शायद ही कोई होगा जिसने किसी से प्रेम
ना किया हो।लेकिन विरले ही हैँ जिन्हेँ ये
पता है कि प्रेम किससे करना चाहिए।हम
जिसे प्रेम समझते हैँ वो वास्तव मेँ सिर्फ
आकर्षण है,मोह है।जैसे उदाहरण आता है
अपाला का जिसका पति उससे बहुत प्रेम
करता था उसके लिए अपनी जान तक दे
सकता था ,पर कुछ समय बाद उसे
ऐसा भयंकर रोग हुआ कि उसके सारे शरीर मेँ
बदबूदार पस हो गई उसमेँ कीड़े चलने लगे ,
कुछ ही समय बाद सबके लिए बोझ बन गई।
कल जिस खूबसूरती के पीछे
सारी दुनियाँ दीवानी थी आज उसके
पति ने उसे घर से निकाल दिया क्योँ?
क्योँकि सभी ने उसकी खूबसूरती से प्यार
किया था ,उससे नहीँ।हर रिश्ते
की यही कहानी है सभी स्वार्थवश प्रेम
करते हैँ।
लेकिन एक रिश्ता ऐसा भी है जो हमसे
सिर्फ हमारे लिए प्यार करता है-ईश्वर
का पावन रिश्ता ।संसार मेँ जब कोई प्रेम
करता है तो कहता है -I have fallen in
your love.कभी सुना है -I have risen in
your love.यही अंतर है ,ईश्वर के प्रेम मेँ
हम अपनी मंजिल की ओर बढ़ते है
जबकि सांसारिक प्रेम मेँ हम गिरते ही चले
जाते हैँ क्योँकि वो प्रेम
नहीँ बल्कि हमारी नासमझी है।सच्चा प्रेम
केवल और केवल ईश्वर से ही हो सकता है।
लेकिन कहते हैँ न कि 'हुस्न को देखे बगैर इश्क
पैदा नहीँ होता' यानी जब तक ईश्वर
का दर्शन नहीँ कर लेते हैँ तबतक उनसे
सच्चा प्रेम नहीँ हो सकता है यदि हम प्रेम
करना भी चाहते
हैँ ,तो जरा सी भी प्रतिकूल
परिस्थिति आती है कि हमारा विश्वास
डोल जाता है क्योँकि हमारा विश्वास
सिर्फ मान्यताओँ पर टिका होता है।लेकिन
दर्शन के बाद हम उनके वास्तविक प्रेम
को जान सकते हैँ जिसे जाना था -राधा ने,
गोपियोँ ने, मीरा ने।उनके अलौकिक प्रेम
का वर्णन करना ...सागर की गहराई
को फीते से मापने से
भी ज्यादा कठिन ..नामुमकिन है ।और उस
'प्रेम के सागर' से केवल "पूर्ण सदगुरु"
ही मिला सकते हैँ।
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