है तो,उन लोगों को पढ़ाया जाना जो अपने धर्म कोसर्वश्रेष्ठ बता कर दूसरों के धर्म को हीन बताते हैं . और लोगों का धर्मपरिवर्तन कराते रहते है ......ताकि इस देश पर राज कर सकें !

No comments:

Post a Comment