किसी नगर में गंगा के किनारे एक बूढ़ा आदमी रहता
था| उसने अपनी छोटी-सी झोंपड़ी बना ली थी और एक कछुआ पाल रखा था| वह दोपहर
को रोटी मांगने जाता तो कुछ चने भी ले आता और उन्हें भिगोकर कछुए को खिला
देता|
एक दिन एक आदमी उसके पास आया| कछुए को देखकर बोला - "आपने यह क्या गंदा जीव पाल रखा है| इसे फेंक दो|"
बूढ़े को उसकी बात सुनकर बड़ा बुरा लगा| उसने कहा - "तुम मेरे गुरु का अपमान करते हो!"
वह आदमी बोला - "गुरु का अपमान?"
"जी हां|" बूढ़े ने कहा - "यह मेरा गुरु ही है| देखते नहीं, जरा भी आहट होती है तो यह अपने सारे अंग सिकोड़ लेता है| यह हमें हर घड़ी सिखाता रहता है कि लोभ-लालच आए तो अपने हाथ पैर सिकोड़ लो, बुराई से बचो, ये ही बातें तो गुरु कहा करते हैं|"
एक दिन एक आदमी उसके पास आया| कछुए को देखकर बोला - "आपने यह क्या गंदा जीव पाल रखा है| इसे फेंक दो|"
बूढ़े को उसकी बात सुनकर बड़ा बुरा लगा| उसने कहा - "तुम मेरे गुरु का अपमान करते हो!"
वह आदमी बोला - "गुरु का अपमान?"
"जी हां|" बूढ़े ने कहा - "यह मेरा गुरु ही है| देखते नहीं, जरा भी आहट होती है तो यह अपने सारे अंग सिकोड़ लेता है| यह हमें हर घड़ी सिखाता रहता है कि लोभ-लालच आए तो अपने हाथ पैर सिकोड़ लो, बुराई से बचो, ये ही बातें तो गुरु कहा करते हैं|"
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