एक बार कृष्ण बीमार हो गए. सभी बहुत
चिंतित हो गए. नन्द महाराज ने तुरंत वैद्य
को बुलाया. वैद्य ने पूरी कोशिश कर
ली,लेकिन कृष्ण की तबियत पर कोई असर
नहीं पड़ा. सभी बहुत उदास हो गए.
तभी वहा से एक संत निकल रहे थे. नन्द
जी ने उनका स्वागत किया और
अपनी समस्या उन्हें बताई . उनकी बात
सुनकर संत ने ध्यान लगाया और उपाय. कोई
भी जो कृष्ण को बहुत प्यार करता हो,
वो यदि अपने चरणामृत पान कराएगा उससे
कृष्ण ठीक होंगे. यदि किसी का प्यार
सच्चा नहीं हुआ तो कृष्ण और भी बीमार
हो सकते है. सब गहन सोच मे बैठ गए और
सोचने लगे की कौन अपने चरणामृत कृष्ण
को पिलायेगा?
कुछ लोग इसलिए आगे नहीं आये
कि उनका प्यार सच्चा नहीं हुआ तो कृष्ण
और बीमार हो जायेंगे. कुछ इसलिए आगे
नहीं आये कि भगवान को चरणामृत देकर
कौन नरक जायेगा. कोई इसलिए आगे
नहीं आया कि नन्द महाराज क्या सोचेंगे.
परन्तु ये खबर जैसे ही राधा जी को मालूम
पड़ी वो चरणामृत लेकर दौड़ पड़ी. उन्हें
अपना होश ही नहीं था. उनके दिमाग मे
तो बस कृष्ण को अच्छा देखने कि धुन सवार
थी. जब राधा जी का चरणामृतकृष्ण
जी को दिया तब वो ठीक हुए . ऐसा है
राधा का प्यार और विश्वास,
जहा अपनी कोई चाह ही नहीं. बस
प्रियतम की चाह समाई हुई है l
इसी तरह हमें भी आपने सतगुरु के कार्य में
मान-बुध्दी को त्याग कर उनकी आज्ञा में
चलना चाहिए |
।। सतगुरु महाराज जी की जय ।।
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